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________________ १४४ अनेकान्त [वर्षे ६ अरहर, पालक, बाथू, घी, दूध, दही, देशी शकर (बूग) दूरी बात ब्रह्मचर्य रक्षा के लिये जो परमावश्यक हैमेंधा नमक और शुद्ध पके फल इत्यादि सब सात्विक आहार वह व्यायाम है। हमें नितपति थोड़ा बहुत व्यायाममें सम्मिलित हैं। अत्यन्त गर्म तथा तीक्ष्ण और गरिष्ठ, जिसका मर्वोत्तम प्रकार डण्ड-बैठक करना है-अवश्य कामवासनाको भड़काने वाले, उत्तेजक भोजन-लालमिर्च करना चाहिए । इमसे हमाग शरीर सुदृढ़, बलवान और खटाई तेल, हींग, गर्म मसाले प्याज, लहान, उड़दकी चुस्त बनेगा। सुम्त-प्रमादी और निर्बल शरीरमें ही प्रायः दाल, मसूर, मरसों, तेल और धीमें तले हुए पदार्थ-पूड़ी, कामवासना उत्पन्न होती है। इनके मिवाय, हमारे लिये कचौड़ी, मालपुश्रा, मिठाई, शगब, चाय, काफी, कोकेन, यह श्रावश्यक है-कि हम सदा सत्संगतिका अवलम्बन करें। अफ्रीम, भांग, नम्बाकू इत्यादि निकृष्ट भोजनों और चाट, विचार सर्वदा शुद्ध और पवित्र रक्खें। उच्च साहित्यका दही-बड़े श्रादि चटपटी चीन से परहेज रखना चाहिए। स्वाध्याय करके अपने विचारोको उन्नत बनायें। गन्देनावल सर्वदा हल्के, सादे और पौष्टिक आहारका उपयोग करना नाटक, उपन्यास और स्वाँग तथा सीनेमाश्रोंक, नाचगानेके चाहिए। तभी हम ब्रह्मचर्य-रक्षामें सफल हो सकेंगे। इमें साहित्यको पाम न आने दें। अपने जीवनको सादगीकी अपनी जिन्दा पर काबू (control) करना पड़ेगा। किसी प्रांनमूर्ति बनाः। विलासिता रूपी विषको पास न श्राने दें। अंग्रेस कविने कहा है-When you can con- शरीरका भाँति-भाँति शृङ्गार करके उसे कामी न बनावें। quer your tongue only you are sure शुद्ध स्वदेशी खादी और अन्य शुद्ध स्वदेशी वस्तुओंसे to conquer your whole body & mind अपने शरीग्की अावश्यकताअोंको पूरा करें। तभी हम at ease. अर्थात्-यदि तुम जिव्हाको वशमें कर लो, ब्रह्मचर्य रूसी महामंत्रका श्राराधन कर सकेंगे और संसार तो तुम्हारे मन और शरीर अनायाम वशमें हो जायेंगे, के हृदय में अपनी धाक जमाते हुए कह सकेंगेकोई सन्देह नहीं है। मादा भोजद ही सर्वोत्तम भोजन है। हम जाग गए, सब समझ गए, (simplest is the best food) जितने गरिष्ठ अब करके कुछ दिखला देंगे। कीमती भोजन है-वे सार हीन हैं। उनमें कई तत्त्व नहीं हाँ, विश्व-गगन में अपने को, है। पैसे और स्वास्थ्य दोनोंकी बर्बादी है। फिर एक बार चमका देंगे। भनेकान्त-साहित्यके प्रचारकी योजना भावश्यकता वीरसेवामन्दिरको दो ऐसे सेवाभावी योग्य विद्वानोंकी अनेकान्तमें जो महत्वका उपयोगी ठोस साहित्य निक- आवश्यकता है जिनसे एक हिसाव कितावकै काममें निपुणं बता, हम चाहते हैं उसका जनतामें अधिकाधिक रूपसे हो-पाकायदा हिसाब-किताव रखते हुए वीरसेवामन्दिर प्रचार होवे । इस लिए यह योजना की गई है कि चतुर्थ की सारी सम्पत्तिकी अच्छी देख रेख और पूरी संभाल वर्ष और पांचवें वर्ष विशेषाशको जिनकी पृष्ठसंख्या रख सके। दूसरे विद्वान संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी प्रक जमशः १२. .. और मूल्य) ), नाम रीनिंग तथा पत्र-व्यवहारके काममें दम होने चाहियें और मात्रके मू।) ) पर वितरण किया जाये। अत: यदि वे संस्कृत, प्राकृत तथा अंग्रेजीका हिन्दीमें बना बानी महाशयोंको मंदिरों, बायोरियों, परीजोत्तीर्ण विचा अनुवाद भी कर सकते हों तो ज्यादा बेहतर है। वेतन पियों और अजैन विद्वानों भादिको भेंट करनेके सियेबाहे योग्यतानुसार दिया जायगा। जो बिहान मानाचा उन्हें जिस अंककी ११,१०,१.. कापियां एक साथ मनाकर पूरे परिचयके साथ नीचे लिखे पते पर पत्रव्यवहार करना प्रचार-कार्यमें अपना सहयोग प्रदान करना चाहिये। छोटेलाल जैन (कलकत्ता वाले) प्रचारार्थ पोटेज भी नहीं लिया जायगा। सभापति वीरसेवामन्दिर-समिति वीरसेवामन्दिर सरसावा जि. सहारनपुर सरसावा जि. सहारनपुर
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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