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________________ किरण १] हिन्दीका प्रथम श्रात्मचरित उमाशंकर अब कहाँ ! आज उमाशंकर सुत प्यारा, हाय मेरे अनुज स्वर्गीय रामनारायण चतुर्वेदी एम. ए. हुधा हम सबसे न्यारा। । (अध्यापक श्रागरा कालेज)की माकस्मिक मृत्युपर महात्मा १-१०-२४ गांधीजीने सेगाँव वर्धासे लिखा था"हे शंकर कविराज सुख संकटद्वारा छिना। "जो रास्ते रामनारायण गये वही रास्ते हम सब निरख दिवाली आज, हाय उमाशंकर बिना ।।" को जाना होगा । समयका ही फरक है। उसमें शोक संसारमें न जाने कितने अभागे पिताघोंपर यह वज्रपात क्या , होता है और पुत्रविहीन कितनी दिवालियाँ उन्हें अपने निस्सन्देह जिस रास्ते उस चीनी कषिकी पुत्री स्वर्णजीवनमें देखनी पड़ती हैं। घंटी' भाजसे बारहसौ वर्ष पहले गई थी, उसी रास्ते भाई जब स्वर्गीय पण्डित पसिंहजी शर्माने महाकवि प्रक- उमाशंकरजी गये, वहीं महाकविका प्यारा पुत्र हाशम गया, बरके छोटे सबके हाशमकी बेवक्त मौतपर समवेदनाका पत्र उसी धामको हेमचन्द्र और रामनारायण गये और उसी भेजा था तो उनके जवाबमें अकबरसाहबने लिखा था:- लोककी यात्रा की कविवर बनारसीदासके नौ बालकोंने । "अगरचे हवादसे आलम (सांसारिक विपत्तियों केवल मुक्तभोगी ही अनुमानकर सकते हैं दुःखके उस की दुर्घटनाएँ) पेशे नज़र रहते हैं और नसीहत । स्रोतका, जहांसे ये पंक्तियाँ निकली थी-- हासिल किया करता है, लेकिन हाशम मेरा पूरा कायम “नी बालक हुए मुए, रहे नारि नर दोह। मुकाम (प्रतिनिधि, कवितामम्पत्तिका सच्चा उत्तरा- ज्यौं तरवर पतझार है, रहैं हूँठसे होइ ।।" धिकारी) तय्यार हो रहा था और तमाम दोस्तों और Inside out (अन्त:करणका प्रकटीकरण)नामक कद्र अफजाओंसे मुहब्बत रखता था। उसकी जुदाईका पुस्तकके लेखकने संमारके ढाईमी मारमचरितोंका विश्लेषण नेचरल तौरपर चेहद कलक हुश्रा." करके उक्त पुस्तक लिखी थी और अन्तमें इस परिणाम उस समय अकबरने एक कविता लिखी थी, जिसका पर पहुंचे थे कि सर्वश्रेष्ठ प्रात्मचरित के लिए तोन गुण एक पद्य यह है अत्यन्त भावश्यक हैं--(१) वे संक्षिप्त हों, (२) उनमें "आगोशमे सिधारा मुझसे यह कहनेवाला थोदेमें बहुत बात कही गई हो, (३) पक्षपातरहित हों। 'श्रब्धा ! सूनाइए तो क्या आपने कहा है। अर्धकथानक इस कसौटी पर निस्सन्देह खरा उतरता अशयार हसरत-श्रागी कहनेकी ताब किसको। है और यदि इसका अंग्रेजी अनुवाद कभी प्रकाशित हो तो अब हर नज़र है नीहा, हर सांस ममिया है।" हमें पाश्चर्य न होगा। कौन अनुमान कर सकता है उस भयर हार्दिकवेदना कविवर बनारसीदासमी जानते थे कि पात्मचरित का जिससे प्रेरित होकर इस पुस्तक 'बर्धकथानक' के लिखते समय वे कैसा असंभव कार्य हाथमें ले रहे है। सम्पादक बन्धुवर श्री नाथूराम जी प्रेमीने ये पटियां उन्होंने कहा भी था कि एक जीवकी बीस घंटेमें जितनी लिखी हैं भिन्न भिन्न दशाएँ होती है उन्हें केवली या सर्व ही जाम "जो अपनी स्वर्गीया जननी केही समान निष्कपट सकता है और वह भी टीक डीक तौरपर कह नहीं सकताऔर साधु-चरित था, जिसने ज्ञानकी विविध शाखाओं "जीवकी एक दिन दमा होइ जेतीक। का विशाल अध्ययन और मनन किया था, जो शीघ्र ही सो कहि न सके केवली, जानै यद्यपि ठीक ॥" भारती माताके चरणोंमें अनेक भेंट चढ़ानेके मनसूवे, इसी भावको माहेन नामक एक अमरीकन बेखकमे बाँध रहा था, इन शब्दोंमें प्रकट किया था:-- परन्तु जिसे देवने अकालमें ही उठा लिया, What a very little part of a perअपने उसी एकमात्र पुत्र स्व.हेमचन्द्रको।" son's life are his acts and his words !
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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