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________________ किरण ] आत्मशक्तिका माहात्म्य ३५१ सिंहने दिलको दहलाने वाली घोर गर्जना की और अगस्त मन् १९३८ ई. की 'माधुरी'-मासिक पिंजरेमें क्रोधपूर्वक झूमने लगा । जार्ज कलिन पत्रिकामें जो लखनऊम निकलती है, "तिब्वतकी कुछ उसके पिंजरेमें घुस गए। मिहकी आंखें मिच गई थीं, चमत्कारपूर्ण घटनाएँ" शीर्षकमे एक लेख देखने को परन्तु उमने केलिनकी तरफ मुँह फाड़ा और घोर मिला। जिमको संक्षेपतः पाठकोंकज्ञानार्थ दिया जाता गर्जना की। तब उन्होंने उसकी नाकपर चाबुक मारा है। यदि विस्तारस देखना हो, तो उस वर्षकी अगस्त और जोरसे डाटकर कहा-'चुप' । इतने में सिंहने मासकी 'माधुरी' देखनेका कष्ट उठावें। उनकी तरफसे मुँह फेर लिया । जार्ज केलनने इस लेखमें श्रीमती 'एलेक्जएड्रा डेविड नील' ने चाबुकसे चारों और एक गोल रेखा बनाई और सिंह जिनकी मातृभाषाच है, अपनी उसी वर्षकी तिब्बत ने उनकी आज्ञानुसार उस रेग्यापर गोल चक्कर यात्राका वर्णन किया है। आप एक बड़ी विदुषी स्त्री लगाया। उसके पश्चात वह पिंजरेने बाहर निकल हैं। आपका वृत्तान्त सबसे अधिक विश्वासनीय, मानआए और द्वार बन्द कर दिया। नीय एवं प्रामाणिक है । तिब्बतके योगी अपन श्राआशा है कि इन उदाहरणोंको पढ़कर पाठकों के त्मिक बलम क्या क्या चमत्कार दिखलाते हैं, इस हृदयमें आत्मिक शक्तिक महत्वकी कुछ जाँच हो विषयमें आप लिखती हैंजायगी-विश्वासको स्थान मिलेगा । शारीरिक शक्ति (१) सैंकड़ों मीलके अन्तरसे तिब्बती योगी, से इस शक्तिका दर्जा बहुत ऊँचा है। शारीरिक महा- सेंकड़ों मीलकी बात समाधि लगाकर मालूम कर लेते शक्ति वह कार्य नहीं कर सकती, जो माधारण मी हैं। आपने इसे सप्रमाण लिखा है। आत्मिक शक्तिक द्वारा सुगमतासे किया जामकता है। (२) असाधारण गतिकी सिद्धि--आप लिखती आजकल तो विद्वान कहे जाने वाले ऐसे व्यक्ति हैं, वे तिब्बती योगी योगके द्वारा कितनी तेजीसे भी पैदा होगए हैं जो 'आत्मा' के अस्तित्वसे ही चल सकते हैं कि जो मागे एक माससे अधिक समय इन्कार करने लग गए हैं । उनकी दृष्टिमें आत्मा, चलने में ले योगसे उसी मार्गको तीन दिनमें तय कर परमात्मा, पुण्य, पाप, धर्म, कर्म केवल लोगोंको सकते हैं। श्रीमतीजीने स्वयं अपनी आंखों एक योगी बहकानेको चीजें है-ढोंगमात्र हैं । यह है विद्वत्ताके को चलते हुए देखा है। नामपर बुद्धिका दीवाला। अनुभव-शक्तिका सर्वथा आपने एक योगीके शरीरको लोहेकी जंजोरोंसे अभाव। बँधा हुआ देखा। कारण पूछनेपर विदित हुआ कि राष्टीय जगतमें हलचल मचाने वाले महात्मा योगसे योगीने अपना शरीर इतना हल्का बना लिया गाँधीने विश्वको दिखला दिया है कि आत्मिक बलसे था कि वह हवामें भी उड़ सकता था। इसीलिए कि अकेला मनुष्य एक बड़ीसे बड़ी शक्तिको कंपायमान कहीं हवामें न उड़ जाए, उसने अपने शरीरको लोहे कर सकता है और संसारको अपनी ओर आकर्षित की सांकलोंसे बाँध रखा था। कर सकता है। (३) बर्फ के बीच शरीरको गर्म रखनेकी असाआत्मिक शक्तिकी महत्ताको समझने में सन्देह न धारण साधनाबना रहे, इसी लिये आत्मशक्तिसे घनिष्ट सम्बन्ध आप लिखती हैं कि बाज़ बात योगी बर्फके रखने वाले कुछ योगके चमत्कार पाठकोंके सन्मुख अन्दर गढ़ा मा खोदकर, उसमें बैठ जाते हैं। और और रखनका प्रयास किया जाता है। आशा ही नहीं उनके नंगे शरीरपर बर्फमें खूब तर किया हुआ कपड़ा वरन् पूर्ण विश्वास है कि फिर आत्मशक्तिके प्रति रक्खा जाता है। वे योगके द्वारा अपने शरीरसे इतनी निर्बल तथा संकुचित विचारों के लिये कोई स्थान ही गर्मी निकालते हैं कि कपड़ा बिलकुल सूख जाता है। नरहेगा। कोई कोई योगी, एक रातमें २०-२० तक कपड़े
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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