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________________ १७६ अनेकान्त [वर्षे ६ इस उत्सव में बाहरसे लगभग १५० सज्जन पधारे आजाते है, समाज उन्हें अपना शृङ्गार मानता है, पर थे, उनमेंसे जिनके परिचयमें आनेका हमें अवसर समाजकी वास्तविक शक्ति तो वे मूक नागरिक हैं, जो मिल सका, उनपर हमने यहाँ संक्षेपमें कुछ कह दिया बिना प्रदर्शनके व्यवस्था और सौन्दर्य के साथ अपने है। इसका यह अर्थ नहीं होता, कि शेष अतिथि गृहस्थोंका संचालन करते हैं। इस उत्सवके श्रद्धालु मान्य न थे या उनका महत्व कुछ कम है। समाजमें उन मूक पर महामन्य अतिथियोंको हमारा प्रणाम ! कुछ लोग अपनी सार्वजनिक प्रवृत्तियों के कारण सामने वीरपूजाका आदर्श श्री महेन्द्रजी आगरा आदर्श अनुसंधाता (डाक्टर श्री ए. एन. उपाध्याय, एम० ए० डी. लिट. कोल्हापुर) (एटा जेलसे एक मित्र द्वारा) पण्डित जुगल किशोरजीके प्रति मेरे मनमें गहरा मादरभाव है । शानप्राप्तिकी की प्यास, गम्भीर मध्ययन, साहित्यिक गुत्थियोंको सुनमामेका अद्भुत ढंग और सीधी-सची समालोचना, इन सब,गुणोंने उन्हें एक आदर्श अनुसन्धाता बना दिया है। मुझे यह जानकर बदी प्रसन्नता हुई कि जैनसमाजके अद्वितीय विद्वान और इतिहासविद श्रीमान मुख्तार साहबका सम्मान समारोह मनाया गया है। जैन समाजमें यह उत्सव अपने ढंगका अपूर्व है और इसका बबा महत्व है। यदि इस समय मैं परवश न होता, तो स्वयं उपस्थित होकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता। यदि जैन समाजने इसी प्रकार वीर पूजाका भादर्श सदैव अपने सामने रखा तो उससे समाजका माहित होगा-समाज मागे बढ़ेगा। जैन साहित्यकी उन्होंने जो सेवा की है, वहन केवल सदैव जीवित रहेगी, युवकोंका पथप्रदर्शन भी करती रहेगी। उन्होंने सदैव कठोर जीवन व्यतीत किया है और ज्ञानप्राप्तिके लिये सब कुछ न्योछावर कर दिया है। वे अधिकाधिक सम्मानके पात्र है। मुख्तार साहकी विद्वता, समाजसेवा, साहिस्विक अनुष्ठान और त्याग जैन समाज ही नहीं, भारतीय मानके लिये भावरी ।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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