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________________ किरण ] सम्पादकीय ३२३ को मानकर, उसमें भाग लेकर इतिहास तथा परम्पराके वीरसेवामन्दिर मसम्मपर हरतान कैसे फेर सकते है इसलिये मैं आपसे सरसावा जि. सहारनपुर जानना चाहता हूँ किमापके पास पुरानेसे पुराने प्रमाण ता०२१-10-11 क्या है जिनमें भगवान महावीरने विपुखाचलपर श्रावण श्रीमन्महानुभाव सिंघीजी, मादर जयजिनेन्द्र । कृष्ण प्रतिपदको प्रथम उपदेश देनेको बात कही गई हो। ता. २६ सितम्बरका रजिटई पत्र मुझे पथासमय जहाँ तक मैं जानता, दिगम्बर समाजमें भी उक्त स्थान मिल गया था। अस्वस्थता और अवकाशसे बगातार पर उस तिथिको प्रथम उपदेश दिये जानेकी परम्परा और घिरा रहनेके कारण उत्तर कुछ विलम्बसे रहा। जयंतीमहोत्सवकी परम्परा बिल्कुल मई और निराधार भी। मा कीजिये। फिर मी दिगम्बरसमाज अपना निर्णय करने में स्वतंत्र भापका पत्र प्राप्त होनेसे पहिले 'मेकान्त' के लिये है, किन्तु श्वेताम्बर समाज और स्थानकवासी समाज तो एक खेलकी योजना होगई थी, जो भाप पत्र मुख अपनी पुरानी-सप्रमाण परम्पराको तब तक छोड नहीं विषयसे सम्बन्ध रखता। यह खासी द्वितीयकिरामें सकते जब तक उन्हें मालूम न हो कि उससे भी अधिक मुद्रित कुना है, जो दो तीन दिन बाद ही संबामें पहुंचे पुराना और अधिक प्रमाणभून माघार विद्यमान है। गी। इस लेखको पद मानेकपाव, मैं समझता है भाप __ यदि आपके पास अपने विचारके समर्थक पुराने प्रमाण अपने पत्रको प्रकाशित करनेकी पावश्यकताको महसूस हों तो उन्हें शीघ्रातिशीघ्र प्रसिद्ध करना चाहिए जिससे महीं करेंगे, क्यों कि लेखम उभयसम्प्रदायोंकीररिसे विषय दमरे लोग कुछ सोच भी सके। मेरे प्रस्तुत विचारका भाप का स्पष्टीकरण किया गया और उसमें पुराने प्रमाद खुलामा करें या न करें तो भी मेरा यह पत्र माप अगले भी मौजूद है जो मापने मुझसे चाहे। सीसे पत्रको अनेकान्तमें कृपया अवश्य प्रकाशित कादं जिससे हर एक प्रकाशित कामेकी जरूरत नहीं समकी गई। पदिक विचारवान्को इस बारे में सोचनेका, विचारनेका और कहने लेखको पढ़कर भी भाप पत्र प्रकाशमकी जरूरत मममंगे का तथा मिर्डब करनेका यथेष्ट अवसर मिल सके। तो वह अगली किरणमें प्रकाशित कर दिया जायेगा । पत्र पापको मालूम होगा कि जहाँ जहाँ संभव हो वही में "बिल्कुल गई और मिराचार" जैसी कुछ भारपपरक समी जगह मैं सब फिरकों को एक जगह मिखानेका पच- बातें भापत्तिके योग्य है और इस बातको सूचित करती पाती। इसी कारण कलकत्ता-जैसे विशाल शहरमें और है कि विषयका स्वयं मनन करके उन्महीं खिला गया विशाल जैनबसती वाले स्थानमें सभी किरके वाले हम एक है। पत्रके प्रकाशनसे एक नया विवादस्थान पैदा होगा जगह मिलकर पर्व विशेष ममाते है। परंतुबह पूर्व हममे मीसंभव ,बिसेमापनहीं चाहते औरतीचाहता ऐसा जुना जिसमें किसी फिरोका मतमेद नहीं। वह हूँ। पत्र प्रकाशनके बिना भी सब माममा परस्परम पर्व गुपन यौवशी-महावीरका जन्म दिवस । यदि सहाय-पूर्वक सब हो सकता है कि महोत्सव किन किन ऐसा ही महावीरके प्रथम उपदेनाका स्थान और दिन सभी कामों में किस हद तक श्वेताम्बर समाजका सहयोग प्राप्त पिरकों में निर्विवावरूपसे मान्य हो तो उस स्थान पर हो सकेगा अथवा 'ममेकान्त' सिद्धान्त कही तक जस दिनको मबे जयंती महोत्सवकी पोजनाका विचार अपना रास्ता निकालने में समर्थ हो सकेगा। खासकर ऐसी संगत हो सकता पर जहाँ मूला में ही मेद और विरोध हातमें अब कि भाप जैसे उदार महानुभाष ताम्बरहैवहां सभी चिरकीका सम्मिखित पसे भागना से समान एक मान्य प्रतिनिधिहै। बहरहा उत्सव लिस सोचा गया वह मेरी समकमें नहीं पाता। यह एक तो शासनमारके पवित्र उद्देश्यको लेकर किया जा रहा भुमे बैन किरकों में एकमवा विवादस्यान पैदा कराने उसमें किसीको भी चापति नहीं हो सकती में वोहरसाद बाबीवीपाती है। निवेदक तीनोंडीसम्मवाओं सनोको रसबमें सम्मिलित होने बहादुरसिंह सिंघी लिये निमंत्रित करता बारा भनेक सजन शामिज भी
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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