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________________ विषय-सूची ५ १604 समन्तभव-मारतीब नमूने सम्पादक पृष्ठ ।।१. मुझेमकहींसहारा (कविता) राजेन्द्रामार'कुमरेश। अनेकान्व-रस-बहरी--[सम्पादक " हिन्दीका प्रथमग्रामचरिबिनारसीदास चतुर्वेदी, पर्भया है?-4.वंशीधर व्याकणाचार्य... १२ चरवाहा (कहानी)--श्री भगवत्' जैन २५ अन्वर (कविता)-मुनि अमरचन्द्र १५ पयूषणपर्वऔरहमाराकर्तव्य बा.माविकचन्दबी.ए... और पुरुषार्थ-4. पुरुषोत्तमदास साहिबरन । | १७ हिन्दीके जैनकवि-श्री जमनालाल जैन विशारष २२) . सत्ताका ग्राहकार (कविता)-4. चैनसुलदास " १५ सफलताकी कुंजी-बा. उग्रसेन जैन M.A. १४ • समन्तभद्रकी महमति-म्या०प० वरचारीक्षा २ १६ कविकतन्य(कविता)-पं.काशीराम शर्मा 'प्रफुलित'१६ , बाहरे, मनुष्य मा.महावीरप्रसाद बी.ए. 1 0 सिंहभत्रको वीरोपवेश--गा. कामताप्रसाद . गवालिया लापन-प्रभुबास जैन 'प्रेमी' 10|15 जैनधर्मपर मजैन विद्वान् दशलक्षणपर्वमें दानका विशेष अधिकारी वीरसेवामन्दिर जैनसमाजकी प्रसिब साहियिक संस्था वीरसेवामन्दिर, मंत्रशाल, शम्यशासौर बंदशाब आदि अनेक विषयोंपर सरसापामें स्थायी कार्यहोरहा है और होने नया प्रकाश पडेगा और कितने ही ऐसे वैज्ञानिक विषय को यह बात पिवळे 'विशाल अंक' से पाठक भने प्रकार सामने भागे जिनसे जनता अब तक अपरिचित ही रही जानपुर। यहां पर मैं सिर्फ इतना ही बतलाना चाहता है। और जिनसे लोकमें जैनाचार्योका गौरव म्यक होगा है कि यह संस्था पुरातन-विमर्श-विचषण पं.जुगलकिशोर और साथ ही ऐसे साहित्य प्रकारामसे जैनसमाजका मी जी मुख्तार 'युगवीर' की अध्यक्षतामे, जिन्होंने अपनी गौरव बढ़ेगा। हजारकी सम्पत्तिका बसीयतनामा भी संस्थाके नाम संक्षेपमें, संस्थाके सामने बहुत ही बड़ा तथा महत्वका लिस विचार और जो स्वयं दिन-रात चौबीसों घंटे सेवा- ठोस कार्य पाहुना है, परन्तु पंजी थोडीहै। अतः यह कार्यमें ही रत रहते है, समाजभनेक प्रसिद्ध विद्वानोंके संस्था दशलक्षण में सबसे अधिक वान पानेकी सहयोगसे शोध-खोज.नुसन्धान और प्रथनिर्माणादिका अधिकारिकी। भारी काम कर रही है। इसमें सुप्तप्राय जैनशा की खोज माशा सभी स्थानों के सजन अपने बानका अधिकी जाती,धर्मअनेक गृह और गंभीर सवोंको कई कांश भाग इस संस्थाको मेजकर इसके सत्कार्यों में अवश्य सखीसे बाजकी सरल भाषामें जनता के सामने रखा जाता अपना सहयोग प्रदान करेंगे और इस तरह अपने कर्तव्यका और कितनी ही उखमनोंको मुखमापा जावा, जिसके पालन करते हुए संचासकोकोधिकाधिक रूपसे सेवाके लिए संस्थाका मुखपत्र 'ममेकाम्स' बना काम कर रहा । लिये प्रोत्साहित करेंगे। हाखामें इस संस्थाने प्राचीन जैनाचार्यो मादिके बनाये हुए ऐसे प्रयोंके नई सैबीसे अनुवाद, सम्पादन और निवेदकप्रकासनका भारी पीया उठाया ओचमी तक साधारण पनालाल जैन अग्रवाल जनताके सामने नहीं बारहे हैं और जिनके प्रकाशनसे मंत्री बीरसेवामन्दिर' अध्यात्मशाख, ज्योतिषशाख, निमित्तशाच, प्रश्नशान, सरसावा, जि. सहारनपुर। भूत-सुधार प्रेसकी गलतीसे पु.नं. और पर प्रथम काखममें साइन बोटील गई है, जबकि बह बाइन , सेबही होनी चाहिये थी। मतः पाठक बोनों स्थानोंपर उसे नीचेको बाहन से बस बनास मूलके लिये हम सम्पादक महोरबसे समा जाते है। -काशीराम शर्मा व्यवस्थापक श्रीवास्तव प्रेस
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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