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________________ वार्षिक मूल्य ४) ७० नीतिविरोषसीलोकव्यवहारवर्तकसम्बन्। परमागमस्यबीज भुवनेगुरूर्जपत्यानेकान्तः वर्ष ६, किरण २४ बीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरमावा जिला सहारनपुर आश्विन वीरनिर्वाण सं० २४१६, विक्रम सं० २०.. सितम्बर ३ समन्तभद्र-भारतोके कुछ नमूने [ १५ ] श्रीधर्म-जिन-हतोत्र धर्मतीर्थमन, प्रवर्तयन् धर्म इत्यनुमतः सतां भवान् । कर्मकचमदहत्तपोऽग्निभिः शर्म शाश्वतमवाप शहरः॥१॥ '(हे धर्मनिन) अमषधधर्मतीर्थको-सम्यग्दर्शनादिरूप धमतीर्थको अथवा सम्यग्दर्शनाद्यात्मक धर्म के प्रतिपादक श्रागमतीर्थको--(लोकमें) प्रवर्तित करते हुए श्राप सत्पुरुषों द्वारा 'धर्म' इस सार्थक संज्ञाको लिये हुए माने गये है, । मापने (विविध) तपरूप भाग्नयोंसे कर्म-वनको जलाया है, (फलत:) शाश्वत-भवनश्वर सुख प्राप्त किया है (और इस लिये) भाप शंकर हैं-कर्मबनको दान कर अपनेको और धर्मतीर्थको प्रवर्तित कर सकल प्राणियोंको सुखके करने वाले हैं। देव-मानव-निकाय-सत्तमै रेजिये परिवृतो वृतो पुः। तारका-परिवृतोऽतिपुष्कलोव्योमनीव शशवायनोऽमतः॥२॥ .. 'जिस प्रकार पन-गटलादि-मनसे रहित पूर्णचन्द्रमा भाकाशमें ताराघोंसे परिवेष्ठित हुमा शोभता है उसी प्रकार हे धर्मजिन) माप देव और मनुष्योंके उत्तम समूहोंसे परिवेष्ठित तथा गणधरादिपुषजनोंसे परिवारित (सेविन) पुष (समवसरण सभामें) शोभाको प्रार ।'
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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