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किरण १-२]
पंजाबमें उपलब्ध कुछ जैन-लेख
ज्ञाति सेठिया में कमला भा० कमलसिरि पु० सं० कुरपाल तल्लघुदांपव जैनशासनोत्तति कृ०सं० सोनपाल धोनी भायया (?) मं० गुणराज भा० वांपलदे पुत्र्या भा० सुवर्ष श्री तदां जैन सं० रूपचंद्रेण भार्याद्वययुतेन धणसिरि नाम्न्या म्वश्रेयसे चतुर्विंशति विबानि श्रेयसे सकुटुंबेन शांतिनाथबिंबं कारितं अंचलगच्छे कारयित्वा श्रीमीतलबिबं का० प्र० तपा श्रीलक्ष्मी श्री धमसूरीणा श्रा० श्रीकल्याणसागरसूरि युत्राणामुपसागर सूरिभिः॥ (जोरा, धातुप्रतिमा) देशेन श्रीमंघेन।
(पट्टी, धातुप्रतिमा) (११) श्री संवत् १५२१ वर्षे वैशाख शुदि १२ (१६) सं....१६ श्रीमूलसंघ ब्र० श्री सोपदेशात् बुधे श्री श्रीमालज्ञातीय श्रे० जोगा भा० कडूतया मु० बाई हेममती नित्यं प्रणमति । लांपा धरणा भोजा वीरायुतया आत्मश्रेयसे श्री
__ (नकोदर, धातुप्रतिमा) नमिनाथादि पंचतीर्थी आगमगच्छे श्रीहेमरत्न सूरीणा- (५७) संवत् १७१५ का० शुदि ३ मूलभद्रा देवमुपदेशेन कारिता प्रतिष्ठा च अहम्मदावाद वास्तव्य:श्रीः कीर्तिभिः रतना सुत रही आराद्ध प्रणती। .. ( नकोदर, धातुप्रति०)
(नकोदर, धातुपार्श्वप्रतिमा) (१२) मंवत् १५२१ वर्षे ज्येष्ट वदि १२ गुरु श्री (५८) श्रीमलसंघे भ श्री पं० प्रभाचंद्रस्तत्सिष्य श्रीमाल ज्ञा० सा० वीसा भा० टहिकू सु० हासाकेन श्री धर्मचंद्रस्तदाम्नाये खंडेलवालान्वये गोधागोत्रं वनाश्रेयसे श्री शांतिनाथ बिंबं कापितं प्रति० श्री सा पारस भार्या मौलि.. 'फालरामा''प्रणमति । पूर्णिमा प्रथम श्री श्रीसाधसुन्दरसूरिणामुपदेशेन
(पट्टी, धातुप्रति०) विधिना श्राद्धः। (अमृतसर, धातुप्रतिमा)
(१९) संवत'वर्षे वैशाप दि २ भौमे श्रीमूल(१३) संवत १५२३ वर्षे वै० शु० १३ दिने वृद्ध
संघे भट्रारक श्रीदेवेंद्र कीर्तिदेवाः तच्छिष्य श्रीविद्यानगर वास्तव्य ऊकेश ज्ञातीय स० हसा भा० अमरादे
नंदि देवा तरोरु देशानाहबड़वंशे श्रे गोइंदा भार्या सुन मं देपाल पहिगज डूगर जिनदासाः तेषु सं ।
भर्म (?) तयोः पुत्रास्त्रयः श्री हीर भार्या हर्ष । भहे पहिराजेन भा० मोहणदे मुत देवचन्द्रयुतेन निजमातृ
पर्वत । भा० माकू गोतृनईद भार्या वाऊ अपरा श्रेयसे श्री शंभवबिंबं का०प्र० तपागच्छ नायक श्री
माणिक दे । वाऊ पुत्र राणा भार्या हीरा। लक्ष्कीसागरसूरिभिः। (नकोदर, धातुप्रतिमा)
(अमृतसर, धातुप्रतिमा) (१४)मं०१५२३ वर्षे वंशाखशुक्ल ५बुधे सन० उके
ऊपरके लेखोमेसे अंतके चार तथा नं०४ इस शज्ञा०भ० नागसी भन्नागलदे पु० तोजावेन भा०वरजू भ्रा० वाडा भा० मूजी पु० कीका श्रीरंग श्रीदत्त मोमा
बातफी साक्षी दे रहे हैं कि जिन प्रतिमाओंपर ये लेख
हैं वे दिगम्बर संप्रदायकी होनी चाहिये । नकोदरके लप वधु पद्माई हाई जीवाई पम युतेन निजश्रेयमे श्रीमुमतिबिंब का० प्र० तपा श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः
भाई तो स्वयं कहते है कि हमारे पूर्वज दिगंबर थे
और पहिले वहांक मन्दिरमे लेख नं०४ वाली प्रतिमा श्रीमुधानंदजसूरि श्रीरलमंडनसूरि परिठीतेः।
मूलनायक थी। लाहोरके श्वेताम्बर और दिगम्बर (नकोदर, धातुप्रतिमा)
दोनों मंदिर एक दूसरेसे मिले हुए थे। पहिले दोनो (१५) संवत् १६६३ वर्षे वैशाष शुदि १३ सोम
का एक ही द्वार था और श्वेतांबर मन्दिरमें होकर दिने आगरा नगरे वास्तव्य लोढा गोत्र ओगाणि
जाता था । इससे प्रायः सभी भाई दोनों मंदिरों के शाखायां मं० ऋपभदासः भायर्या रेप श्री पुत्र सं०
रष श्री पुत्र स० दर्शनका लाभ लिया करते थे। अब कुछ समयसे * लोढागोत्रीय ऋषभदास आगरके बड़े प्रसिद्ध श्रावक थे। दोनोंका अपना अपना पृथक द्वार हो गया है।
इनका बनवाया मंदिर अब तक विद्यमान है। वहाँ एक श्वेताम्बर और दिगम्बर लेखों में परंपराके अतिशिलालेख पड़ा है जिसे मैंने "जैनसाहित्य-संशोधक" मे रिक्त शैलीका भी कुछ मेद है, जैसा कि उनके अंतिम प्रकाशित किया था। इनके और बहुतसे लेख मिलते हैं। शब्दोंसे प्रतीत हो रहा है।