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________________ कवि-प्रतिबोध - - - ------ - स्वतः रसमयी, अमर श्रात्मा, कहाँ सूखने वाली ? प्रियवर ! सदा दयासे आर्द्र, करुण है, देखो झाँक तनिक निज अन्तर! 'जमा हुअा दानवताका रँग• यह, पागल-दुनिया कहती है ! रिक्त न मानवताकी प्याली-- रसमें सराबोर रहती है ! 'जग' अव्यक्त अनादि प्रकृतिमय, तथ्य-तत्वके खड़ा सहारे । समझो ! सुख-दुख राही, उनकीक्यों महत्व दो विना विचारे! मानव सदा 'मुक्त' सुख-दुख तोकेवल स्थूल प्रकृति सहती है। रिक्त न मानवताकी प्याली रसमें सराबोर रहती है ! मानवताके सम्मुख बोलोकब न रही है विश्व-समस्या ! आँखों-देखो! मनके आगेमाया-तृष्णा, त्याग-तपस्या ! पर मनके हित त्याग-नपस्याकी गरिमा सचमुच महती है। रिक्त न मानवताकी प्याली रममें सगबार रहती है ! माया स्वयं प्रवृत्ति-प्रथा है, इसका सुलझाना मुश्किल कय ? केवल त्याग-मात्रसे अपना'लक्ष्यस्थल' पा जाते हैं सब। निष्ण्टक केवल प्रबुद्ध है, कण्टक विषय-नदी बहती है। रिक्त न मानवताकी प्यालीरसमें सराबोर रहती है ! दोनों साथ-साथ रहते हैं, जगमें शान्ति तथा कोलाहल ! रिक्तन मानवताकी प्याली हिंसाने यदि जनी अहिंसा ? रसमें सगबारे रहती है तो तुमको प्रणाम है अविरल ! शक्ति देखनी, तो अन्तरको-- देखो; शक्ति स्वयं रहती है ! रिक्तन मानवताकी प्यालीरममें माबोर रहती है ! आशाऽक्षय, सन्तोष परमसुख, दम्भ-द्वेष दुखमय आशा है। श्रात्म - ज्ञानकी गग-द्वपसेसदा हीन विभु परिभाषा है ! पूरब-पूरब-मा न रहा क्यों ?पश्चिमकी रिपुता दहती है ! रिक्त न मानवताकी प्यालीसमें सराबोर रहती है ! संकट कुसंस्कारकी छाया, जो करती है मनको मैली । मामराज शर्मा हर्षित' मानवता मैली न कवीश्वर ! उज्ज्वल है, जो जगमें फैली ! 'श्राम' धर्मका मोठा फल है। की-कर कौटे है। लहती है ! रिक्त न मानवताको प्यालीरममें सराबोर रहती है ! मदा कर्मकी प्रकृति गहन है, पाप-पुण्य जन्मोंका दाता । सुग्व तो सुख, पर दुख-सुग्व होता, सत्यवाद किसको बहकाता ! नियतिनियम कब एक बन सका? असद्भावना उर दहती है ! रिक्त न मानवताकी प्यालीरसमें सराबोर रहती है ! मावश्यकता-'आल इण्डिला दिगम्बर जैनपरिषद' के कानपुर अधिवेशनके प्रस्ताव नं.२ के अनुसार खुलनेवाले केन्द्रके लिये एक योग्य विद्वान, जो जैनधर्मका अच्छा ज्ञाता हो और उपदेशक हो तथा अंग्रेजीमें कमसे कम एफ० ए० की योग्यता रखता हो, ऐसे प्रचारककी आवश्यकता है तथा एक क्लर्ककी भी आवश्यकता है। वेतन पत्र व्यवहार या मिलकर तय करें। -सुन्दरलाल जैन, चाँद औषधालय, मेस्टन रोड कानपुर ।
SR No.538006
Book TitleAnekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1944
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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