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भारतीय इतिहासका जैनयुग (ले०--बा० ज्योतिप्रसाद जैन विशारद, एम० ए० एल-एल० वी०)
[ गत किरणसे आगे भगवान महावीरसे पूर्वकी राजनैतिक परिस्थितिमे भी उन दोनोसे पहिले होना प्रारम्भ हो गया था, भगवान राज्यों के पाठ पडोसी जोड़े अर्थात् बौद्ध अंगुत्तरनिकाय एवं महावीरके पूर्व के सोलह राज्य निम्नप्रकार वर्णन महावंशके सोलह महाजनपदोका जिक्र किया जाता है। अङ्ग, बङ्ग, मगह (मगध), मलय (चेदी), मालव, मङ्ग, मगध, काशी, कोशल, वजि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, अच्छ (अश्मक), वच्छ (वत्स), कच्छ (गुजरात काठियावाड़) पाञ्चाल, मत्स्य शूरसेन, अश्मक, अवन्ति, गान्धार पाढ़ (पांड्य), लाढ़ (गधा), श्रावाह (पश्चिमोत्तर प्रान्त ?) कम्बोज-बौद्ध अनुश्रुतिके तत्कालीन सोलह महाजनपद मम्भुत्तर, वजि, मल्ल, काशी, कोशल'। है। हिन्दु अनुश्रुति (ऐतिहासिक पुराणों) मे भी उस समय प्रत्यक्ष ही जैन अनुश्रुतिके इन महावीर-कालीन प्रसिद्ध के बारह प्रसिद्ध राजाश्रोका वर्णन किया है । हिन्दु अनु- सोलह राज्योमें प्राय: समस्त भारतवर्ष के हिन्दुकुशसे श्रुति के प्रायः सब ही राज्य भारतीय संयुक्तप्रान्त, विहार तथा कुमारी अन्तरीप, तथा बगालसे काठियावाड़ तक के सर्व ही मध्यप्रान्तके अन्तर्गत श्राजाते है। दूसरे, वे किसी एक ही आर्य अनार्य राज्य प्रागये, जिनका कि अस्तित्व उक्त समय कालके सूचक नहीं वरन् महाभारत के जरासन्धसे लगाकर के इतिहास में स्पष्ट मिलता है। महावीर कालके पश्चात् तकके राज्य उसमे उल्लिखित हैं। श्रङ्गकी राजधानी चम्मा थी। यह राज्य बङ्गाल और ये सर्व ही राज्य केवल वैदिक प्रायोसे संबंधित है, अवै- मगधके बीच में स्थित था इसके राज्य वंश तथा जनतामें दिक, व्रात्य, नाग, यक्ष, अनार्य राज्यों और प्रदेशोका साथमे जैनधर्मकी प्रवृत्ति अन्त तक बनी रही थी। राजधानी चम्पाकोई उल्लेख नहीं। इससे विदित होता है मानो पूरे दक्षिण- पुगे १२ वे जैन तीर्थकर वासुपूज्य की जन्मभूमि थी। ई. भारत में उस समय कोई भी राज्य नही था। लगभग यही पू० छठी शताब्दीके मध्यमे मगधके श्रेणिक (बिम्बसार) दशा बौद्ध अनुश्रतिकी है। प्रथम तो बौद्ध अनुश्रुति ई० ने अङ्गको विजय कर अपने राज्यमे मिला लिया था। सन्की ६ ठी ७ वीं शताब्दीमें सिहल, बर्मा, तिब्बत, चीन बङ्गदेशमे उस समय नाग, यक्ष आदि प्राचीन जातियों श्रादि भारतेतर प्रदेशोंमे विदेशियों द्वारा संकलित हुई। के छोटे २ राज्य एक सघर्म गुंथे हुए थे, किन्तु इनकी दूसरे, उसमें उल्लिखित महाजनपद भी पश्चिमोत्तर प्रान्त के स्थिति स्वतंत्र रहते हुए भी गौण ही रही। गाधार, कम्बोज व मध्य भारत के अश्मक, अवन्ति एवं चेदि मगह अथवा मगध बादका सर्व प्रसिद्ध एवं सर्वोपरि को छोड़ सर्व ही वर्तमान संयुक्तपन्त तथा विहार के राज्य होगया। राजधानी पञ्चशेलपुर (गिरिब्रज अथवा अन्तर्गत हैं।
राजगृही) थी। काशी राज्य के हास के साथ साथ इस देश में ऐसा प्रतीत होता है कि बादको जन बौद्ध अनुभूति नाग क्षत्रियोंकी एक शाखा शिशुनाग वंशकी स्थापना हुई संकलित हुई उसके संकलन कर्ताअोंने हिन्दु अनुश्रुतिके (ई० पू० ७ वी शतन्दीके प्रारभ में) इस वंशके श्रेणिक प्रसिद्ध राज्यों में से जिनसे भी किसी समय वौद्धधर्म अथवा (बिम्बसार), कुगिक, अजातशत्र), उदयी श्रादि राजाओंके बौद्ध कथानकोंका थोडा बहुत संबंध पाया, उन सब शासनकाल में शनैःशनै: अङ्ग, काशी, वजि, वत्स, कोशल, प्रदेशोसे यह सोलह महाजन पद घड़ लिये।
अवन्ति श्रादि राज्योंको विजय कर भारतवर्ष के प्रथम __ इसके विपरीत जैन अनुश्रतिमे, जो उक्त दोनों अनु- साम्राज्य-मगध साम्राज्यका उत्कर्ष एवं विस्तार होता चला श्रतियोंसे कम प्राचीन नहीं वरन किन्हीं अंशोंमें अधिक Political Hist of Ancient India प्राचीन है, शुद्ध भारतीयअनुश्रुति है और जिसका संकलन P.46-Dr. H.C. Raychoudhry, and १ भा० इ. रूपरेखा पृ० २८७-जयचन्द विद्यालङ्कार । भगवतीसूत्र