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किरण १-२]
तामिल भाषाका जैनसाहित्य - लाभार्थ की थी। यह स्कूल और कालेजों के कोर्समे पाट्य गुणभद्र उत्तरपुराण के रचयिता हैं, जो कि जिनसेन स्वामी पुस्तकके रूपमे भरती की गई है, अत: हम बिना कोई के महापुराणका अवशिष्टांश है। इससे यह स्पष्ट है कि यह अतिशयोक्ति के यह कह सकते हैं, कि इस तामेल व्याकरण मंडल पुरुष गुणभद्र के पीछे हुए हैं। वह दो और निघंके परिज्ञान के बिना कोई भी तामिल-छात्र स्कूल और टुओं का भी उल्लेम्ब करता है, जो चूडामणिनिघण्टु के पूर्वकालेजमे उत्तीर्ण नही हो सकता है। इस ग्रंथपर बहुत सी वर्ती होने चाहिये । यह न थ विरुत्तम छन्दमें लिखा गया टीकाएं हैं। इनमें मुख्य टीका जैन-याकरण मैलिनाथकी है और इसमें द्वाःश अध्याय हैं। पहले अध्यायमें देवों के बनाई हई है। मैलैनाथर मलंयपुरके जिनालयके भगवान नाम हैं, दसरेमें मनुष्यों के नाम हैं, तीसरेम रितयंचोंके चौथे नेमिनाथका नाम दृसरा है। इस नन्नलकी बहुत बढ़िया में वृनों तथा पाडोके, पाचवमे स्थानों के छटेमे अनेक पदार्थों प्रावृत्त मैलैनाथीय-टीका-सहित, डा. वी. स्वामिनाथ ऐयरके के, सातवमे धातु तथा काट सटश प्राकृतिक पदार्थोसे बनाए द्वारा प्राप्त हो सकती है। इसके ऐलुत्ताधिकारम् और शोल- गए मानवनिर्मित अनेक कृत्रिम पदार्थोके नाम हैं पाठवमें अधिकारम् नामके दो भाग हैं जो पाँच पाच अध्यायों में सामान्य दृष्टिये वस्नयों के गुणों, नववें और दसवमे स्पष्ट विभक्त हैं।
तथा अस्पष्ट शबोके मान ग्यारहवम उन शब्दोका वर्णन ध्याकरण के इस प्रकरणामें हमें नार कविराज नम्बि- है, जिनकी नुक परस्परमे मिलती है अत: छंदः शास्त्र के रचित गप्पोल बिलकम् ग्रंथको भी नोट करना चाहिये। अंश विशेष सम्बन्धित है और बारहवं अध्यायमै सम्बलेखकका ठीक नाम है लव प्रथवा नाम्ब नैनार । ज्योकि न्धित शब्दों के समूहोका प्रयासक वर्णन है। इस चूडामणि वह चतुर्विध काव्यकलामें निपुण था, अत उसे नारकवि- निघंटुकी हमें जाफनाके स्वयरमुख नावलरं रचित टीका राय' की उपाधि प्रदान की गई थी। वह पोरनपांडिमडल सहित उपयोगी श्रावृत्ति प्राप्त है। इसी प्रकार शिवन पिल्लै नामकी नदी के किनारेपर बसे हुए पुलिपारगुडिका अधि. नामक तामिल पडित रचित पिंगल निवण्टुका एक संस्करण वामी था। यह तोलकाप्पियम्के पोम्लल्लकणम् अध्याय के याधारपर रचा गया है। इसमें भंगार तथा तसंबंधी व्याकरण तथा कोरके बारेमे वर्णन करने के अनन्तर मनोभावोंका वर्णन है।
अब हमें दो एक प्रकीर्णक ग्रंथों के विषयमे भी विचार तामिल कोपसाहित्यके विषयमें भी जैनियोंकी देन करना चाहिये । उल्लेखनीय है । तामिल को काम तीन ग्रंथ महत्त्वपूर्ण है। निमनग्नदि-इसके लेखक प्रविधि श्रालवार हैं। इनके नाम हैं-दिवाकरनिघण्टु पिंगलनिघण्टु चूडामणि- अनदि एक विशेषप्रकारकी रचना है जिसमें पूर्व पद्यका निवण्टु । ये तीनो कोर पद्यमें रचिन हैं जिन्हें विद्वान् लोग, थन्तिम शब्द, दूसरे पद्यका प्रथम नथा मुख्य शब्द होजाता भाषाके महानग्रन्थों के अध्ययनार्थ, कण्ट कर लिया करते है। अंतदिका अर्थ है अंत एवं श्रादि । इसमें पद्योंकी एक हैं। प्रथम ग्रन्थ के रचयिता दिवाकरमुनि हैं, दूसरे के पिंगल कतार शब्द विशेपमे परस्पर संबंधित है, जो पूर्वपद्य में मुनि और तीसरेके मंडल पुस्प । तामिल विद्वानोंका अभि- अन्तिम शब्द होता है और बाद के पद्यमे पहला। तिम्नमत है कि ये तीनों जैन थे। प्रथम दिवाकर निघंटुका रन्तदि अन्य सौ पद्यवाली ऐसी ही रचना है। यह भकिअस्तिष तो इस संग्गारसे प्रायः उट ही गया है, किन्तु शेप रसका ग्रन्थ है जो माइल पुरके नेमिनाथ भगवानको संयोदो ग्रंथ उपलब्ध हैं। इनमें से अन्तिम ग्रंथका खूब प्रचार धित किया गया है। इसके लेखक प्रविरोधी अलवारने है। चूडामणि नघंटु नामक तीसरे ग्रन्थकी भूमिकाके पद्योंये जैनधर्मको धारण किया था। कहते हैं कि एक दिन जब विदित होता है कि लेखक जैनग्राम पेम्मंदुरका निवासी था, वह जिनालयके पासपे जा रहा था, तब उसने मन्दिरके जो दक्षिण अरकाट जिले के निंदिवनम् नालुकाके तिदिवनम् भीतर अपने शियों के लिये मोक्ष तथा मोक्षमार्गका उपदेश स्थानये कुछ मील दूरीपर है। इसके सिवाय लेखकने जिन- करते हुए जैनाचार्य का उपदेश सुना। इस उपदेशसे मेनाचार्य के शिष्य गुणभद्राचार्यका उल्लेख किया है। ये याकर्षित होकर वह मन्दिरके भीतर गया और उसने