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________________ किरण २] ऐतिहामिक मामग्रीपर विशेषप्रकाश पहीहै। संग्रहमें जिसमें उदयपुरके सभी दर्शनीय स्थानोंके चित्र कहोखिनी १५ कुमारपाला, वस्तुपाम, तेजपामके कई हैं। यह पत्र करीब ७५ फुट लंबा है दूसरा इससे भी काब्य १६ भद्रबाहुचरित्र, १७ जम्बूस्वामिचरित्र, १८ बड़ा, यहांके ज्ञानभंडारमें है जिसमें बीकानेरके चित्र हैं। हरिषेण कथाकोश, ब्राने मिदत्तकथाकोश २००इस प्रकारके दो सचित्र पत्र पूर्णचन्द्रजी नाहरके संग्रहमें कथानक मादि। इनके अतिरिक्त विमचरित्र र बादिभी हैं, विज्ञप्तिपत्रोंका एक बड़ा संग्रह मुनि जिनविजयजी देवसूरिचरित्र (अपूर्ण हमारे संग्रहमें) मादि अप्रकाशित पा रहे हैं। वासुदेवशरणजीके उक्त लेखमें विज्ञप्ति दशामें पड़े हैं। उपर्युक्त ऐतिहासिक सामग्रीक भतिरिक्त त्रिवेणीका परिचय छपा है वह कुछ भ्रान्त है क्यों कि दो और महत्वपूर्ण साधारन हैं पर अभी तक उनके प्रकाश उक्त ग्रंथमें विज्ञप्ति पत्र ३ नहीं पर एक ही है और वह में न मानेके कारण विद्वान लोग भी उनसे अनभिज्ञसे हैं। मुनि सुन्दरसूरिका दिया हुआ न होकर (इसका तो केवल पे साधन इस प्रकार हैप्रस्तावनामें उल्लेख ही है यह पूर्णरूपमें मिलता भी नहीं (१) वंशावली-जैन श्रावक संघके तिहासके खिये है)सं. १५E में खरतरगच्छीय उ• जयसागरने जिन- वंशावलियोंका बड़ा महत्व है पर अभी तक इनको प्रकाशन भद्रसूरिजीको नगरकोट यात्रा विवरणके रूपमें मेजा जानेका प्रयान नहीं हुआ, केवल एक वंशावली जैनसाहित्य संशोधक एवं मारमाराम शताब्दी स्मारक प्रन्थमें छपी। (७) तीर्थमाला-विविध - तीर्थकरूपके अतिरिक्त, इस प्रकारकी वंशावलिये यद्यपि प्राचीन बहुत कम मिलती तीर्थोके कई प्रबन्ध 'उपदेश सप्तति' प्रन्यमें भी प्रकाशित हैं फिर भी वंशावलि लेखक भाट मघरेण एवं जैनयतियों हुप हैं और 'प्राचीन तीर्थमाला' के अतिरिक्त अनेक तीर्थ- के पास खोजाने पर बहुत सी मिलेंगी। संखवाल गोत्रकी मालायें जैनयुग आदिमें प्रकाशित है। हमारे संग्रहमें भी वंशावलि हमने पाचन्द्रसूरि ज्ञानभंगारमें देखी थी और बहुत सी तीर्थमालायें एवं ऐतिहासिक तीर्थरस भप्रकाशित भोसवंशके कई गोत्रोंकी वंशावलिकी बहीयें हमारे संग्रह पड़े हैं, जिनसे । प्रन्थ तैयार हो सकता है। शत्रुजयके सम्बन्धमें शत्रु जयतीर्थोद्धार-प्रबन्ध और (१०) श्री पूज्योंके दफ्तर-प्रत्येक गच्छके चाचार्य अपनी २ नाभिनंदनोहारप्रबंध नामक स्वतंत्र ग्रन्थ प्रकाशित हैं। दफ्तरवही रखते थे, जिसमें दीक्षित मुनियोंका पूर्व नाम, स्थभनकपानाथचरित्रादि अप्रकाशित है। गुरुका नाम, दीक्षाका नाम, समय, स्थान, दीपित करने (5) चरित्रकाव्य-उक्त लेखके अतिरिक्त महत्वपूर्ण वालेका नाम रहता था एवं श्रीपूज्य लोग जहाँ २ जाते, चरित्र काम्य इस प्रकार है-- वहाँके मुख्य मुख्य श्रावकों एवं धर्मकरयों का विवरण लिखते , विजयप्रशस्ति, २ कर्मचंद्र-वंश-प्रबन्ध (मूल मोमाजी य ऐसे दफ्तर सं० १७०.के बाद खरतरगच्छकी। ने छपा रखा है-प्रकाशित नहीं हुआ है) इसकी शाखाओंके हमारे अवलोकनमें आये है। विद्वानोंको उचित वृत्ति भी हमारे संग्रहमें है। है कि श्रीपूज्य-भट्टारकों के स्थानों पर इनकी विशेष रूपसे ३ विजयदेवमहात्म्य ५ वस्तुपाबचरित्र ५ जगहूचरित्र खोज करें। श्री पूज्योंके पास प्राचीन पहे, परवाने, शाही सुकृतसंकीर्तन व्याश्रय काव्य सोमसौभाग्य वर्धमान फरमान, ताम्रपत्र, आवेशपत्र, विजय पहे, राजादि विशिष्ट पचसिंह चरित्र . हमीरामदमर्दन गुरुगुणरत्नाकर म्यक्तियोंके पत्र मादि बहुत सी ऐतिहासिक सामग्री मिलती १२ धर्माभ्युदयकाव्य हमीर महाकाव्य १७ सुकृतकीर्ति- है जिससे अनेक नांवाते प्रकाशमें पा सकती हैं। -
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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