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________________ पं० जुगलकिशोर मुख्तारका भाषण किरण ५ ] आप लिखते हैं- "सुश्रद्धा मम ते मते स्मृतिरपि त्वय्यचनं चापि ते हस्तावअलये कथा-श्रुतिरतः कर्णोऽचि संप्रेषणे । सुस्तुत्यां व्यमनं शिरोनतिपरं सेवेशी येन ते तेजस्वी सुजनोऽहमेव सुकृती तेनैव तेजःपते ॥" अर्थात् -- हे वीरभगवन् ! आपके मत में अथवा आपके ही विषय में मेरी सुश्रद्धा है-अन्धश्रद्धा नहीं, मेरी स्मृति आपको ही अपना विषय बनाये हुए है-- मैं स्मरण भी आपका ही करता हूँ. पूजन भी मैं आपका ही किया करता हूँ. मेरे हाथ आपको ही प्रणामाजाल करने के निमित्त हैं, मेरे कान आपकी ही गुणकथा सुननेमें लीन रहते हैं, मेरी आँखें आपके ही रूपको देखने में लगी रहती हैं, मुझे जो व्यसन है वह भी आपकी सुन्दर स्तुतियोंके रचनेका है और मेरा मस्तक आपको ही प्रणाम करनेमें तत्पर रहता है; इस प्रकारकी चूँकि मेरी सेवा है-- मैं निरन्तर ही आपका इस तरहपर सेवन किया करता हूँ। इससे हे तेजःपते !-- हे केवलज्ञान-स्वामिन्! मैं तेजस्वी हूँ, सुजन हूँ और सुकृती ( पुण्यवान् ) हूँ -- यह सब आपकी सेवाका ही प्रताप है। १६७ वीरजिनेन्द्र के ऐसे सच्चे एवं महान् सेवककी आराधना करके ही मैं वीरजिनेन्द्र तक पहुँचना चाहता हूँ । इसीले उनकी निरन्तर स्मृतिके लिये मैंने पहले देहलीमें समन्तभद्राश्रम खोला और उसके कोई सातवर्ष बाद सरसावा में वीरसेवामन्दिरको स्थापना की है । वीरमेवामन्दिरको स्थापनाको साढ़े सात वर्षसे ऊपर हो गये हैं। अब यह फलदार पौधा फल लाने लगा है। यदि समाजकी इस पर कृपादृष्टि रही, समाजने इसकी उपयोगिता एवं श्रावश्यकता को समझा, इसकी अच्छी देख-भाल रक्खी, इसकी जरूरियातको पूरा किया और इसे सब फोरसे सींचा तो उसे इसके सुमधुर फल बराबर चखनेको मिलते रहेंगे और यह मन्दिर समाजकी बहुत कुछ ज़रूरियातको पूरा करने में समर्थ हो सकेगा, ऐसी दृढ आशा है । ता० ५-१२-१६४३ जुगलकिशोर मुखभर मुख़्तार साहबका जीवन-चरित्र प्रबन्धक श्री दिगम्बर जैन सुकृत-फण्ड', सुमारी हमें यह जान कर महान हर्ष हो रहा है कि श्राजन्म समाज, समाजोद्धार और जैन माहित्यकी अटूट सेवा करने वाले महान आत्मा जुगलकिशोर जी जैनकी ६७ वीं वषगांठ मनाई जा रही है। आज दो दिन बाद निमंत्रण मिल रहा है नहीं तो संस्था तपस्त्रीजीकी सेवामें अपना प्रतिनिधि भेज कर श्रद्धाञ्जलि ममर्पित करती । आशा है अधिक से अधिक व्यक्तियोंने भाग लिया होगा। मुख्तार साहब एक महान आदर्श एवं त्यागी महापुरुष हैं। उन्होंने जो समाज और साहित्यकी अजोड़ सेवायें की हैं वे लेखनी में नहीं लिख सकते। आपका जितना गुण गाया जाय वह सब थोड़ा है । मुख्तार साहबकी जीवनी एक साधु वृत्तिकी जीवनी है। यह साधारण पुरुष नहीं वल्कि महान परोपकारी सीधी-साधी वेष-भूषा में छिपा हुवा एक बादलोंमें छिपे सूर्य-समान त्यागात्मा पुरुष हैं। प्रत्येक व्यक्तिको अनुकरण करने योग्य इस पुरुषकी दिनचर्या और कार्यक्रम है । इस लिये आपसे प्रार्थना है कि एक विस्तृत जीवनी छपाई जावे और लागत मूल्यमें वितरण की जावे, जिससे दूसरे पुरुषोंको भी महान लाभ हो । यह जीवनी ही न रहे बल्कि धार्मिक ग्रन्थ हो जाये ।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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