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किरण १०]
भारतीय इतिहासका जैनयुग
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इस राज्यपर एक अस्थायी विजय प्राप्त की थी। दक्षिण भान्तम जैन धर्मकी ही सर्वाधिक प्रधानता रही।
पूर्वका वनिसंघ तो ब्रात्य क्षत्रियोंका एक प्रसिद्ध केन्द्र इस प्रकार भारतीय इतिहास के प्राचीन युगमे महाथा। महावीरकालमें इसके नायक वैशालीके राजा चेटक भारत के उपरान्त उत्तरभारत में लगभग ३री शताब्दी ई. थे । वजिसंघके ही अन्तर्गत कुंडलपुरके ज्ञातृवंशी लिच्छवि- तक तथा कितने ही प्रान्तोमे १३वी १४वी शतान्दा ईस्वी नरेश सिद्धार्थके ही पुत्र भगवान महावीर थे । वैशालीके तक जैनधर्मकी ही प्रधानता रही, राज्यवंशा, प्रसिद्ध प्रसिद्ध राजा चेटक उनके नाना थे । चेटककी एक कन्या मगधराज राजाओं तथा जनसाधारण सभीकी से। श्रेणिकको, दूसरी वत्सराज उदयनको और तीसरी कोशलके इस सास्कृतिक प्रधानताका परिणाम भी प्रत्यक्ष हुआ। राज्यवंशमें विवाही थी। इन सर्व राज्यों, गणों और वहाकी वैदिक संस्कृति तथा उससे उदभूत पौराणिक धौम याशिक जनतापर भगवान महावीरका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था, वे हिंसा सदैवके लिये विदा ले गई । खानपानमें सुरा और सब उनके परमभक्त अनुयायी थे। यह वनिसंघ गणतन्त्र मासका यदि नितान्त लोप नहीं होगया तो वह घृणित और का आदर्श था।
त्याज्य अवश्य समझे जाने लगे। बौद्धोने जीवहिसाका तो नवोदित मगध साम्राज्यकी साम्राज्याभिलिप्साके कारण विरोध किया किन्तु माम मदिराके भक्षणपानका समर्थन और वजिसंघ और मगधराज्यमें द्वन्द चलता रहा, अंतमे अजात- प्रचार करनेमे कोई कसर नही की तथापि जैनधर्मके ही शत्रुने वैशाली विजय कर वजिसंघको छिन्न-भिन्न कर दिया, प्रभावसे वह वस्तुएँ अभक्ष्य ही होगई। किन्तु भले ही गौण रूपमें, लिच्छवियोंका अस्तित्व सन् ई० जुश्रा, पशुयुद्ध श्रादि समाज, स्त्रीपुरुषके बीच धार्मिक ६-७वी शताब्दी तक बना रहा ।
बंधनकी शिथिलता, तजन्य व्यभिचार एवं विषयाधिक्य मल्ल भी वजिसंघकी ही एक पड़ौसी व्रात्य जातिका श्रादि श्रार्यों और बौद्धोके प्रिय व्यसन कुव्यसन कहलाने गणतन्त्र था । पावा इनका प्रधान नगर था । वही भगवान लगे। अनेकान्त दृष्टि के प्रचारसे धार्मिक उदारता सहि. महावीरका निर्वाण हुआ।
ष्णुता, मतस्वातन्य श्रादिको पुष्टि मिली । जाति और काशीके संबंधमे ऊपर कहा ही जा चुका है। भगवान कुल धर्मसाधनमे बाधक नही रहे। प्रात्मवादने जड़वादका महावीर के जन्मके पूर्व ही वह कोशलराज्यमे सम्मिलित हो बहिष्कार कर दिया । और कमांसद्धान्तने देवके ऊपर गया था। अजातशत्रने कौशलसे उसे छीनकर मगधमें भरोसा कर हाथपर हाथ रख बैठ रहना भुला दिया । देवमिला लिया था।
पूजा और भक्तिके द्वारा देवताओंको प्रस: कर इहलौकिक कौशलमे प्राचीन सूर्यवंशी राजोका ही राज्य चला फलकी प्राप्तिके प्रयत्नके स्थानमे अात्मसाधन करना अाता था, महावीरकालमें वहाका राजा प्रसिद्ध प्रसेनजित सिखाया । जड़वादका स्थान अध्यात्मवादने ले लिया, था, जो भगवान महावीरका भक्त था । उसके उपरान्त रूढ़िवादका युक्तिवाद और विवेकने । ज्ञान, भक्ति और कोशल भी मगध-राज्यमे सम्मिलित होगया।
सदाचारकी त्रिवेणी बहा दी। दक्षिणमें ईस्वी सन्के प्रारंभकाल से ही अनेक राज्य- इसके अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तामिल, नाग, पल्लव, गङ्ग, चालुक्य, होयसल, राष्ट्रकूट आदि स्था- तेलेगु, कन्नड़, हिन्दी, गुजराती, मगठी आदि विभिन्न पित होने लगे थे। उन सबमें ही प्रारंभसे जैनधर्मकी ही भाषाओं में विविध विषयक विपुल सुन्दर एवं उच्च कोटिका प्रवृत्ति रही। किन्तु सन् ई०५ वी शताब्दीके उपरान्त शैव साहित्य जैन विद्वानोंडाग जैन राजाओं और श्रेष्टियोंके प्रोत्सावैष्णव धोके बढ़ते हुए प्रचारके आगे तत्संबंधी राज्यवंशों इनसे जितना और जैसा इस जैनयुगमें रचा गया अन्य के आगे पीछे धर्मपरिवर्तनके कारण धीरे धीरे वहाँ जैनधर्म किसी दूसरे युगमें किसी दूसरी संस्कृति द्वारा नहीं । तत्वका वास होता चला गया। तथापि मध्य युगके मध्य तक ज्ञान, दर्शन, प्राचारशास्त्र, इतिहास, नीति, समाजशास्त्र, १ Ancient India. Its invasion by वैद्यक, ज्योतिष, गणित, मन्त्रशास्त्र, न्यायशास्त्र, कथा
Alexander the Great-Mc. orindle. साहित्य, काव्य, नाटक, चम्पु, तर्क, छन्द, अलङ्कार, व्या