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________________ मम्मान-महोत्सवका देशव्यापी स्वागत श्री श्रीप्रकाशजी एम० एल०ए०, बनारस पुगनत्व विभागाध्यक्ष, साहित्याचा, लगनके साथ, तत्परतासे, कार्य करना प्रशंसनीय है। श्री विश्वेश्वरनाथजी रेउ, जोधपुरमुख्तार साहब की वर्षगांठ पर उनका सम्मान करना उचित श्री मुख्तारजीके लिये मंगल कामना करता हूँ। है। सफलता चाहता हूँ । श्री नाथूरामजी प्रेमी, बम्बईहमारे विद्वानोंकी शुभकामनाएं श्रायोजन अतिशय अभिनन्दनीय है । यह इस बान का प्रमाण है कि जैनसमाज अप उन पुरुषरमको भा पहचानने लगा है, जिन्होने अनवरत परिश्रम और तपम्पा हिन्दी साहित्यसम्मेलनके वतमान सभापति, से जैनसाहित्य और इतिहासको प्रकाश में लाने और समृद्ध श्री पं० माखनलालजी चतुर्वेदी, खएडवा बनाने में अपने आपको मिटा दिया है। मेरी हार्दिक कामा तार में-पं. जुगलकिशोर मुख्नारके अभिनन्दन में पूर है कि मुख्तार साइब चिर काल तक जीवित रहकर अपने हृदयसे सम्मिलित हूँ। कार्यको सात चलाते रहें । हिन्दी साहित्यसम्मेलनके (निर्वाचित) भावी सभापति श्री जैनेन्द्रकुमारजी, दिल्ली-- विद्यावाचस्पति श्री इन्द्रजी, देहली-- मुख्तार साहबकी साहित्यसेवाएँ चिरस्मरणीय हैं और वीरपूजा जातियोंकी जीवनशक्ति का चिन्ह है । श्री जानि जीवनशकिका निजी उनका सम्मान करके समाज अपनेको कृतार्थ करता है। जुगलकिशोरजीका मम्मान वस्तुनःस्वभाषाप्रेम और निष्काम मान्य मुख्नार साहब के प्रति मेग अभिनन्दन । सेवाकी भावनाका सम्मान है। हम सबमें यह समारोह उसी प्राचार्य श्री नरदेव शास्त्री. वेदतीर्थ, ज्वालापुरभावनाका जागरण करे और पूर्णतया सफल हो। मैं मुख्तारजीका अभिनन्दन करता हूँ। श्रापन जैन विश्वविख्यात दार्शनिक भगवानदासजी काशी- साहित्यके अनुसन्धान में स्तुत्य प्रयत्न किया है। वे बधाई श्री जुगलकिशोरजी अद्भुत लगन, धुन, परिश्रम और पात्र हैं। जेनसाहित्य ज्ञान के विद्वान हैं। ऐसे सजनका सार्वजनिक श्री दरबारीलालजी सत्यभक्त, वर्धा- . श्रादर होना बहुत उचित है। मुख्तार साहबकी सेवाएं चिरम्मरणीय है।इम देशका महाकवि श्री मैथिलीशरणजी गुप्त, परिभाषामें वृद्ध होने पर भी उनकी कर्मटता और उत्साह अटूट है और मुझे आशा है कि वे काफी समय तक अपनी कविवर श्री सियारामशरणजी गुप्त, झाँमी सेवासि समाजको लाभान्वित करते रहेंगे। अपने सम्मानीय पुरुषोंका आदर करना हमारी श्रद्धा श्री भगवतीप्रसादजी वाजपेयी, प्रयागऔर आत्मचेतनाका सूचक है; अतथए श्री जुगलकिशोरजी मुख्तारका सामूहिक अभिवादन सर्वथा उचित है। हम यह आयोजन करके सहारनपुरके साथियों ने बहुत बड़ा लोग विनम्रभावसे मुख्तार महोदय के प्रति अपना श्रादर काम किया। पिछले १५ वर्षों में इस प्रकार हमने अपने प्रकट कर उत्सव संयोजकोंको बधाई देते हैं। साधकोंका मान किया होता, तो अाज हिन्दी साहित्य अपने सर्वाङ्गमें सफल दिवाई देता । इस महोत्सवसे श्रद्धेय मरतार नागरी प्रचारिणी सभा काशाके सभापति महोदयका अभिनन्दन होगा और देश के दूसरे भागांम श्री पं० रामनारयण मिश्र जीवनभर साहित्य साधना करनेवाले वयोवृद्ध विद्वानांक, मनसे साथ हूँ । ईश्वर मुग्न्तार महोदयको चिगयु करे, सम्मानमहोत्सव मनाने की प्रवृत्ति जागेगी। मुग्न्ता मायने जिसमें हम उनके गवेषणापूर्ण कार्योसे अधिकाधिक लाभ जैनसाहित्य में शोधका कार्य कर पथप्रदर्शन किया है और उठाते रहें। उनका मानमहोत्सव भी पथप्रदर्शक ही होगा।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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