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________________ ૭૨ अनेकान्त [वर्ष ५ भी हैं । सुननेमें आया है कि जींदमें एक मंदिर है जो मुख्यपंचतीर्थी कारापिता श्री पू० श्री गुणसमुद्रसूरीणाअब बंद पड़ा है। नकोदर (जि. जालंधर) के मंदिरमें मुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना। कई दिगम्बर प्रतिमाएँ हैं। (पट्टी, धातुप्रतिमा) ___ ये लेब चार नगरोंके मंदिरोंसे लिये गये हैं- (६) संवत १५१५ वर्षे ज्येष्ठ वदि (?) शन। श्री १-अमृतसर, २-पट्टी (जिला लाहौर), ३-जीरा श्रीमालवंस श्रीहीराभा० हीरादे पुत्र सारंग भू श्रावकरण (जिला फीरोजपुर) और ४-नकोदर (जि. जालंधर) भा० पवी पु० समधरयुक्त न श्रीअंचलगच्छश श्री इनमें जैनोंकी अच्छी पुरानी वस्ती है। यद्यपि लेखों सुमतिनाथ बिबं कारितं स्वश्रेयाते प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन । को प्रतिमाओंपरसे पं० जगदीशलाल शास्त्री एम० ए० (जीरा, धातुप्रतिमा) ने बड़ी सावधानीसे उतारा है तथापि कहीं-कहीं लेख (७) सं० १५१५ वर्षे फाल्गुण शुदि ८ शन्नी मद्धम पड़ गये हैं, इससे पाठ संदिग्ध रह गये हैं:- ओसवाल ज्ञातीय लघु-संतानीय सं० मेघा भा० (२)* संवत ११५६ माघ मदि १४ सके नागल पु० देवा भा० वरगाकेन (?) भा० वनाइ सु० आसीत् प्राग्वाट वंशस्य भूपको विहिलाभिधाः। देधर सहितेनात्मश्रेयसे चतुर्शितिपट्ट कारितं श्रीधर्मपत्नी सलहिका तस्य जिनदत्तः सुतस्तयोः॥१॥ नाथ विंबं कारापितं श्री कोरंटगच्छे नंनाचार्यसंतान भार्या च रोहिणी तस्य पुत्री सागरराहिको। प्रतिष्ठितं श्रीभावदेवसूरिभिः। दुहिता सीहिणी चान्या वधू [] सहजमती तथा ।। (नकोदर धातु प्र० दो प्रतिमाएं इसमें नग्न हैं) संसारासारतां ज्ञात्वा पुत्रैः सर्वैः सुसम्पदा। (८) सं० १५१६ वर्षे माघ शुदि ५ शुक्र श्री कारितो मोक्षलाभाथे चतुर्विशतिपट्टकः ॥शा ओसवाल ज्ञातीय राउल समरसी भा० टहिकू पुरा० -(जीरा, धातुमयी चतुर्विशति जिनप्रतिमा) नरसिगना भा० नामलदे भ्रातृ रा० घागा मुत रा० (२) संवत १२७० ज्येष्ठ व प्र० श्रीसिद्धसेन सूरिभिः।। लापा दाछा धग सावस्ता रा० लाषा भा० माई सुत -(नकोदर, धातुप्रतिमा) मूला सुतारमी प्रमुख कुटुम्बयुतेन निजश्रेयसे श्री (३) संवत १५७४ चैत्रवदि १ शनी श्रीश्रीमाल मुनिसुव्रतबिबं कारितं । प्रतिष्ठितं तपापक्षे श्रीसोमशातीय पूर्वश्रेष्ठ सउरा सु०संगम मु० पासवीर भार्या सुन्दरसूरिशिष्य श्रीमुनिमुन्दरसूरिशिष्य श्रीरत्नशेखर रूडीसुत संगवी चउथाकेन भार्या डाही सहितेन आत्म सूरि पट्टालंकरण श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः*। अयोथं श्री पद्मनाथ बिंबं कारापितं श्री बाह्मणगच्छ (जीरा, धातुप्रतिमा) श्री वीरमूरिभि प्रतिष्ठितं । -(पट्टी, धातुप्रतिमा) (E) मंचन १५१७ वर्षे वैशाष सुदि ३ सोमे श्री (४) सं० १४८१ (१) वर्षे वैशाष श्री मृलसंघे श्रीवंश सा० देल्हणदे पु० शिवा भा० सलघु सुत भट्टारक जी श्री जयचंद्र+ लाडणेन पत्नी वमकू पु० माला भ्रातृ भादासहितेन (नकोदर, पाषाणपार्श्वप्रतिमा) स्वश्रेयसे श्रीअंचल गच्छाधिप श्री जयकसरीणामुपदेशेन (५) सं०१४६४ वर्षे माघ शुदि १५ रवौ श्रीमाल श्रीशीतलनाथचतुर्विशतिपट्टः कारितः । प्रतिष्ठितः ज्ञातीय श्र० धारा भार्या छाछ (बाराही वास्तव्य) लटे श्रीमंघेन ।। श्रीभयान ।। सुत साजण श्रेयोर्थ भ्रातृ क्रीकाकेन श्री नमिनाथ (जीरा, धातुप्रतिमा) (१०) संवत १५२१ वर्षे जे०शु ४ गुरु श्रीमाल *बाबूराम जैन द्वारा संचत "क्रान्तिकारी जैनाचार्य" जीग, सन् १६३६ मे चित्र सहित प्रकाशित । इसकी लिपि मे * लक्ष्मीसागर द्वारा प्रतिष्ठित दूसरी प्रतिमाओके लिए 'स', 'श' में मेद नही किया गया। देखिये--पूर्णचन्द्र नार-जैन लेग्य संग्रह" भाग २। + नकोदर के मंदिर मे पहिले यह प्रतिमा मूलनायक थी। नागौर के लेख ।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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