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________________ किरण ५] पंडितजीके सम्बन्ध विद्वानोंकी टिप्पणियाँ ९७६ है। सहारनपुरका यह समारोह यही बताना है और यह प्रेमीके सम्मिलित सहयोगने जनहितैषी' को उस समयके मंगलसूचक है। हिन्दी मासिक साहित्यका प्रतिनिधिपत्र सिद्ध कर दिया था। जैनियोंकी इस नवजागति के निर्माणकार्यमें श्री पं. श्री मुख्तारजी और प्रेमीजीके प्रभावसे हिन्दीके जैन जैन जुगलकिशोरजी मुख्तारका भाग मुख्य है। उन्होंने वह दिग्गज विद्वान 'हितषी' में नियमितरूपसे लिखते थे। इस ठोस कार्य किया है जो इस कालकी सन्तनिके लिये ही तरह हितेषी' के कितने ही लगनशील पाठक भविष्यमें खद नहीं, बल्कि भागामी श्रानेवाली अनेक सन्तनियोके शन- लेखक, कवि और साहित्यकार बन गये। हितैषीके अनुकपथको प्रकाशित करता रहेगा। मैंने मुख्तार साइबके रण पर जैन साहित्य जगत में अब कई पत्र प्रकाशित दर्शन उनको पहचानने के बहुत दिनों बाद किए थे। मैंने हुये और होरहे हैं पर हितैषी कोई भी नहीं बन सका । उनको जैनहितैषी' में प्रकाशित लेखों और ग्रंथपरीक्षा' इभी तरह श्री मुख्तार जुगलकिशोरजी द्वारा प्रवर्तित भनेसदृश समालोचनात्मक निबन्धोंके सहारेसे पहचाना था। कान्' उनकी अपनी वस्तु है-उसमें उनकी सम्पादन उनके इस प्रकारके लेखोसे युवकोंमे श्रद्धा और विवेक प्रतिभाके निखरे हुये स्वरूपका दर्शन कर हम कृतकृत्य हो भावोकी हदताहई और यह समाजके लिये विशेष जाते हैं। जैन पत्रकारके रूपमें उनका व्यक्तित्व महान है महत्वकी बात है। उन्होंने जो कार्य किया था स्थायीहै और उनके सम्पादनके पत्रों में हम उनकी अमिट छाप पाते हैं। और जैन साहित्यमें अमर रहेगा। आधुनिक जैन साहित्यके निर्माताके रूपमें लोग उनके इतिहासकी शोध-खाजमें उनकी नीति एक वैज्ञानिक श्रादर्शको श्राज जितना समझे, उससे भी अधिक कुछ की नीति है परन्तु वह कभी २ श्रावश्यकतासे अधिक समका समझनेको भी आवश्यकता है। आजका साहित्य संसार कठोर और 'रिजर्व' (Reserve) से जंचते हैं। इतिहास उनके तपस्वी जीवनकी महान सेवाश्रोका भले ही मूल्याङ्कन वेत्ता किसी भी अनुश्रुनिको उस समय तक नहीं टुकराते न कर सके पर कलकी दुनिया उनकी जीवनयापी खोजों जब तक कि वह किसी अन्य पृष्ट प्रमाणसे बाधित न हो; और सेवानोंसे भारावनत होकर उनका उचित अभिनन्दन किन्तु मुख्नार साहब शायद सम्प्रदायगत पक्षपातके लांछन । - करनेके साथ २ जीवन ज्योतिको जाति के मार्गपर लगानेके से बचनेके भयसे, कभी २ दिगम्बगम्नायी अनुश्रुतियोंको लिये उनके ही ज्वलन्त श्रादर्शका अवलम्बन ग्रहण करेगी। स्वीकार करने में आनाकानी करते मिलते हैं। शायद मेरी शास्त्रीय विषयोंको अपनी निरन्तर खोजके वनपर जनयह धारणा गलत है, परन्तु इससे मुख्तार साहबकी साधारण के लिये सुलभ और बोधगम्य भाषामें उपस्थितकर विशाल समुदारता तो प्रगट हत्ती ही है। वे माम्प्रदायिकता उन्होंने जैन धर्म और जेन जानका महा उपकार किया है। से परे और धार्मिकनासे श्रोतप्रोत है। जनयोंक. वे गौरव उनकी श्रायुका प्रत्येक कण विचाम्पमनमें व्यतीत होनेसे हैं। उनके तत्वावधान में शीघ्र ही एक 'जैनमाहित्यसम्मेलन श्राजके जैनजगन में उनके प्राचार्यत्वको मानसे इन्कार सम्पन्न हो, यह मेरी कामना है। करना जैनस्वको लाँछिन करना है। जैन माहित्यका उद्धार करनेके साथ २ प्रकारान्तरसे उनकी कार्यश्री शक्तिने प्राचार्य श्री मुख्तारजी हिन्दी साहित्यको भी यथेष्ट बल पहुँचाया है। विद्याभूषण श्री मोहनशर्मा इटाश्सी जैन साहित्य जगत में वैसे आज बमों जैनपत्र-पत्रिकाओं अमरकृतियोंके सृष्टा की तूती बोल रही है पर एक वह समय भी था जब 'जैन- मुख्तार श्री जुगलकिशोरजीका पुगतत्वप्रेम हमारे हितैषी' सहश सुसम्पादित पत्रके प्रकाशनने जेनसाहित्यक्षेत्र लिये गौरवकी बात रही है। गत बीस वर्षसे उन्होंने सत्माही नहीं, हिन्दी साहित्यक्षेत्र तकमें जागरूकता उत्पन्न करदी हिस्यकी सष्टि में व्यतीत किये हैं । जैन साहित्यक. सम्बन्धमें थी। पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार और बाबू नाथूरामजी आपने जो खोजें की है, उनका स्थायी महत्व है। जिन्हें
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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