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________________ २०४ अनेकान्त [वर्ष बौद्धभिक्षु श्री मानन्द कौशल्यायन, सारनाथ तथा देश सेवामें संलग्न नवयुवकोंको साहस व मार्गकी मेरी शुभकामना आपके साथ है। मुख्तार महोदय प्राप्ति होती रहे। जैसे पूजनीयोंकी पूजा करना मंगलकारी है। प्राचार्य श्री चतुरसैनजी शास्त्री, देहली-- डा०श्री सूर्यकान्तजी एम० ए०, लाहौर मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। पाश्चात्य शिक्षापद्धतिसे सुगचित न होते हुए भी हमारे पत्रकारोंकी शुभकामनाएं अनुसंधान में पाश्चात्य विद्वानोसे होड़ लेनेवाले कुछ बिग्ले विद्वानों में मुख्तार माहवका श्रेष्ठ स्थान है। भारतीय संस्कृति और विशेषत: जैन संस्कृतिपर श्रापकी छाप अटल रहेगी। 'विशालभारत' कलकत्ताके वर्तमान सम्पादक, मैं हृदयसे उनका अभिनन्दन करता हूँ। श्री मोहनसिहजी सेंगर-- बा० श्री पी० के० आचार्य प्रयाग विद्यालय जिस देशमें जीते जी लेखकोंकी कोई पूछ नहीं होती ___सम्पूर्ण सफलता चाहता हूँ। और मरनेके बाद उनके स्मारक खड़े करने की योजनाएं प्रोफेसर श्री पं० महावीरप्रसाद मिश्र व्याकरणाचार्य- बनती हैं, वहाँ प्रसिद्ध ले.क एवं अनुसंधाना श्रीजुगलकिशोर मुख्तारो युगल: किशोर इति य: साहारने पत्रत, जी मुख्तारक सम्मानका यह स्तुत्य आयोजन कर सहारनपुर मान्यः जैनमतान्तशास्त्रनिपुण: श्रीवारसेवाग्रहे । ने हिन्दी संसारके सामने एक अनुकरणीय उदाहरण कृत्वा षष्टितमान् सुखललितान् ग्रंथान् स्वलक्षार्धकम् उपस्थित किया है। दत्वा सप्त तपेन षष्टितमके प्राप्तश्चिरायुर्भवेत् ॥ श्री जुगलकिशोरजं.ने भारतीय साहित्य, इतिहास और श्री भगवानदासजी केला-वृन्दावन - संस्कृतिको जो सेवा की है, उससे कौन हिन्दी प्रेमी पार्शचन मुख्तार साहबकी लगन, धुन और सेवाओंका विचार न होगा। उनके इस साहित्यिक तप और साधना के लिये करते हुए यह सम्मान महोत्सव सर्वथा उचित एवं हमारा रोम गेम चिरन्तनकाल तक उनका ऋणी रहेगा। भावश्यक है। वे दीर्घजीवी हो! श्री पहाड़ीजी, सहायकमंत्री हिसा०स० प्रयाग हिन्दुस्तान (देहली) के सम्पादक, ___ समारोहकी पूर्ण सफलता चाहता हूँ। श्री मुकुटविहारी वर्मा - 'भारतमेंअंग्रेजी राज्य के लेखक, श्रीसुन्दरलालजी प्रयाग मुख्तार साहबके प्रति मेग अभिनन्दन । उत्सबकी भी जुगलकिशोर मुख्तार और उनका कार्य पढ़ गया सफलता चाहता हूँ। विद्याके इस.अनन्य प्रेम, इस जबरदस्त लगन, सत्यकी खोजमें इस परिश्रमशीलता और संसारसाहित्यकी इस बहु 'देशदूत' प्रयाग) के सम्पादक, मूल्य और निस्मार्थ सेवाके लिये मुख्तार साहबके चरणों में श्री ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'मेरा बारम्बार नमस्कार कहें। मेरी हार्दिक अभिलाषा है मुख्सार साहब पुगनं साहित्यसेवी हैं, उनका सम्मान कि उन जैसे चरित्रवान और विद्वान् प्रेमियोंके प्रतापसे वे वास्तवमें हिन्दीका सम्मान है। मुझे आशा है कि यह कृत्रिम और हानिकर दीवारें जल्दीसे जल्दी टें, जिन्होंने उत्सव हिन्दी साहित्यिकोंके सम्मानके लिये एक आदर्श सम्पूर्ण मानव समाजको जैन, अजैन, हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई उपस्थित करेगा। इत्यादिके अलग,२ दलोंमें बांट रक्खा है। 'हिन्दी मिलाप' (लाहौर) के सम्पादक, श्रीमती विद्यावती सेठ बी०ए० श्री देवदत्त शर्माप्राचार्या कन्या गुरुकुल, देहरादून सहारनपुरने इस सम्मानमहोत्सव के रूपमें हिन्दीसंसार हृदयसे आपके साथ हूँ। भगवान वयोवृद्ध प्रतिष्ठित को नया पथ दिखाया है। साहित्य तपस्वी मुख्तार महोदय साहित्यिक श्री मुख्तार साहबको चिरायु करें, जिससे साहित्य को प्रणाम !
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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