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________________ किरण ५] पंडितजीके सन्दम्बमें विद्वानोंकी टिप्पणियाँ १८१ उसको प्रकाशमें नहीं लाते इसी कारण उनकी कृनि मार्मिक अग्ने ज्ञानयज्ञको इनमा प्रदीम किया कि उसकी लपटोंसे होनी है। बड़े बड़े पग्गड़बंध पण्डित मुलसने लगे; और इसी पकरा'अनेकान्त' पत्र उनके अनथक परिश्रमका चिन्ह है। वे इटमें उनने इम तपस्वीको गालियाँ देनी शुरू की, इसे भला यद्यपि वयोवृद्ध हैं किन्तु उनकी । परता युवकवृन्दको बुग कहा, बहिष्कृत ठहराया और इसकी बुराई में जितना लजित करती है। उनके बाल (शारीरिक) स्वास्थ्यके विषय जो बन सकता था वह सब कुछ किया । लेकिन धन्य है में तो मैं कुछ कह नहीं सकता क्योंकि मैं उनके समीप उस साधकको. कि जिसने किमी भी परिस्थितिमें अपनी केवल एक बार २० घंटे रहा हूँ परन्तु यह मेरा निश्चित मत साधनाको नहीं छोड़ा । जब 'जिन बच में शंका न धार' है कि उनका आध्यात्मिक स्वास्थ्य इस अनवरत साहित्य की प्रोटमें भद्रबाहु, कुन्दकुन्द, उमास्वामी और जिनसेन सेवासे ही स्वस्थ रहता है। विना नवीन अनुसन्धान और प्राचार्य के नामपर निर्मित जाली ग्रंथोंको जिनवाणी काकर उपयोगी लेख लिखे कदापि उन्हें चैन नहीं पाती, उनकी __ चलाया जारहा था, और इनमें वर्णित जैन सिद्धान्तविरोधी पाचन क्रिया ठीक नहीं रहती। बातोंके विरुद्ध (सब कुछ जानते हुए भी) एक शब्द भी श्रीमान पं. जुगल किशोरजी मुख्तार इतने अधिक उच्चारित करनेका किसीका साहस नहीं था, तब इस अध्यवसायी होने पर भी निरांभमानी एवं सरलचित्त है किन्तु परीक्षाप्रधानी, निडर साहित्यसाधुने अपनी लोइलेस्थनी उठाई साथ ही स्पष्ट वक्ता है। उनका आहार विहार सात्विक, शुद्ध और धर्मग्रंथोंके नामपर अपनी अद्भुत समीक्षाओं द्वाग है। बाहरी दिखावेसे उन्हें घृणा है। समाजको आश्चर्य में डाल दिया। मुझे यद्यपि उनकी कतिपय सैद्धान्तिक मान्यताओं यदि मुख्तार सा• ने यह साहस न किया होता और (भुज्यमान गोत्रकर्म परिवर्तनीय है श्रादि) से सहमति नहीं उनकी ग्रंथपरीक्षाएँ प्रगट नहीं हुई होनी तो आज इस युग है किन्तु उनकी अमूल्य नि:स्पृह सेवाओंसे मैं प्रभावित हूँ में भी कोई यह साहस न कर पाता, और हम सब श्राज उनकी एक एक सेवा अपने लिये श्राप ही उदाहरण है। भी 'गोबरपंथी' साहित्यको जिनवाणी मानकर पूजते रहते । इस रूपसे उनका त्याग और तप प्रत्येक विद्वान और मैंने जो चर्चासागर, दानविचार और सुधर्मभावकाचार गृहस्थ के लिये अादर्श है। की समीक्षायें लिखी है, उनके लिए मुझे मुख्य प्रेरणा श्री मुख्तार साहबकी प्रन्यपरीक्षा श्रोसे ही मिली है। यदि - साहित्यतपस्वीको वंदन मुख्तार सा.बने ग्रन्थपरीक्षाका मार्ग इतना सरल, निष्कण्टक श्री परमेष्ठीदाम जैन, न्यायतीथे, सूरत और निर्भय न बना दिया हंता मो में उक्त समीक्षायें परमादरणीय मुख्तार माहब बीसवीं सदीक अग्रगण्य इनिज नहीं लिख पाता और मैं तथा मेरे जैसे ही अन्य साहित्यतास्त्रियों में से हैं । तपस्वी तो कभी कभी उपमर्ग और हजागे युवक श्राज़ भी अंधश्रद्धाके घोर अंधकारमें पड़े रहते। परीषहोंकी मारसे अवगकर चलित और मार्गभ्रष्ट भी होगये मुख्तार साहब शानसाधनाके महान् तपस्वी है। उनका हैं किन्तु माहित्यके तपस्वीने विरोधियों, अंधभक्तों या कहर. मुझ पर तथा मुझ जैसे का-सैकड़ों-हजारों श्रादमियों पर पंथियों के बहिष्कार, गालिप्रदान अथवा उपसगौकी कमी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमें बहुन पेश है। उनके इस सम्मान कोई परबार नहीं की, और अपनी साधनामें सतत लगा ममव पर मैं भी उन्हें एक साहित्य तपस्याके रूपमें बंदन रहा। करता हूँ। आजसे ३६ वर्ष पूर्व जब मेग जन्म भी नहीं हुआ था, तब यह साहित्यतपस्वी तपाराधनासे समाज के दिलको दहला रहा था। वह ऐसे प्रशानान्धकारका समय था जब पालो- श्री जमनारास व्यास बी०ए०, साहित्यरत्न चना या सभीक्षाकी एक ही किरण समाजकी आँखों को श्री जुगलकिशोरजी मुख्तार एक महान तपस्वी है। चकचंधिया देती थी। किन्तु उस वक्त इस 'युगवीर' ने श्रापका तप संसार परितापकोहग्या करने वाला है। आपके
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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