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अनेकान्त
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[वर्ष ५
श्राचार्य महाराजका उपदेश सुना । इस संबंधमे विशेष ही सुरक्षित नहीं है, बल्कि उच्च जातीय तामिल समाजमें जाननेकी इछामे उसने प्राचार्य महाराजमे भाषण सुननेकी प्रचलित रिवाज़ो और रहन सहनमे भी इसका पता चलता प्राज्ञा मांगी जो उसे अनायास प्राप्त हो गई। अंतमें उसने है। शैव-पुनरद्वारके बाद जब राजनैतिक कारणोपे दण्डके जैनधर्मको अंगीकार किया और अपने जीवनके इस परिवर्तन बलपर जैनियोंको हिन्दू धर्म अंगीकार करना पडा था तबसे की स्मृति में यह ग्रंथ बनाया जो माइलपुरके नेमिनाथ हिंदू धर्म में परिवर्निक लोग हिन्दु समाजकी उन-उन भगवान्को अर्पित किया गया है। यह भक्ति रसका अत्यन्त जातियों में शामिल हो गये और उन्होंने जैनीकी स्थिति में सुन्दर ग्रन्थ है, जिसमें लेखकके बारेमे कुछ बात वर्णित हैं। पाले जाने वाले ग्विाजों तथा रहन सहनको वहां सुरक्षित यह मदुराके तामिल संघम के द्वारा संचालित शेन तामिल रखा । यद्यपि उन्होंने अपना धर्म बदल दिया किंतु श्राचार पत्रमें टिप्पणी महित छपा है।
नहीं बदले । यह अाश्चर्यकी बात है. कि तामिल भाषामें निरुक्क लम्वगम-यह दूसरा भक्ति रसका ग्रंथ है 'शेवम्' शब्दका पहले शेवधर्मका श्राराधक अर्थ था. जिसके लेखक उदीचिदेव नाम के जैन हैं। वे थोड मंडलं देशके किन्तु ग्राम बाल चानमें शेवम्का अर्थ कट्टर शाकाअन्तर्गत वेलोर ज़िलाके अर्णी के पास अरपगई नामक स्थान हारी है। हिंद वेलालोमे कट्टर शाकाहारीके भोजन के बारेमें के निवासी थे । रूलंवगंबम शब्दका अर्थ है लघु कविताओं कहते हैं कि वह 'शैवम्' का पालन करता है। इसी तरह का ऐसा मिश्रण जिसमें अनेक छंदोंके पद्य हो । उदीचि तामिल देश के ब्राह्मण 'शैवम्' कट्टर शाकाहारी हैं। इस रचयित यह ग्रंथ न केवल भक्तिभाव पूर्ण है, बल्कि सम्बन्धमें भारतके अन्य भागोंके गौड ब्राह्मणों के वर्गान्तर्गत सैद्धान्तिक भी है, जिसमें लेखकने बौद्धधर्म जैसे प्रतिद्वंदी बाह्मणोप तामिल ब्राह्मणको 'द्रविड' ब्राह्मण के रूपमें पृथक धर्मोंका विचार भी किया है। संभवतः यह महान् उन किया जाता है। द्रविद ब्राह्मण जहाँ भी हों कट्टर शाकाहारी जैन दार्शनिक अकलंक देवके बादका है जिन्होंने दक्षिणमें होते हैं जब कि गौड ब्राह्मण मस्य तथा मांस तक भक्षण बोद्धधर्मकी प्रभुताका अंत किया था और जो हिंदू धर्मके करते हैं। बगाली ब्राह्मणांमे आमतौरपर बकरा या भैंसा उद्धारक कुमारिलभट्ट के समकालीन थे।
कालीके पागे बलि किया जाता है, और बाद में वे उसे गणित, ज्योतिष तथा फलित बिद्या-सम्बन्ध ग्रंथोंके काली प्रसाद के नाममे अपने घर ले जाने हैं। ऐसी बात निर्माण में भी जैन लोगोंका खाम हाथ रहा । सम्भवतः दक्षिण (नामिल देश) के किसी भी हिन्दू मन्दिरमें चाहे वह इन विषयों पे सम्बन्धित अनेक ग्रथ नष्ट हो गये । अब शैव हो या वैष्णव कल्पनामे नही पाता। अतः इस कथन प्रत्येक विषयका प्रतिनिधि स्वरूप एक-एक ग्रंथ मौजूद है। में तनिक भी अतिशयोकि नहीं है कि भोजन तथा ऐंवड़ि गणितका प्रचलित ग्रंथ है उसी प्रकार मिनेन्द्रमौल मन्दिर की पूजामें जैनियोंकी अहिंसाका सिद्धान्त भी प्रचलित ज्योतिष ग्रंथ है। जो व्यापारी लोग परम्पराके तामिल भूमिकी हिन्दू समाजमें अाज तक स्वीकृत अनुसार अपना हिसाब-किताब रखने हैं, वे ऐचूवदि नामक तथा पालिन चला पा रहा है। यह ठीक है कि कुछ गणित ग्रंथका अभयास प्रारम्भमे करते हैं । इस भांति ऐसे विकीर्ण स्थान भी हैं जहाँ ग्राम्य देवताओं के आगे पशु तामिल ज्योतिषी जिनेन्द्रमौल के अाधारपर अध्ययन करते बलि की जाती है किन्तु उच्च जातीय तामिल हिन्दुओंको हैं यह उनके 'श्रारूढ़' नामक भविष्य कथनका मूलाधार इस बातका श्रेय प्राप्त है कि उनका इस प्रकारकी ग्राम्य
काली पूजासे कोई सम्बन्ध नहीं है । प्राशाकी जाती है कि इस प्रकार तामिल साहित्यको जैनियोंकी खास देन शिक्षा और सुसंस्कारोंकी वृद्विसे छोटी तामिल समाजे भी सम्बन्धी सरसरी नज़र से लिखा हुआ वह लेख पूर्ण होता इस ग्राम्य तथा मूढ़तापूर्ण पूजाके रूपका परित्याग करेंगी है। पुरातन तामिल भूमिमे जैनधर्मका प्रचार तथा तामिल और अपने श्रापको अधिक पवित्र तथा उज्वल श्राद से लोगों में जैनधर्मकी उपयोगिताकी बात तामिल साहित्यमें पूर्ण उच्च धार्मिक जीवनके योग्य समुन्नत बनावेंगी।
होता है।