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अनेकान्त
शिक्षा प्राप्त करे। माता पिता और पतियांका काम है कि वे उन्हे यह शिक्षा दें। हम शिक्षाको ग्राम करनेका सबसे सरल उपाय तो ईश्वरमे श्रास्था रखना है । ग्रदृश्य होते हुए भी वह हर एककी रक्षा करने वाला अचूक साथी है जिस में यह भावना उत्पन्न हो चुकी है, वह सब प्रकार के भय से मुक्त है।
[ वर्ष ५
ना' इस मन्त्र के अर्थको इर एक पाठक समझ ले और कण्ठाग्र कर लें ।
दर्शक पुरुष क्या करें ?
यह तो स्त्री धर्मा, लेकिन दर्शक पुरुष क्या करे ? मच पूछो तो इसका जवाब मैं ऊपर दे चुका हूँ, वह दर्शक न रहकर रक्षक बनेगा । वह खडा-वड़ा देखेगा नहीं वह पुलिसको ने नहीं जायगा । वह रेलकी जंजीर खींच कर अपने आपको कृतार्थ नहीं मानेगा। अगर वह हिमा को जानता होगा तो उसका उपयोग करते-करते मर मिटेगा और संकट में फँसी हुई बहनको उबरेगा । ग्रहिमामे नही हिमा द्वारा बहनकी रक्षा करेगा। ग्रहिमा हो या हिंसा, आखिरी चीज त मौत है मेरे सामने टाके कारण अशक्त और बिना दाँतों वाला बूटा अगर ऐसे समय यह कहकर छूटना चाहे कि 'मैं तो कमजोर हू' यहाँ मैं क्या कर सकता हूं? मुझे तो श्रमिक ही रहना है तो उसी क्षण उसका महात्मापन नष्ट हो जायगा और वह मर मिटनेका निश्चय करने और दोनों के बीच जा खड़ा दो तो बहनकी रक्षा तो हो ही जायगी, वह उसके सतीत्व भङ्गका साक्षी भी न रहेगा |
निडरता या श्रास्थाकी यह शिक्षा एक दिनमें नहीं मिल सकती । श्रतएव यह भी समझ लेना चाहिए कि इस दरम्यान क्या किया जा सकता है। जिस स्त्री पर इस तरह का हमला हो, वह हमले के समय हिंसा अदिसाका विचार न करे । उस समय अपनी रक्षा ही उसका परमधर्म है । उस वक्त जो साधन उसे सूझे, ऊसका उपयोग करके वह अपनी और अपने शरीर की रक्षा करें। ईश्वरने ਜੇ दिये हैं, दाँत दिये हैं और ताकत दी है। वह नाम्पून इनका उपयोग करें और करते-करते मर जाय । मौनके भय से मुक्त हर एक पुरुष या स्त्री स्वयं मरके अपनी और
पनकी रक्षा करे । सच तो यह है कि मरना हमे पसन्द नहीं होता। इस लिये आखर हम घुटने टेक देते हैं। कोई मरनेके बदले सलाम करना पसन्द करता है, कोई धन देकर जान छुड़ाता है, कोई मन लेता है और कोई चीटीकी तरह रेगना पहन्द करता है । इसी तरह कोई स्त्री लाचार होकर जूझना छोड़, पुरुषकी पशुताके वश हो जाती है।
ये बाते मैंने तिरस्कार यश नही लिपी, फेवल वस्तु स्थितिका ही जिक्र किया है। मलामीमे लेकर मतीत्व भङ्ग तक की सभी क्रियाएँ एक ही चीजकी सूचक हैं। जीवनका लोभ मनुष्यसे क्या-क्या नहीं कराता ? श्रतएव जो जीवनका लोभ छोड़कर जीता है, वहीं जीवित रहता है । 'तेन त्यक्ते
इन दर्शको के मन्यन्ध मे भी अगर वातावरण ऐसा बन जाय कि हिन्दुस्तान का कोई भी आदमी किसी भी स्त्रीकी लुटते देख नहीं सकता तो पशु वादी भी हिन्दुस्तानी स्त्रीको हाथ लगाना भूल जायगा । किन्तु शर्मके साथ यह कबूल करना पड़ता है कि आज हमारे वातावरण में यह सेज नहीं है। अगर हमारी इस शर्मको मिटाने वाले लोग देश में पैदा होजायें तो बड़ा काम हो ।
- ( हरिजन सेवक से )