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________________ किरण ४] अनेकान्त-रसलहरी १२७ रामसे बहुत बढ़ी चढ़ी है, फिर भी धनीशमने उसके बरा. अनेकान्त है । साथ ही, यह भी समझ गये होगे कि जिस बर ही दो लाखका दान दिया है, दीन-दुखियोंको पुकारके चीजका मूल्य रूपों में नहीं मांका जा सकता उसका दान मुकाबले में अधिक धनसंचित कर रखना उसे अनुचित ऊँचा करने वाले कभी कभी बड़ी बड़ी रकर्मोके दानियोंसे भी है और उसने थोडी सम्पत्तिमें ही सन्तोष धारण करके बदे दानो होते हैं। और इस लिये बड़े दानीकी जो परिउसीसे अपना निर्वाह कर लेना इस विषम परिस्थितिमें भाषा तुमने बांधी है, और जिसका एक अंश (पशिभषासे उचित समझा है। मन: उमका दानद्रव्य समान होने पर फलित होने वाली तीन बातोंमेंसे पहली बात) अभी और भी उसका मूल्य अधिक है और उसके दानकी विधि-व्य- विचारणीय है, वह ठीक नहीं है। वस्था तथा पात्रोंके ठीक चुनावने उसका मूल्य और भी इस पर विद्यार्थी (जिसे पहले ही अपनी सदोष परिअधिक बढ़ा दिया है। वह ऐसी स्थितिमें यदि एक लाख भाषा पर खेद हो रहा था) नत-मस्तक होकर बोलानहीं किन्तु अचलाख भी दान करना तो भी उसका मूल्य 'आपने जो कछ कहा है वह सब ठीक है। आपके इस उस चौथे नम्बर वाले सेठके दानसे बढ़ा रहता, क्योंकि विवेचन, विकल्पोद्भावन और स्पष्टीकरण से हम लोगोंका दानका मूल्य दानकी रकम अथवा दान-द्रव्यकी मालियत बहतसा अज्ञान दर हुना है। हमने जो छोटे-बडेके तत्वको पर ही अवलम्बित नहीं रहता, उसके लिये दान-द्रब्यकी खब अली तरह समझ लेनेकी बात कही थी वह हमारी उपयोगिता, दाताके भाव तथा उसकी तत्कालीन स्थिति, भूल थी। जान पड़ता है अभी इस विषयमें हमें बहुत दानकी विधि-व्यवस्था और जिसे दान दिया जाता है उस कुछ सीखना-समझना बाकी है। लाइनोंके द्वारा मापने जो में पात्रत्वादि गुणोंके संयोगकी भी आवश्यकता होती है। कुम समझाया था वह इस विषयका 'सूत्र' था, अब भाप बिना इनके यों ही अधिक द्वन्य लुटा देनेसे बढ़ा दान नहीं उस सूत्रका व्यवहारशास्त्र हमारे सामने रख रहे है। इससे बनता। सेट धनीरामके दानमें बड़ेपनकी इन सब बातोंका सूत्रके समझने में जो अटि रही हुईहै वह दूर होगी, संयोग पाया जाता है, और इस लिये उसके दानका मूल्य कितनी ही उलझनें सुलझंगी और चिरकालकी भूलें करोडपति सेठ नं.४ के दानसे मी अधिक होने के कारण मिटेंगी। इस कृपा एवं ज्ञान-दानके लिये हम सब भापके वह उक्त सेठ साहबकी अपेक्षा भी बड़ा दानी है।' बहुत ही ऋणी और कृतज्ञ है।' ___ मैं समझता हूं अब तुम इस बातको भले प्रकार मोहनके इस कथनका दूसरे विद्यार्थियोंने भी खडे समझ गये होंगे कि समान कम अथवा समान मालियत होकर समर्थन किया। .. के द्रव्यका दान करने वाले सभी दानी समान नहीं होते घंटेको बजे कई मिनट हो गये थे, दूसरे उनमें भी अनेक कारणोंसे छोटा-बदापन होता है। जैसा कि अध्यापक महोदश भी कक्षामें आगये थे, इससे अध्यापक दो लाखके अनेक दानियोंके उदाहरणोंको सामने रख कर वीरभद्रजी शीघ्र ही दूसरी कक्षामें जानेके लिये वाध्य हुए। स्पष्ट किया जा चुका है। अतः समान मानियतके इन्यका दान करने वालोंको सर्वथा समान दानी समझना एकान्त वीरसेवामन्दिर, सरमावा जुगलकिशरोर मुख्तार और उन्हें विभिन रष्टियोंसे छोटा-बड़ा दानी समझना ना.२४ नम्बर १E४३
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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