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________________ किरण ३] जैनधर्मकी एक झलक सर्कणाकी कसौटी पर कसनेसे ही अपने अपनी महत्वको हुभा देख कर यह रास्ता बताया, कि यदि तुम अपने प्रकट करता है। खोटा सोना अग्नि-परीक्षणसे मय खाता अंदरसे विकारों और कमजोरियोंको हटानो तो तुमको है, किन्तु असली मोनेकी कीमत अनि परीपणसे पूर्णतया समा सुख प्राप्त हो सकता है। उसकी प्राप्ति केवल भक्तिसे. प्रकाशमें पाती है। इस प्रकार अनुभव तथा विचारणाके या ज्ञानमात्रसे अथवा कोरे क्रियाकांडसे नहीं हो सकती, द्वारा नकलीधर्माभासोंके बीचमे उस सच्चे धर्मकी खोज बल्कि विवेकपूर्ण सस्य श्रद्धा, सत्यज्ञान और सत्य भाचरथा की जा सकती है, जिससे इस जीवको सची शांति और __ रूप रत्नत्रयमयी मार्गसे हो सकती है। जिस तरह धंध, मुकम्मिल जीवनकी प्राति हो सकती है। यूरोपियन जैन पंगु और मालसी मिल कर प्रतिके संकटसे बच जाते है, महिला मिस फ्रेजरने लिखा है इसी प्रकार श्रद्धा, ज्ञान और चारित्रके समीचीन समन्वयसे True religion must be a science यह प्राणी संसारके संतापसे मुक्त हो सकता है। इस स्नIt is indeed the science of sciences .मार्गकी प्रशंसा करते हुए नागपुर हाईकोर्ट के जज since it is the science of life and श्री नियोगी महाशयने गत ही महावीर जयंतीके अभिliving?" भाषण में कहा था "The happy combination सच्चे धर्मको वैज्ञानिक-विज्ञान-सम्मत होना चाहिए। of heart head and hand lends to वह तो विज्ञानका विज्ञान है कि वह जीवन और liberintion." हृदय (भक्ति), दिमाग (हान) और जीवित रहनेका विज्ञान है। हाथ (भाचरण) की मधुर एकता मुक्ति प्रदान करती है। सरचे धर्मके परीक्षण के लिए ईसाकी पहली सदीके इस रत्नत्रय मार्गमें शान, भक्ति तथा क्रियाकांडका समन्वय महर्षि स्वामी कुंदकुंदने यह बताया कि जो वस्तुका स्वभाव है, और उनका समुदाय एक दूसरेकी अटियोंका पूरक। है-निज गुण है--असलियत है. वह धर्म है, जहां वह तास्थिकरष्टिसे इस बातकी श्रद्धा जरूरी है कि मेरी है, वहां धर्म है जहां वह नहीं है. वहां धर्म भी नहीं है। श्रात्मा शरीर, मकान व भादि पदार्थोसे पृथक है--जुदी इसे दूसरे शब्दों में कहेंगे, कि स्वाभाविकता (असलियत) है। ज्ञान तथा मानंदका अक्षय भंडार है, उसमें मर्मत या उसको प्राप्त कराने वाले मार्गका नाम धर्म है । विकृति- शक्ति है। यदि मैं विकारोंसे अपनी प्रात्माको हटालू तो मैं अस्वाभाविकता, बनावटीपना अधर्मके पर्यायवाची-दूसरे भी परमात्मा बन सकता हूँ। परमात्मा मेरी मारमाकी ही नाम हैं। अनिका स्वभाव जैसे ज जना, प्रकाश देना है, शुद्ध हालत है। भास्मश्रद्धाके समान मारमशान भी जरूरी उसी प्रकार आश्माका स्वभाव समता है. शान्ति है, मोह है, हद पात्मश्रद्धा और ज्ञानवाला व्यक्ति जब मोह देष क्रोध मत्सर आदि विचारोंसे राहतपना। 'पारमाकी मोह क्रोध प्रादि दोघाँसे अपनी चित्तवृत्तिका तर कर प्रारमऔर क्रोध-नागद्वेषसे रहित परिणति ही धर्म स्वरूप में लीन हो जाता है. यह मनशान दर्शन इस मामाको क्रोध, मान. माया लोभ आदि विकारों सुख तथा शक्तिको प्रास करता है। से दूर करने पर समतामय जो मानन्द होता है, वह एक प्रत्येक मारमा रत्नत्रय (Right faith, Right साधकके शब्दोंमें 'मनुज नागनरेन्द्र नाही को। kuowboxe and Right conduct) जैन तीर्थंकरोंने विश्वके दुःखों के मध्य प्राणियोंको फंसा औषधि प्रयोगकेसे अपने मोहज्वरको दूर कर परमात्मा, जिनेन्द्र, भगवानकी प्रतिष्ठाको प्राप्त कर सकता है।परमात्म१देखा-ASeicutific Interpreattion of पद विश्वके प्रत्येक प्रयत्नशील योग्य प्राणीके द्वारा प्राप्त किया Christianity. पेज २ जा सकता है। यथार्थमें देखा जाय, तोप्रत्येक मारमा परमाश्वत्थुसहावो धम्मो, धम्मो जो सो समो त्ति णिदिहो। त्मस्वकी शक्तिपी(lutelit)है और वह प्रात्मविश्वास,पारममोहक्कोह-विहीणोपरिणामोअप्पणो हुसमो।।-कुंदकुंदाचार्य ज्ञान भाविक द्वारा अभिव्यक्त-जाहिर होती है (Putent)
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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