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________________ विद्वानोंकी टिप्पणियाँ सात विशेषताएँ निमित्तरष्टया प्रोक्तं तपोभिर्जनरलकैः । धर्मोपदेशनैरन्यवादिदातिशातनः ॥ (श्री दौलतराम 'मित्र', इन्दौर) नृपचेतोहरैः भव्यैः कान्यैःशब्दार्यसुन्दरैः। कहा जाता है कि जिसने तर्क करना सीख लिया उस सद्भिः शौर्येण तत्कार्य शाशनस्य प्रकाशनं ।। की बुद्धि यदि सौ जन्ममें भी शुद्ध होजाय तो पाथर्य है। रुचि प्रवर्तने यस्य जैनशासन भासने। परन्तु हम देख रहे हैं कि पं. जुगलकिशोरजीने पूरे तार्किक हस्ते तस्य स्थिता मुक्तिरितिसूत्रे निगयते ॥ रहकर भी अपनी बुद्धि शुद्ध बनाली है। उनमें श्रद्धात्मक -उत्तरपुराण प्रास्तिक्य है, ब्रह्मचर्य है, परिग्रहहीनता है और निष्काम पण्डितजीकी यह तीसरी विशेषता है। कर्मठता है। x नास्तिक और चरित्रहीन लोग बुढ़ापेमें या मरते समय दुनिया में सबको खुश नहीं रखा जा सकता । जो बुद्धिके शुद्ध होनेपर प्रायः यो पछताया करते है कि- व्यक्ति सत्कर्तव्यमार्गी है, उसके विरोधी पैदा हुए बिना पंडिताई माथेचदी पूर्व जन्मके पाप । नहीं रा सकते. सस्कर्तव्यवश पंडितजीने जालसाज कुग्रंथऔरोंको उपदेश दे कोरे रह गये श्राप ॥ कारोंकी कमर तोड़ने में--समालोचना करने में और उनके इस बुढ़ापेमें पंडितजीको इस प्रकारका कोई पछतावा अनुयायी कुपथगामियोंकी टोलीको फोड़ने में कोई कसर नहीं नहीं है। पंडितजीकी यह पहली विशेषता है। रखी । पंडितजीने जनमतकी नहीं किन्तु जनहितकी परवाह की। पंडितजीकी यह चौथी विशेषता है। पंडितजीके कोई संतान नहीं है किसी अनुभवीने कहा है कि हमारे पूर्वज यो विद्वान थे--यो खोजी इस तरह "पुमानत्यंत मेधावी चतुर्वेकं समश्नुते। हम गुण-गाथा गाया करते हैं। परन्तु पंडितजी जैसे विद्वान् अल्पायुरनपस्यो वा दरिद्रो वा रजान्वित:॥ यदि आज मौजूद न होते तो हमें दुनियासे यह सुनना देखा गया है कि सन्तानहीन लोग अत्यन्त लोभी, पड़ता किसंकीर्ण और चिडचिड़े होते हैं और किसी सम्बन्धीके पुत्र You have no enemies, you say ? को दत्तक बनाकर अपना मन बनाते हैं। पर मुख्तारजीने Alas Imy friend. the boast is foor. विवेकपूर्वक अपनी सारी सम्पत्ति समाजको दान कर दी है He who has mingled in the pray अपना मोह किसी एकमें सीमित न कर संसारको अपनी Of duty. that the brave endure पात्मीयताके क्षेत्र में ले लिया है और इस प्रकार वे अपनी Must have made foes1 If you have एवं दूसरोंकी प्रसन्नताके कारण बन गये हैं। पण्डितजीकी none यह दूसरी विशेषता है। Small is the work you have done, You've hit no traitor on the hip जैनधर्म प्रचारके लिये जो अष्ट निमित्त बतलाये गये You've never turned the wrong to है, उनमेंसे अनेक निमित्तोके द्वारा पंडितजीने जैनधर्मका right काफी प्रचार किया है। प्राचार्य श्री गुणभद्रने ऐसे प्रचारक You've been a coward in the fight. को मुक्तिका अधिकारी बनलाया है-- ( Charles Mackay )
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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