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पंजाबमें उपलब्ध कुछ जैनलेख
(ले-डा० बनारसीदास जैन एम० ए. पी० एच० डी०)
-ofreeramतिहासिक सामग्री में लेखों (शिलालेख, एक दो दो जैन मंदिर विद्यमान है। इनमें सैकड़ों
ताम शासन. प्रशस्ति अदि) का स्थान प्रतिमा हैं, जिनपर लेग्य खुदे हुए हैं। ॐ बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। लेखोमें प्रायः पंजाबका सबसे पहला प्रकाशित लेख नगरकोट अपने समकालीन घटनाओंका उल्लेव रहनेसे उनकी (कांगड़ा) मे उपलब्ध हुअा था, जो वहाँके किलेमें प्रामाणिकनामे मंदेहकी गजाइ! कम रहती है। भगवान ऋषभदेवकी मूर्ति के नीचे पट्टपर खुदा हुआ भारतका प्राचीन इतिहास लिखने में ऐसे लेखोने है। इसका लेग्वनकाल मं० १५२३ है । मुनिजिन
आशातीत महायता को है । जैनधर्म के इतिहासका विजय द्वारा संपादित "विज्ञप्ति-त्रिवेण" मे प्रतीत मंकलन करने में भी ये कुछ कम महत्वके नहीं हैं। होता है कि उस समय कांगड़ा एक प्रसिद्ध ओर मथुराके कंकाली टील से मिले लेखोंने कल्पसूत्रमें प्राचीन जैन नीर्थ था । परन्तु आज कांगड़ेमे न कोई वणित कुल, गण, शाग्वा आदि जन-परंपराको अकाट्य जेनी है और न मूर्तियों के अतिरिक्त उम तीर्थका कोई रीतिम सिद्ध कर दिया है। आर दक्षिण में पाये जाने निशान ही बाकी है, यह कालकी कैम विचित्र गति है। वाले लेम्बोंने जैनधर्म के गारवपर भारी प्रकाश निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इस नीथका डाला है।
विध्वंस कब और कैसे हुआ । कदाचित मुसलमानांक इनके अतिरिक्त मध्यकालीन तथा व
हाथोंमे अथवा भूकंप आदिम जैमा कि मन १६०५ अनेक लेख में विद्यमान है जो प्रायः पापारण और धातुमयी प्रतिमाओंपर उत्कीर्ण हैं। इनमें प्रतिष्ठाकी
मिहपुर के निकटवर्ती जैन मंदिरके अवरोपांपर तिथी तथा प्रतिष्ठा कराने वाले प्राचार्य और श्रावकके भी लेखांका होना सम्भव है। यह मन्दिर जेहलम गच्छ जानि आदिका उल्लेग्व दिया जाता है । इनपरसे
जिलेमें कटामक पाम था । इसके अवशेष चोया पदावलियांम वर्णित आचार्य-परंपराक अस्तित्वकाल मेंदनशाहके पाम 'मूरती' ग्राममे मिले हैं। चोनी यात्री की पुष्टि होनी है।
हहनचांगने इम मंदिरका उल्लेख करते हुये कहा है कि जैन लेखांको हिन्दी जनताक मंमुख रखनेका
यहाँ एक लेब भा खुदा था जो सूचित करता था कि श्रेय मुनि जनविजय, प्रो० हीगलाल तथा म्ब० बा०
यहाँ भगवान ऋपभदेवने देशना दी थी। यह अवशेष पूर्णचंद नाहरको है। जहाँ तक मुझे मालूम है इन
लाल पत्थरके हैं और अब लाहौरके म्यूजियममें महाशयों के लेख-संग्रहमें तथा अन्यत्र, नगरकोट के
सुरक्षित हैं। इनका विस्तृत वर्णन अभी तक प्रकाशित लेखको छोड़ कर, पंजाब और किमी भी लेखका नहाए समावेश नहीं है।
नाचे कुछ लेख* उद्धृत किये जाते हैं जो मवर्क पंजाबमे भी जैन लेह काफी मंख्यामे मिलते हैं।
सत्र शेताम्बर मंदिरोंमे लिये गये हैं। यद्यपि पंजाबमें क्योकि यहाँ जैनधर्म अति प्राचीनकालमे चला आ बहुतम दि०अर्वाचीन मंदिर हैं तथापि फई एक प्राचीन रहा है। किमी ममय यह धर्म यहाँ बड़ी उन्नतिपर ये लेख मूनिया पर हैं । इनम अधिक मूनिया ना था। कई स्थलोपर इसके प्राचीन अवशेष मिलते हैं। ऐसी है जो बाहर में श्राई प्रतीत होता है। नये मंदिरोमे तो अब भी पंजाब के बड़े बड़े नगरों तथा कस्बा में एक श्रीमद् विजयानंद गरि ने गुजगत भिजाई थी।
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- माया