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________________ १२६ अनेकान्त [वर्ष ६ गवर्नर साहब या कोई दूसरे उच्चाधिकारी प्रसन्न होंगे छोड दिये हैं और यह प्रार्डर जारी कर दिया है कि जो और उस प्रसन्नताके उपलपमें उसे मानरेरी मजिष्टेट कोई भोजनके लिये आवे उसे भोजन दिया जावे, नतीजा या रायबहादुर जैसा कोई पद प्रदान करेंगे अथवा उस यह हुआ कि उसके भोजनालय पर अधिकतर ऐसे सण्डेके बढ़ते हुए करोंमें कमी होगी और अमुक केसमें उसके मुपण्डे और गुरदे लोगों की भीड़ लगी रहती है जो स्वयं अनुकूल फैसला हो सकेगा। (३) तीसरेने कुछ ईर्षा-भाव मजदूरी करके अपना पेट भर सकते है--दयाके अथवा तथा व्यापारिक रष्टिको लयमें रख कर दान दिया है। उस मुफ्त भोजन पानेके पात्र नहीं जो धकामुकी करके अधिके पडौसी अथवा प्रतिद्वंद्वीने ५० हजारका का दान किया काँश गरीब भुखमरोंको भोजनशालाके द्वार तक भी पहुंचने था, रसे नीचा दिखाने, उसकी प्रतिष्टा कम करने और नहीं देते और स्वयं खा-पीकर चले जाते हैं तथा कुछ अपनी धाक तथा साख जमा कर कुछ व्यापारिक लाभ भोजन साथ भी ले जाते हैं। और इस तरह जिन गरीबोंके उठानेकी तरफ उसका प्रधान बच्य रहा है। (४) चौथेका वास्ते भोजनशाला खोली गई है उन्हें बहुत ही कम हृदय सचमुच अकाल-पीडितोंके दुखसे द्रवीभूत हुश्रा है भोजन मिल पाता है। प्रत्युत इसके, धनीराम नामके एक और उसने मानवीय कर्तव्य समझ कर स्वेच्छासे विना पांचवें सेठ हैं, जो ३-४ लाख रुपये की सम्पत्तिकेहीमालिक किसी लौकिक लाभको लक्ष्यमें रक्खे वह दान दिया है। हैं। उनका भी हृदय बंगालके अकाल-पीडिौको देख कर बतलाइन चार बड़ा दानी कौनसा सेठ और वास्तव में द्रवीभूत हया है. उन्होंने भी मानवीय कर्तव्य जिस अन्नदानीको तुमने अभी बढ़ा दानी बतलाया है वह समझ कर स्वेच्छासे बिना किसी लौकिक लाभको लक्ष्यमें यदि इनमेंसे पहले नम्बरका सेठ हो तब भी क्या वह उस रक्खे दो लाखका दान दिया है और उससे अपनी एक दानीसे बड़ा दानी है जिसने स्वेच्छासे बिना किसी दबावके भोजनशाला खुलवाई है। साथ ही, भोजनशालाकी ऐसी घायल सैनिकोंकी बुरी हालतको देख कर उन पर रहम विधि-व्यवस्था की है, जिससे वे भोजनपात्र गरीव भुखमरे खाते हुए और उनके अपराधादिकी बातको भी ध्यानमें न ही भोजन पासकें जिनको लक्ष्य करके भोजनशाला खोली नाते हुए उनकी मईमपट्टीके लिये दो लाख रुपयेका दान गई है। उसने भोजनशाखाका प्रबन्ध अपने दो योग्य पुत्रों दिया है? के सुपुर्द कर दिया है. जिनकी सुव्यवस्थासे कोई सण्डा-मुसविद्यार्थी--इन चारोंमें बड़ा दानी चौथे नम्बरका सेठ रडा अथवा अपात्र व्यक्ति भोजनशालाफे अहातेके है, जो दानकी ठीक स्पिरिटको लिये हुए है। बाकी तो अन्दर घुसने भी नहीं पाना, जिसके जो योग्य है वही दानके व्यापारी हैं। पहले नम्बरके सेठको तो वास्तव में पाविक भोजन उसे दिया जता है और उन दीन-अनायों दानी ही न कहना चाहिये, उसे तो दो लाख रुपयेका अन्न तथा विधवा-पाहजोको उनके घरपर भी भोजन पहुंचाया पक प्रकारसे छीना गया है, वह तो दान-फलकाअधिकारी भी जाता है जो लज्जाके मारे भोजनशालाके द्वार तक नहीं पा नहीं है, और इस लिये घायल सैनिकोंकी महमपट्टीके लिये सकते और इस लिय जिन्हें भोजनके अभावमें घर पर ही स्वेच्छासे दयाभाव-पूर्वक दो लाग्यका दान करने वालेसे पड़े पड़े मरजाना मंजूर है। अब बतलानी इन दोनों वह बड़ा दानी कैसे हो सकता है? नहीं हो सकता। सेठों में कौन बड़ा दानी है?--वही चौथे नम्बर वाला सेठ अध्यापक--मालूम होना है अब तुम विषयको ठीक बहा दानी है जिसे तुमने अभी बहुतोंकी तुलनामें बड़ा समम रहे हो। अच्छा, इतना और जानलो कि-'चौथे बतलाया है? अथवा पाँच नम्बरका यह सेठ धनीराम नम्बरका सेठ करोडोंकी सम्पत्तिका धनी है, उसके यहाँ बड़ा दानी है? कारण सहित प्रकट कगे। प्रतिदिन लाखों रुपये का व्यापार होता है और हर साल विद्यार्थी उत्तरके लिये कुछ सोचने ही लगा था कि सब खर्च देकर उसे दस लाख रूपये के करीबकी बचतरहती इतनेमें अध्यापकजी बोल पदे-'इसमें तो सोचनेकी है। उसने दो लाख रुपयेकेदानसे अपना एक भोजनालय जरा भी बात नहीं है, यह स्पष्ट है कि चौथे नम्बर वाले खुलवा दिया है, भोजन वितरण करने के लिये कुछ नौकर सेठकी पोजीशन बड़ी है, उसकी माली हालत सेठ पनी
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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