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________________ हमारे सभापति : एक अध्ययन श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' "इधर पाध्ये यहाँ है राजेन्द्रकुमारजी" पाये थे, पर उन्होंने निमन्त्रणकी प्रतीक्षा नहीं की और ठीक भाई कौशलप्रसाद ने कोरसे हमें पुकारा और हम समय वे घोषित स्थानपर पहुँच गये, जैसे अपनी आँखों में वे सब सिमट कर एक कम्पार्टमेण्ट के सामने इकट्ठे होगये। उस समय केवल परिषदके जनरल सेक्रेट्री थे। श्री जुगलकिशोर सम्मान समिति द्वारा आयोजित सम्मान- तकल्लुफसे द्र, 'बड़े श्रादमियों' के सर्वग्रासी रोग समारोहका सभापतित्व करनेके लिये भारत बैंकके संचालक 'दरबारीपन' से निर्लिप्त, एक कर्मठ समाज सेवक-अपनी श्री राजेन्द्रकुमारजी देहलीसे सहारनपुर प्रा रहे थे और हम जिम्मेदारियोंके प्रति सचेष्ट ! अपने घनके बलपर, पार्टीके सब उन्हें लेने स्टेशनपर आये थे। बहुमतका सहारा लेकर बने जनरल सेक्रेट्री नहीं, मुझे लगा राजेन्द्रकुमार जी जिस कम्पार्टमेण्टमें थे, उसके लेटफार्म जैसे वे जन्मजात जनरल सेक्रेट्री है। की ओर वाले द्वारमें चाभी लगी xxx थी । इममें से कोई दौड़ कर कार्यकारिणीके बाद इस प्रदेश गार्ड के पास गया, कोई टी. टी.के, के कार्यकर्ताओंकी मीटिंग हुई। पर राजेन्द्रकुमारजी अचंचल थे। परिषदके कार्यक्रमपर श्राप बोलेकोई तीन मिनिट में चाभी आई। सुलझे हुए, श्रृंखलाबड, व्यर्थ इन ३ मिनटों में उन्हं ने एक बार विस्तारसे बचे-बचे, संयत और भी बाहर नहीं झाँका, उत्सुकनाहीन, बहुत मीठे। समाजकी समस्याओपर झुंझलाहटहीन, स्थिर, शान्त और उन्होंने अध्ययन किया है, मनन और अनुद्विग्न ! मुझे लगा, जैसे किया है, परिस्थितियोंका तारतम्य उनके जीवनकीइतनी महान सफलता जोड़कर अपनी सम्पत्ति निर्धारित की कुंजी मैं पा गया यह स्थिरता, की है; वे उनमें रम गये है, घम उद्वेगके समय भी शान्त रहनेकी गये हैं और फलस्वरूप जहां वे क्षमता-स्थिरप्रशस! समाजके मौलिक तत्वोंके परिज्ञाता xxx हैं, वहां उन तत्वोंमें बाइरसे, समय वे स्वागताध्यक्षके भवनमें ठहरे के प्रवाहमें आमिली कुरूपताओंसे थे और दिगम्बर जैनपरिषदकी कार्य श्री राजेन्द्रकुमार जी भी परिचित और दोनोंको अलग कारिगीका अधिवेशन श्री ला• ऋषभसेनजीकी कोठीपर अलग देखने-परखने और दूसरों के सामने उसे रखनेकी होना था। राजेन्द्रकुमारजी परिषद के जनरल सेक्रेट्री प्रतिभा भी उनमें है, यह इस भाषचने कहा। और उन्होंने अधिवेशनका समय दो बजे रक्खा था। x ठोक दो बजे वे स्वयं प्रा पहुंचे और बिना एक मिनिट भी इसी मीटिंग में सहारनपुरकोपरिषदका एक केन्द्र बनाया कहीं उलझे उन्होंने कार्यकारिणीका कार्य प्रारम्भ कर दिया। गया । उसके संयोजक-पदके लिये दो नाम पाये । उन राजेन्द्रकुमारजी प्राजकी व्यापारिक दुनियाके प्रथम दोनोंने भी बारी बारीसे परस्पर एक दूसरेका समर्थन किया भेडीके मनुष्य है, फिर सहारनपुरमें वे सभापतिके रूपमें और फलत: यह प्रस्ताव हुया कि दोनोको ही संयुक्त संयोजक
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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