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________________ कवि-प्रतिबोध " ब ब उसका रस मुद्दत पहिलेका शान्ति हुश्रा करती है पीछे हृदय-खीजसे सूख चुका है पहिले होता है कोलाहल 'कुछ' क्या ? गीलापन भी उसमें मानवताकी रोती प्याली- हिमा ही जननी उम की है दिखलाने को नहीं बचा है लेकर जगको मत बहकानी! जिसे अहिमा कहता भूतल दानवता का रंग जमा है - है मामय छिरी यांद भीतर मानवता के गीत न गाओ! हृदय खोल कर वह दिखलाओ! मानवता की रीती-प्याली मानवता की रीती-प्याली लेकर जगको मत बहकानो! लेकर जगको मत बहकाओ! समझे क्या सब समझचुके हैं दम्भ-द्वेष ने समय-समय पर सुख-दुख का तो रूप बड़ा है जगती को स.तोष दिया है छोटा-सा यह प्रश्न नहीं है श्रात्म-ज्ञान ने मौन माधइस पर ही संसार खड़ा है तब-तब उमको ही योग दिया है मुक्ति-मार्गके बाधक दोनों पूरब, पूरब-सा न रहा है दुखमें मत सुखको ललचाओ! पश्चिमसे मत द्वेष कराओ! मानवता की रीती-प्याली मानवता की रीती-प्याली लेकर जगको मत बहकानी! - कपूरचन्द जैन 'इन्दु' लेकर जगको मत बहकाओ! ये सब तो पीछे की चीजें कार मान रहे संकट को जग में माया, तृष्णा, त्याग-तपस्या कहते मैला मानवता को जब आगे तांडवता लेकर ज्ञान-तरणि हो रहा तिरोहित नाच रही है विश्व-समस्या पाएँ कैमे अभिनवता को ? जग में पैदा होकर उसका श्राम-बबूल जगत के दो तर बनने में अब मत शर्माश्रो ! यह पाकर मत वह ठुकगो ! मानवता की रीती-प्याली मानवता की रीति-प्याली लेकर जगको मत गहकाओ! लेकर जगको मत बहकायो माना, माया मकड़ी-जाला जिसकी करनी उमकी भरनी पर उस का सुलझाना मुश्किल पाप, पुण्य दमका सहचर है : एक त्याग को लेकर किसने दुख तो दुख ही रहा सदा है पाया अब तक है-लक्ष्यस्थल ? सुख कहना मन पर निर्भर है फिर निष्कंटक क्या कंटक-मय क्यापंडित! क्या मूद! सभीको परिभाषामें उलझ न जाओ! नियम नियतिका एक बताओ! मानवता की रीती-प्याली मानवता की रीती-प्याली लेकर जगको मत बहकाओ! लेकर जगको मत बहकानो! अनेकान्त और धीरसेवामन्दिरको सहायतादि भेजनेका __ स्थायी पताअधिष्ठाता वीरसेषामन्दिर' सरसावा जि. सहारनपुर -
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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