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________________ किरण ४] अनेकान्त-रस-लहरी १२५ अध्यापक-वह बडा दानी कैसे है? ज़रा समझा कर घायल सैनिकोंकी महम-पट्टीके लिये स्वेरछासे दवाबतलायो। और खासकर इस बानको स्पष्ट करके दिख- ___ दारूका दान देने वाला पिछले दो दानियों-मौसदानी लामो कि वह घायल मैनियोंके लिये मर्हमपट्टीका सामान और हथियारदानीमे बहा करूर है, परन्तु वह बंगालके दान करने वाले दानीसे भी बड़ा दानी क्यों कर है? घोर अकाल से पीडित प्राणियोंकी रक्षार्थ का दान करने विद्यार्थी--माँसकी बत्पत्ति प्रायः जीवधातसं होती है। वाले में बहा नहीं है। क्योंकि अन्यके राष्ट्र पर अाक्रमण जो मांसका दान करता है वह दूसरे निरपराध जीवों के करने के लिये टचत सैनिक दूसोंको घायल करने और स्वयं घातमें सहायक होता है और इस लिये मानवतासे गिर कर घायल होनेकी ज़िम्मेदारीको खुद अपने सिर पर उठाते हैं. हिंसात्मक अपराधका भागी बनता है, जिससे उसका अपना अपराध करते हुए घायल होते हैं और अच्छे होने पर आगे उपकार न हो कर अपकार होता है। और जिन्हें मॉम- भी अपगध करने-कमेक निरपराध प्रा.गायों तकवा घात भोजन कराया जाता है वे भी उस जीवघातके अनुमोदक करने की इच्छा रखते हैं, इस लिये चे उतने दयाके प.त्र तथा प्रकारान्तरसे सहायक होकर अपराधके भागी बनते हैं। नहीं जितने कि बंगालके उक्त अकाल-गीडित दयाके पात्र माथ ही मौम भोजनसे उनके हृदय में निर्दयता-कठो-ता- हैं, जिनका अकाल के बुलाने में कोई हाथ नहीं, कोई अपस्वार्थपरतादिमू-लक तामसी भाव उत्पन्न होता है, जो राध नहीं और जिन पर अकाल लादा गया है अथवा विसी आमचिकाममें बाधक होकर उन्हें पतनकी ओर ले जाता जिम्मेदार बड़े अधिकारीको भारी लापर्वाही और गलतसे है, और इस लिये मांस-दानसे मांयभोजीका भी वास्तविक लद गया है। ऐसी स्थिति में मुझे तो बंगाल के अकाल उपकार नहीं होता--खासकर ऐसी हालनमें जबकि अन्ना- पीडनोंको दो लाख रुपयेवा अन्न दान करने वालाही दिक दूसरे निर्दोष एवं साचिक भोजनोंसे पेट भले प्रकार चाराम बड़ा दानी मालूम होता है। भरा जा सकता है और उससे शारीरिक बल एवं बौद्धिक अध्यापक--जिस दृष्टिको लेकर तुमने उक्त श्रमदानीको शक्ति में भी कोई बाधा उपस्थित नहीं होती। अत: ऐसे बड़ा दानी बतलाया है वह एक प्रकारसे ठीक है, परन्तु इम दानका पारमार्थिक अथवा यात्मोपकार-साधनकी दृष्टिसे विषयमें कई विकल्प उत्पन्न होते अथवा सवाल पैदा होते कोई अच्छा फल नहीं कहा जासकता--भले ही उसके हैं, उनमेंसे यहां पर दो विकल्पोंको ही रक्खा जाता है. करने वालेको लोकमें स्वार्थी राजा-द्वारा किमी ऊपरी पद जिनमेंस पहला विकल्प अथवा सवाल इस प्रकार है-- या मम्मवकी प्राप्ति हो जाय । जंब पारमार्थिक अथवा आत्मोपकारकी दृष्टिसे ऐमो दानका कोई बड़ा फल नहीं होता लाख रुपयेका अन्न दान करने वाले चार संठ है. जिनमेंसे तोरोसा दान देनेवाला बदा दानी भी नहीं कहा जा सकता। (6) पकने स्वेच्छासं दान नहीं दिया, वह दान देना ही हथियार हिंसाके उपकरण होनेसे उनका दान करने नहीं चाहता था, उस पर किसी उच्च अधिकारीने भारी वाला हिंसामें-परपीडामें सहायक तथा उसका अनुमोदक दबाव डाला और यह धमकी दी कि 'यदि तुम दो लाख होना है और जिसे दान दिया जाता है ये उनके कारण रपयेका अन्न दान नहीं दोगे तो तुम्हारा मनका सब स्टाक हिंसामें प्रोत्साहन मिलता है और वे प्रायः दूसरोंके घातमें जब्त कर लिया जायगा, तुम्हारे उपर इनकमटैक्स दुगुनाही काम पाते हैं। इस तरह दाता और पात्र दोनों ही के चौगुना कर दिया जायगा और भी अनेक कर बढ़ा दिये क्षिये वे यात्महितका कोई साधन न होकर प्रात्महनन एवं जावेंगे अथवा टिफॅप ग्राफ इंडिया ऐक्टके अधीन तुम्हारा पतनके ही कारण बनते हैं, और इस लिये हथियारोंका चालान करके तुम्हें जेल में डाल दिया जायगा, तुम्हारी दान पारमार्थिक दृष्टिसे कोई महान् दान नहीं होता- जायदाद जब्त करली जायगी और तुम जेल में पड़े परे आक्रमणात्मक-युद्धके सैनिकोंके लिये तो वह और भी सडजाओगे।' और इस लिये उसने धमकी भयसे तथा सदोष ठहरता है, तब उसका दानी बड़ा दानी कैसे हो दबाबसे मजबूर होकर वह दाम दिया है। (२) दूसरेने इस सकता है? इच्छा तथा पाशाको लेकर दान दिया है कि उसके दानसे
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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