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________________ ३५० अनेकान्त [वर्ष ६ पुजारी बहुतने नर-कपि उन्हें केवल कोरी गप्प वा पुरुषको देखकर कहा कि यह पुरुष मुझे अमुक दिन सफेद झूठ ही समझते हैं। प्रत्येक बातको बिना सोचे लन्दनमें मिला था। उसके पतिकी बताई हई तारीख समझे गप्प कह डालनेसे वे जरा भी नहीं हिचकते। ठीक उम दिन तथा ममयसे मिलती थी. जिस दिन परन्तु यह उनकी नासममी है। इस विषयको सम- कि उसने उसके पतिका सन्देश सुनाया था।" मनेके लिए बुद्धिकी आवश्यकता है, जो लोग बुद्धिका यङ्ग-स्टीलिङ्ग फिर लिकते हैं-"सन १७७ ई० दम्बल देना ही अशुभ समझते हैं वे आत्मिक शक्तिके के मितम्बर महीनके प्राग्वीर सप्ताह, स्विडनबर्ग महत्वको क्या समझे? अतः शनःशक्तिके कुछ एक दिन सायंकालके चार बजे इङ्गलैंडस आया और आश्चर्यजनक प्रयोग एक विश्वासपात्र-माननीय ग्रंथसे गोथेनबर्गमें ठहरा। मायङ्काल के समय स्वीसनबर्ग यहाँ उद्धत किये जाने हैं, जिससे नवीन सभ्यता- बाहर गया और उदाममुँह वापम लौट आया। इम भिमानियोंकी आंखें खुल जायें और वे जान सकें कि ममय वह मिस्टेकले के यह भोजन करने गया था, साधारण मी मनःशक्तिके प्रयोग ही जब हमें आश्चर्य- किन्तु दिल भोजनमें नहीं लगता था । इस व्याकुलता चकित कर सकते हैं, तो आत्मशक्तिकी तो बात ही का कारण पूछनेपर उसन कहा--- स्टाकहोममें आग क्या? आत्मिकशक्तिके द्वारा तो, यदि मैं अत्युक्तिपर लगी हुई है और धीरे-धीरे भीषणरुप धारण करती नहीं हूँ, असम्भवको भी सम्भव बनाया जासकता जा रही है। उस जगहसे स्टाकहोम दोसौ मीलकी है। अच्छा आइए-मनःक्तिके कुछ प्रयोग देखिए- दूरीपर था। वह बहुत घबरा गया और बारम्बार अर्बी वैद्य एवीसेना लिखते हैं-“एक मनुष्य बाहर जाता और भीतर आता । उसने कहा कि इस अपनी मनःशक्ति द्वारा अपने शरीरक चाहे जिस समय मेरे एक मित्रके घर में आग लगी हुई है और स्नायुको जड़ बना सकता था।" उमका घर जलकर राख हो गया है। अब आग मेरे मीनीका कहना है-"एक मनुष्यका जीव उसके घग्के पास पहुँच चुकी है । रातक आठ बजे वह शरीरसे बाहर निकलकर,इच्छानुमार स्थानों में भ्रमण फिर घरमे बाहर गया और अत्यन्त प्रसन्नमुखसे करके, फिर उसके शरीरमें लौट प्राता था । और लौटा और बोला-ईश्वरकी बड़ी कृपा हुई, अब फिर उन स्थानोंका वर्णन करता, जिन्हें कि उसके आग बुझ चुकी है । मेरा घर जलनेमें एक घर ही जीवात्माने देखा था।" बीच में था। तीसरे दिन स्टाकहोमस आग लगनकी खबर लेकर एक आदमी आया। उस आदमीका कथन यङ्गस्टीलिङ्ग लिखते हैं-"एक अमेरिकन अपनी और स्विडनबर्गकी बातें अक्षर-अक्षर मिली।" मनाशक्ति द्वारा दूर दूरके स्थानों में तत्काल चला इङ्गलैंण्डमें जाने केलिनन अफ्रिकाक आए हुए जाता था भार उसका शरीर शवके रूप में वहीं पड़ा एक सिहको मनःक्ति अपने वशमें कर लिया था। रहता था । एक जहाजका कमान कहीं चला गया था सिंह बड़ा ही खूख्वार था और हालमें ही बनसे और बहुत दिनों तक नहीं लौटा। उस कप्तानकी स्त्री पकड़कर लाया गया था। लोगोंने उनको सिंहके पिंजरे में ने इस पुरुषसे अपने पतिका वृत्तान्त पूछा । वह घुसकर उसपर अपना अधिकार जमानेके लिए पन्द्रह पुरुष तत्काल ही पास वाली कोठरीमें गया और वहाँ लाख रूपोंकी शर्त बदी था । अन्तमें निश्चित तिथि पहुँचकर उसने अपने शरीरको मूर्छित कर दिया। पर लन्दनके बड़े २ आदमी निर्दिष्ट स्थानपर आगए। कुछ देर बाद वह जागृत हुआ और कहा कि मैं वहाँ जार्ज केलिनने पिंजरेके निकट जाकर सिहपर लन्दन गया था और तुम्हारे पतिसे मिला था। उसने टकटकी लगाकर देखना आरम्भ किया । सिंहकी कहा कि मैं अब जल्दी ही वापस लौटूगा। जब आँखें मिचने लगी । ऐमी दशामें उसने पिंजरेका उसका पति लौट आया तब उसने उस सिद्ध फाटक खोला । सिंहपरसे दृष्टि इट गई थीं; अतएव गया तब लोगा। जब इकटकी लगाकर ने पिंजरेके निकटशनपर आगए।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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