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________________ २०६ अनेकान्त [वर्ष ६ xxx हम उनकी लगन, अध्यवसाय, अनुसंधानकी व्यतीत होता है। चिन्तारात्रि-दिन साहित्य क्षेत्रमं किये जाने वाले श्रमकी श्री उमरूंन जैन. एम.ए.एल.एल.बी.रोहतकप्रशंसा करते हैं। ऐस संशोधकोकीमाज में प्रावश्यकता है। अन्तम सत्यकी विजय होती । मलार मायके हम मुख्तार साहबक दार्थ जीवन की कामना करते हैं। द्वाग माहित्य और इतिहामके क्षेत्र में निर्भीकता पूर्वककी गई जैन सन्देश, मथुरा सेवाओंके प्रति यह समारोह हमारे हृदयकी भक्तिका यह सम्मान समारोह विद्वानों के सम्मानकी और एक उद्गार है। महत्वपूर्ण कदम है। श्री चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ, जयपुरजैनमित्र, सूरत - मुन्नार साहब जैनममाजका प्रकाशमान निधि है। उन जैनममाजका यह परम सौभाग्य है कि उसमें आज भी के सम्मानका श्रायोजन स्तुत्य है। पं. जुगलकिशारजी मुख्तार जैसे साहित्य तपस्वी विद्वान साहित्याचार्य श्रीराजकुमार जैन, पपौगमौजूद हैं। वे श्राज अपनी वृद्धावस्थामं किसी भी युवकस मुख्तार साहबने गईगै सादि य माधनामें अपनेको खपा बढ़ कर नसरता, तन्मयता, और हनना पूर्वक काम करते कर जो नमस्कृत सिद्धि पाई, उसके प्रति हमारी श्रद्धांजाल । रा विश्वास है कि उन जैमा विद्वान विदेश में हवा कशा ही अच्छा होता कि इस अवसर पर उन्हें एक सर्वांगहोता तो उसकी सारे संमार में ख्याति होती किन्तु उन्होंने पूर्ण अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जाता। खेर, श्रविण्यमंकी जैनसमाजमें जन्मलिया है, जहां साहित्य सेवकों और धर्म, सही में श्राशा है कि ऐमा अवसर देखनेका सौभाग्य हमें समाजके लिये खपने वालांकी कोई प्रतिष्ठा नहीं की जाती। मिलेगा, सहारनपुरके वन्धुश्रोका उत्साह और व्यवमायति मुख्तार साहब शताफ हों। श्री राजेन्द्रकुमारजीका नेतृत्व इमकी साक्षी है। हिन्दुस्तान, देहली श्री पं० फूलचन्द्र जैन सिद्धान्त शास्त्री, काशी-- पं. जुगलकिशोर मुख्तारके सम्मान-महोत्मवका हम यह श्रायोजन एक श्रेष्ठ परम्पराका प्रारम्भ है। अनुसमर्थन करते हैं। एक तो इस लिये कि किमी भी माहित्य सन्धान जिनका जीवनबत, बुढ़ापेमें भी जिमका पुरुषार्थ सेवीका सम्मान प्रसन्नताकी बात है। दुमरे इस लिये मुख्तार युवकोचित और जैन संस्कृति एवं साहित्यके लिये जिसका साहबने पिछले ३० वर्षसे जैनसाहित्यकी खोज श्रादिका जो मर्वस्व समर्पित, उन महानुभावका जितना भी अभिनन्दन हो, कम है। सततकार्य किया है, वह प्रशंसनीय है। और उनकी लगन श्रीसमेरचन्द दिवाकर, वकील सिवनीनई पीढक लिये स्फूर्ति दायक होगी। जिन शासनके लिये अपना सर्वस्व अर्पण करनेके साथ जैन-साहित्यके विद्वानोंकी इष्टिमें अपने जीवनको जिनवाणीकी सेवामें लगाने वाले व्यक्तियों में श्री देवकीनन्दजी शाखी, कारंजा मुख्तार माहबका स्थान अद्वितीय है। प्राधुनिक शैलीके धुरन्धर विद्वान, जैनसाहित्य की खोज श्री पं० तुलसीरामजैन, बडौतशोष और इतिहासकी सामग्रीके तुलनात्मक पद्धनिसे प्रस्तुत इस स्तुत्य प्रायोजनसे समाजके सच्चे सेवकों में प्रेरणा कर्ता विद्वर्य मुख्तार माहबका सम्मान प्रायोजन महान, और स्फूर्ति श्रायेगी। सफलता चाहता हूँ। पवित्र, मार्गदर्शक और स्तुत्य कार्य है, उन्होंने अपनी बुद्धि, श्री पं०शोभाचन्द भारिल्ल, व्यावर साहस और अयक श्रमसे साहित्यमें अभूतपूर्व कार्य किया है। मुख्तार साहबकी उच्च कोटि के लेखक जनसमाजमें समाज उनकी प्रतिभाको अपनी चीज माने और उनकी उंगलियों पर गिनने योग्य भी नहीं हैं। उनके गुण उन्हें घरोघरको संवर्धित करे। महामानवकी महिमासे मण्डित करते हैं। जैनसमाज ऐसे श्री इन्द्रचन्द्र शास्त्री, मथुरा-- प्रकाण्ड विद्वान, कुशल लेखक, निर्भीकवक्ता, सावधान साहित्योदारमें प्रारकी बराबरी करने वाला समाजमें संपादक और कर्मयोगीको पाकर गौरवान्वित है। उनके अन्य कोई व्यक्ति नहीं। आपका प्रत्येक क्षण साहित्यसेवामें प्रतिमेरी हार्दिक भद्धांजलि
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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