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________________ २२ अनेक.न्त [वर्ष ६ कोंके यहाँ पका हुमा पाया था। उन्होंने उसे प्रकाशित भी पढ़े अलमम्त रहते हैं युही दिनको विताते हैं । करा दिया। उसकी मूल प्रति पूनाके 'भारत इतिहास संशो- न देखें हम तरफ उनकी जो हमसे नेक मुँह फेरें। भक प्रयत' में सुरक्षित है। जब विष्णु भटको पूनामें जो दिलसे हमसे मिलते हैं झुक उनको देख जाते हैं यह खबर मिली कि श्रीमती बायजाबाई सिंधिया मधुरामें नहीं रहती फिकर हमको कि लावें तेल औ लकड़ी। सर्वतोमुख या करानेवाली हैं तो आपने मथुरा मानेका मिले तो हलवे छन जावें नहीं झूरी उड़ाते हैं। निश्चय किया। पिताजीसे आज्ञा मांगी तो उन्होंने उत्तर सुनो यागे जो सुख चाहो तो पचड़ेसे गृहस्थीके । दिया "उधर अपने लोग बहुत कम हैं, मागं कठिन है, छुटी फक्कड़ ना लेला यही हम तो सिखाते हैं। लोग भोग और गाँजा पीनेवाले हैं और मथुराकी त्रियाँ हम मत भूलना यारो बसे हम पास 'मनमोहन ।' मायावी होती हैं।" हुई है देर, जाते हैं, तुम्हारा शुभ मनाते हैं। नियोंकि मायावी होनेकी बात पढ़कर हैंसी पाये बिना नहीं यदि स्वर्गीय द्विवेदीजीने अपना जीवनचरित लिख रहती। दक्षिणवालोंके लिये मथुराकी खियाँ मायावी होती दिया होता तो हमें दौलतपुरसे ३६ मील दूर रायबरेलीको हैं औ र उत्सरवाना लिये बंगालकी थियौँ जादूगरनी पाटा दाल पीठपर लादे हुए पैदल जाने वाले उस तपस्वी होती है, जो भादमीको बैल बना देती हैं और बंगालियोंके बालकके औ. भी वृतान्त सुननेको मिलते, जोरोटी बनालिये कामरूप (प्रासाम) की खिया कपटी और भयंकर ना नहीं जानता था और जो इस लिए दाल हीमें पाटेकी होती हैं। बंगाल में पूरे ग्यारह वर्ष रहनेके बाद भी हम टिकियों डालकर और पकाकर खालिया करता था। बखियाकेताऊ नहीं बने, मनुष्य ही बने रहे, यही इस संसार दुःस्वमय है और उसमें निरन्तर दुर्घटनाएँ घटा बातका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि ये बाते कोरी गप हैं। ही करती हैं। यदि कोई मनुष्य हृदयवेदनाको चित्रित कर दे हो तो विष्णुभटको मथुराकी मायावी स्त्रियोंसे सुरक्षित तो वह बहुत दिनों तक जीवित रह सकती है। कोई बारह रखने के लिये उनके चाचा भी साथ हो लिये थे और इन्हीं सौ वर्ष पहलेके पोचई नामक किसी चीनी कविने अपनी चाचा भतीजेका यात्रा-वृत्तान्त आज E७ वर्ष बाद एक तीन वर्षकी स्वर्गीय पुत्री स्वर्ण-घंटीके विषय में एक कविता ऐतिहासिक ग्रन्थ बन गया है! लिखी थी. वह अब भी जीवित है। क्या ही अच्छा होता यदि हिन्दीके धुरंधर विद्वान् जब कविवर शकरजीने कौर सुदी ३ संवत् ११८१ को मागे मानेवाली संतानके लिये अपनी अनुभूतियोंको सुर- अपनी डायरी में निम्नलिखित पंक्तियों लिखी थीं उस समय चिस रखते । कितने पाठकोंको यह मालूम है कि महामना की उनकी हार्दिक वेदनाका अनुमान करना भी कठिन हैमालवीयजीने भाजसे ६०-६२ वर्ष पहले कालेजके दिनों में "महाकाल कद्र देवाय नमः" एक प्रहसन लिखा था जिसमें मकदसिंहके रूपमें अपना हाय आज कार सुदी ३ सं० ११ वि० बुधवारको चित्रण किया था ? मालवीयजीकी कविता सुन लीजिये दिनके १ बजेपर प्यारा ज्येष्ठ पुत्र उमाशंकर मुझ बूढ़े वापसे अपने सम्बन्धमें पहिले ही स्वर्गको चला गया। हाय बेटा, अब मेरी क्या गरे जूहीके हैं गजरे पड़ा रङ्गी दुपट्टा तन । दुर्गति होगी। प्यारा पुत्र पाँच माससे बीमार था। बहुतेरा भला क्या पूछिए धोती तो ढाकेसे मँगाते हैं। इलाज किया कराया कुछ नी लाभ न हुभा । प्यारे पुत्रका कभी हम वारनिश पहिनें, कभी पंजाबका जोड़ा। क्रोध बढ़ता ही गया, बहुतेरा समझाया, कुछ फल न मिला। हमेशा पास डण्डा है ये 'झाड़सिंह' गाते हैं। मरनेके दिन अच्छा भला बातें कर रहा है। यकायक साँस न ऊधोसे हमें लेना न माधोका हमें देना। बढ़ने लगा । चि. हरिशंकर और श्यामलाल ऋषिने करें पैदा जो खाते हैं व दुखियोंको खिलाते हैं। बोलते बोलते ही अचेत होनेपर जमीनपर ले लिया। केवल नहीं डिप्टी बना चाहैं न चाहैं हम तसिल्दारी। दो मिनट चुप रहा, दम निकल गया । हाय बेटा !
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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