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________________ २०२ अनेकान्त [वर्ष ६ प्रिसिपल उप्रसैनजी, मेरठ विद्वानके सम्मानका आयोजन योग्य हाथों में है। सहारनपुर पूज्य पण्डितजी समाजकी एक बड़ी पूंजी है। श्रापका ने ला• जम्बूपमादजी, सुमेरचन्दजी, बा.सूर्यभान जी, जीवनभरका कार्य अद्वितीय है और समाजके इतिहास पं. जुगल किशारजी, बा. ज्योतिप्रसाद जी, बा. कौशल स्वर्णाक्षरों में लिया जायेगा। अन्धेरी घड़योंमें पथ-प्रदर्शन, प्रसाद जी जेसे कार्यकर्ता-रत्न और अंमती चन्द्रवती ऋषभरूदियों को भंगकर जैननत्वका प्रकाश. निर्भय हो धर्मतत्व सैन जैन, लेखनमीजी एम.एल. सी.और जयसन्ती देवी का प्रचार, जान हथेली पर रखकर अपने स्वतंत्र विचारांका जेमी विदुषियोंको जन्म दिया है। और इसके लिये सहाप्रचार श्राप ही जैसे महारथीका काम था। रनपुर को गर्व करनेका अधिकार है। मेरे जैसे कितने ही नवयुवकों को उन्होंने प्रोत्साहन देकर पं. जुगलकिशोरजी अथक परिश्रमी, सर्वस्थत्यागी, आगे बढ़ाया है। संमारके लिये जैन साहित्य और धर्मके सौंदर्य का प्रदर्शन श्री सिंघई धन्यकुमार जैन, रईस कटनी करनेवाले महान विद्वान हैं। वे अपनी शैल के विद्वानों में यह सम्मान समारोह नि:सन्देह नूतन दिशाकी भोर भी समत्तिम हैं। उनका सम्मान हमारी जा तको प्रेरणा प्रयाण है। मुखतार माहब उज्वल ज्योतिर्मान नक्षत्रकी देगा. यह विश्वास है। तरह सदैव देदीप्यमान रहें । श्री ला जगतप्रसादजी रि०अकाटेण्ट जनरल, देहलीतारमें-अनुपस्थिति के लिये खिन्न हूँ। पूज्य मुग्वतार श्रापकी भावनानोके माथ हूँ । पण्डितज के कार्यका साहब को भगवान दीर्घायु करें और उनकी महान साधना प्रशंसक है। उनकी श्री समन्तभद्र संबंधी खोज महत्वपूर्ण हमारी नई पीढ़ीको प्रेरणा देती रहे। है । जैन विद्वानों में उनका स्थान अद्वितीय है और जैन मशीरवहादुर, श्री सेठ गुलाबचन्द टोंगिया, इन्दौर- साहित्यके भारतीय एवं यूरोपीय खोपियों में महत्वपूर्ण स्थान है। हमारी समाज देरमें जागी, यरना साइित्यतपस्वी मुख- श्री कन्हैयालाल जैन,सभापत प्रो. वैद्यसम्मेलन कानपुर तार साइबका सम्मान 'मेरी भावना के प्रकाशित होते ही नारमें-उत्सव सफल हो । पं. जुगलकिशोरजीका होना चाहिये था। मेरी भावना अन्तर्राष्ट्रीय पाठकी वस्तु अभिनन्दन करता हूं। बन गई है। मैं १६२२ से इसका चिन्तन करता हूं। उन । श्री महन्त घनश्याम गिरिजी, हरद्वारकी खोजोंका सही महत्व हमें कुछ दिन बाद शात होगा। श्री जुगल किशोरजीने अपनी ऐतिहासिक गवेषण श्री श्री राजकुमारसिहजी एम० ए० F R.E.S. इन्दौर-दा द्वारा बास्तव में जैन साहित्यका बड़ा उपकार किया है । उन साहित्यसाधक, जैन वाकमयको सेवामें, अपने जीवन की निस्पृह कार्यसंलग्नता साहित्य-समाज-सेवियों के लिये " का बहुभाग लगाने वाले वोरसेवामन्दिरके सन्त, अन्वेषक पथप्रदर्शक है। पं. जुगल किशोर मुख्तारके सम्मानमहोत्मयकी अन्त:करगा दानवीर श्री सरदारीमल जैन गोटेवाले, देहलीसे सफलता चाहता हूँ। जैन साहित्यके धुरन्धर विद्वान, निहासश, पुरातत्वज्ञ, आपने वीर-मेवा-मन्दिरके लिये अपना सर्वस्व । जैनधर्मदिवाकर श्री मुख्तार साहब दोघजीवी हों। समाजको सौंप एक आदर्श उपस्थित किया है। उनका 'अनेकान्त' हमारी संग्रहणीय निधि है। राब० श्री ला०उल्फतरायजी रि० इन्जीनियर, मेरटजैन समाजका कर्तव्य है कि अपने सहयोगमे वीर सेवा जेन विद्वानों के लिये स्फूर्तिदायक, जैनसमाजके अनमन्दिरके कार्यको पूर्ण करे। मोल रत्न श्री मुख्तार साहबका सम्मानमहोत्सव सफल हो। श्रीवलबीरचन्दजी वी० ए० एल० एल० बी० रईस, सर टेकचन्द बक्शी, जस्टिस पंजाब हाईकोर्टआनरेरी मैजिष्ट्रेट, मुजफ्फरनगर मैं मुख्नार साहबके त्यागको प्रशंसा करता हूँ और यह प्रसन्नताकी बात है कि इस प्रकार एक महान उत्सबकी सफलता चाहता हूँ।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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