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________________ व हुए 1-एकवर्ष.तो उत्सब एक प्रमुख स्थानकवासी साधु प्रकट करते आए है। समय समय पर झापसे कितना की. जीके सभापतित्व.डी.मलाया गया था, जो अगले साल प हाड हुमा, अनेकाननकेलिमे लेखोंकी प्रेरणा भी. भी अपने कुछ विचासिंगोंके साथ पधारे थे, परन्तु कहीं की.माई है, एक दोख, प्राप्त भी हुए हैं, अनेकवार अस्त्र; किसी भी प्रकार की भापत्रिका वर्णन नही हो..परमा--सब: स्कता.तथा. अत्तत्राण के कारण, लेखोंके मेजने में श्रापने. काईबहुत ही प्रेमपूर्वक- एमा। ऐसी ही माया मजबूरी:भी जाहिर की है। मार्च मन BE४९ के अनेकान्त, अपने महोत्साहित भी की जातयी। . . में प्रकाशितके, कनि गजमनका पिगल और राजा भारमल्ल', बाकी मापा मह किसना.कि फिर भी दिगम्बर नामका, मेरा लेख-पढ़ कर तो आपने बड़ी प्रसन्नता व्यक्त समाज अपना निर्वाय करने में स्वतंत्र है," इत्यादि यह की थी और स्वत: ही यह लिखा था कि मैं अनेकानाके है.और इसमें जो स्पिरिट संनिहित जान पड़ती उससे लिये इस पिंगल ग्रन्थका सम्पादनादि कर दूंगा। दी सब उत्सव-विषयमें खेताम्बर-समाजकी ओरसे किसी प्रवर परिस्थितियों एवं आपके विषयकी अपनी धारणाके वश, विरोधकी मासा नहीं की जासकती। प्रत्युव इसके...यही वीरशासन-जयन्तीक महोत्सव-सम्बन्धी प्रस्तावकी अस्थायी असा रखी जासकती है कि अब मतभेदके होते हुए भी समितिम भापका नाम भी चुना गया था और बादको शासनप्रचार, साहित्यसम्मेलन.और साहित्मिकप्रदर्शनी अनेकान्त-विशेषाङ्कके मम्गदक-मण्डल में भी आपके नामी जैसे कार्यों में प्रवेतामसारसमाजका अपरय सहयोग प्राप्त योजना की गई थी। इस योजनाकी सूचना देते हुए मैंने होगा। इतना ही नहीं, बक्षिक सह प्रायमें भापके द्वारा आपसे दो बार पत्रद्वारा अपनी स्वीकृति भेजने के लिये निवेप्रयुल हुए तबतक" और "जबतक" ये शम्दों परसे, दन किया और एक बार अनेकान्तकी पिछली किरण द्वारा। तो बहसी माया पती:कि किसी समय निष्पाता मेरे इस निवेदनके उत्तर में आपने जो पत्र भेजनेकी कृपा पूर्वक विष विचार होकर मेरे द्वारा प्रस्तुत किये गये, की हे वह मुझे बड़ा ही अनोखा तथा अभूतपूर्व जान पडा प्राचीन प्रमाओं की महलाका बेतामार समाजद्वारा स्वीकार है। पत्रमें उसे अनेकान्त में प्रकाशित कर देनेका अनुरोध, भी किया जाता है। ऐसी हालत में किसी अमिय प्रसंगके भी है, और इस लिये उसे अधिकल रूपसे नीचे प्रकशित उपस्थित होने की भी कोई बात नहीं है....... किया जाता ह . . , .. . भवदाय. ... . .....जगलकिशोर ... .. ... प.पचरदासजीका अनोखा " पं. मेचरदासजी श्वेतावर जनसमाज एक प्रसिई विज्ञान है, संस्कृत-प्राकृतादि भाषाप्रोके पंडित है, अध्यापन तथा अन्य सम्पादनादिका कार्य करते है और व्याकरणादि: विषयक कुछ स्वतंत्र प्रन्योंका आपने निर्माण भी किया है। माजसे कोई १५-१६ वर्ष पहले, अहमदाबाद रहते हुए, श्राप मेरे कुछ विशेष सम्पक में पाए हैं और तबसे में आप को एक संबनस्वभाव तथा उदार-विचारका त न समझता पारा, आँपके व्यक्तित्वके प्रति मेरा दर तथा प्रेमभाव है और आप भी, जहाँ तक मुझे मालूम हैं, मेरे और मेरे कार्याक प्रति अपनी"दिर तथा प्रेमभाव .... .१२व, भारती निवास सोसायटी, भाई जुगलकिशोरंजी ........ एलिस विज वन्दे मातरम : मैंने माना है कि भाप इतिहासका विपर्यास करने में गे हुए है और दिगंबर तथा तार इन दोनों बंधु." समाजमें ऐक्यकी का बस्य बदनिका भूमिटवलमें चंप्रसर होते जा रहे . ... . .."Sजी भापकी ऐसी परिस्थितिमान मिले हा और पिके प्रति सर्वबा" उपेचम्भाव" भागबाट सी करिशसे 'मापर्कका पत्र निपर भी में एकको भी उत्तर नहीं दे सका। .. में समंजतायााप मेरी पेशामाव" वर्ष समज (शेष अंश टाइटिस तीसरा
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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