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किरण १.१.
पथिक
कई सौ वर्ष पर्यन्त क्या बूरोपमें इसाइयोंकी वही अवस्था सभ्यताके विविध अङ्गोंकी पुष्टि और वृद्धि विविधवर्गीय जैनों थी जो बाजी? हसरत महम्मदके बहुत पीछे तक क्या ने उस युग में की थी। उस युग में लगी जैन संस्कृतिकी मुसलमानोंकी संख्या और प्रभुत्व उतना था, जितना कि भारतीय समाजपर अमिट छाप आज भी लक्षित की जा पीछे होगया!
सकती है। भारतीय सभ्यताको ही नहीं विश्व सभ्यताको विद्याधर, ऋक्ष, यक्ष, नाग श्रादि वह अनार्य जातिया उस युगमें जैन संस्कृतिने अमूल्य भेट प्रदान की है। उस जिनको उच्च नागरिक सभ्यताने नवागत वैदिक प्रायोको युगमें निर्मित विविध विषयक जैन साहित्य तथा कलात्मक चकाचौंध कर दिया था आज कहा है ? महेन्जोदड़ो रचनाएँ भारतकी गष्ट्रीय निधि के अमूल्य रत्न है। सभ्यताके संरक्षकोका क्या अाज कहीं कोई अस्तित्त्व है! अत: वह युग यदि किसी सॉस्कृतिक नामसे पुकारा
अस्तु, भारतवर्षके इतिहासका प्राचीनयुग, कमसे कम जा सकता है तो वह जैन संस्कृति के नामसे ही । भारतीय उसका बहुभाग जैनसंस्कृतिकी प्रधानता एवं प्रभुत्वका युग इतिहासका वह लगभग २००० वर्षका युग सच्चा यथार्थ था, राजा-प्रजा अधिकाश देशवासी जैनधर्मानुयायी थे। जैनयुग था, न बौद्ध न हिन्दु ।
पथिकसे -(ले०-ज्ञानचन्द्र भारिल्ल )
पथिक ! पथ है तेरा किस ओर ? तारोंकी लड़ियाँ हैं टूटी, सूर्यदेवकी किरणें फुटी, कब तक सोएगा तू अब तो जाग हुआ है भोर । पथिक राही ! खेरे मगमें लाखों, तेरे जीवन-प्राहक होंगे, मावधान हो चलना वरना, देंगे झट झकझोर !! पथिका मरिता, मर, समुद्र तरना है, गिरि-शृङ्गोंपर भी बढ़ना है ! व्यादा क्या, तेरे पथका है, नहीं ओर अहछोर पथिक० चलचल उठ, बढ़ चल रे गाफिल ! पलपल डगडग क्यों रुकता है ? सुन सुन रे ! यमदूत भयंकर, मचा रहे हैं शोर !! पथिक. और सभी तजकर तू गही ! एक लक्ष्य ही बना बढ़ा पल , खींच रही हो तुझे जिधरको, मधुर प्रेमकी होर !
पथिक ! पश्च है तेरा किस भोर ?