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________________ किरण ५] मम्मानमहोत्सवका देशव्यापी स्वागत 'विक्रम' के सम्दक श्री पं० सूर्यनारायणजी व्याम, 'जैनमित्र के सम्पादक श्री मृरु.चंद वि.नदासजी ज्यातिषाचार्य, उज्जैन कापड़िया, सूरतमुख्तार महोदय जैसे क.र्मण्य विद्वानका मान वास्तव में हमारे ४० वर्ष के पुगने मित्र श्री जुगलकिशोरजी सुरभागतीकी पूजा है। वर्षों पूर्व 'अनेकान्त' में मुख्तार शतजीवी हो। उनका शान-दान और माहित्यसेवा अपरिमित महाशयके जनसाहित्य सम्बन्धी संशोधनात्मक स्वरूपसे है। उत्मव सफल हो। परिचित हो मैं श्राकर्षित हुना था । वस्तुत: जैसाहित्यकी 'खण्डेलवाल जैनहितेच्छ' के उपसम्पादक उनकी सेवाएँ बहुत मूल्यवान है। 'अनेकान्त' में उनके श्री भंवरलालजी न्यायतीथे जयपुरपापक रूपका द न होता है। वे चिरजीवी को और सााह मुख्तार साइबकी देन इतनी महान है कि उससे जैन त्यसेवासे समाजका कल्याण करते रहें। ममाज कभी उऋण नहीं हो सकता। चौकी बीज और 'प्रदीप' सम्पादक श्री जगदीश एम०ए० अनुसंधानक बलपर ग्रंथों एवं श्राचायोंके नाम्पर फैली हुई प्रायोजन नई दिशाका श्रोर प्रयाण्का सूचक है। यह भ्रममूलक धारणाओंको दूरकर मस्या दिग्दर्शन कराना ही सफल दो। श्रापके जीवनका उद्देश्य रहा है। वे साहित्यसेवक हैं और 'विश्वमित्र' (देहली) के सम्पादक, महान त्यागी भी। वे दीर्घबी हो। श्री पं० सत्यदेव विद्यालंकार जैनमन्देशके पूर्व सम्पादक श्रीव पूरचन्द जैन, श्रारराआयोजन महत्वपूर्ण है, इमसे मान्योंके मानकी ओर माननीय मुख्तार महोदयका मम्मान-श्रयान स्तुल्य हिन्दी-संसारका न श्राव.र्षित दोगा । मुख्नार साहबका है। उनकी सेवाश्रीको देखते हुए, उनके प्रति हम जितनी कार्य महत्वपूर्ण है। वे शतायु हो। भी श्रद्धा प्रकट करें कम है। वे दीर्घजीवी में। 'वीर अर्जुन'के मादक श्रीगमगोगलजी विद्यालंकार जैनप्रचारक,' के सम्पादक श्री हीरालालजी कोशलभगवान उत्सवको मफल करें और मुख्तार सादचकी यह प्रायोजन महारनपुर वालोंके लिये गौरवकी बात साधना निरन्तर गनिशील हो। है । मुख्तार साहबके गम्भीर प्रयत्न अगली पीढ़ीके लिये भी 'सावधान' (नागपुर) के सम्पादक श्रीविश्वभरप्रसादशर्मा स्मरणीय रहेंगे । इतिहासके सम्बन्धमें उनके निर्णय श्रकाइस महत्वपूर्ण प्रायोजनके लिये हार्दिक बधाई । ट्य रहे हैं और जैन अजैन विद्वानांने उनका मान किया ईश्वर माननीय मुख्तार महोदयको निगयु करें। 'आदर्श' (हरिद्वार) के सम्पादक श्री रामचन्द्र शर्मा है। वे शतायु हो। मैं श्रद्धेय पं० जुगलकिशोरजीको एक लेखक और श्री भोलानाथ दरख्शा, बुलन्दशहर-- मम्पादकके रूपमें बीसो वर्षोसे जानता हूँ। कई बार उनकी पं. जुगलकिशोरी तो वास्तव में इम योग्य है कि मौम्य मूर्तिके दर्शन भी किये हैं । प्रदर्शनके इम युग में उनकी दिपनिको हृदयमन्दिर में स्थापित करके उनका पचीसों वर्ष तक निरन्तर माहित्यसेवा करते हुए और अपनी गुणानुवाद किया जाये। हजागेकी सम्पदाका उमी कार्य के लिये उत्सर्ग करके भी ___ 'खण्डलवाल जैनहितेच्छ इन्दौर-- मम्मानप्राप्तिके प्रलोभनसे दूर रहना मुझे तो उनका यह मुख्तार साहब जैनमादित्य इतिहास और पुरातत्व के अत्यन्त आकर्षक लोकोत्तर गुण सदैव प्रेरित करता रहा है। अनुसन्धान में अपना जीवन समपंगा कर जैन वाड्मयकी वे युग युग जिएं। जो अपूर्व मेवा की है. वह कभी भलाई नहीं जा सकती। 'परिवारवन्धु' के सम्पादक श्री जगन्मोहनलालजी + + + + जैन ममाजका महान उपकार किया है। हम शास्त्री, कटनी-- मादर उनका अभिनन्दन करते हैं। विद्वानों के लिये अपने जीवन मे श्रादर्श उपस्थित करने 'जैन बोधक, शोलापुरवाले पुण्यशाली विद्वान मुख्नार मात्र चिरजीवी हो । मुख्तार साहब साहित्य व ऐनिहासिक क्षेत्रके विद्वान हैं
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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