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अनेकान्त
[ वर्ष ५
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श्रीपुराण-यह श्रीपुराण तामिल जैनों में बहुत है कि यह जैन-ग्रन्थकारकी कृति है । ग्रन्थकारने यह स्वयं प्रचलित है। मैं नहीं समझता कि ऐसा कोई व्यक्ति है, सूचित किया है, कि यह रचना उसी विषयके एक संस्कृतजिसने श्रीपुराणका नाम न सुना हो।। यह तामिल-संस्कृत ग्रन्थके आधार पर है। प्राय. करके यह उस संस्कृत ग्रन्थ मिश्रित मणि-प्रवाल रूपसे आकर्षक गद्यमे लिखा गया है। का अनुवाद है। इस पर एक टीका गुणसागर-रचित है. इसका अाधार जिनसेन स्वामीका महापुराण है और इसे जोकि प्राय: अमृतसागरके समकालीन था। यह ग्रन्थ छन्द 'त्रिषष्ठि शलाका पुरुप पुराण' भी कहते हैं जो ६३ महा शास्त्रका मुख्य ग्रन्थ है छन्दों तथा पद्य रचनायों के बारेमे पुरुषोंके वर्णनको लिये हुए है। इसके रचयिताका नाम यह प्रमाण भूत है और इस रूपमें उत्तरवर्ती लेम्बकोंने अज्ञात है। बहुत सम्भव है कि यह चामुण्डरायचित इसका उपयोग किया है, इसके द्योतक अवतरण तामिल कन्नड विषष्टिशलाकापुरूपपुराणम्' के समान कृति हो, साहिन्यमे पाए जाते हैं। श्रतः इसे जिनमेनके महापुराण और चानुण्डरायके कन्नड या यमकल विरुत्ति--यह भी उन्हीं अमृतसागरपुराण के पश्चातवर्ती कहना चाहिये । इसमें जिन ६३ वीरों रचित तामिल छन्द शास्त्र है। इसकी सुन्दर श्रावृत्ति स्व. का वर्णन है, वे २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती; ६ नारायण, एस० भावनन्दम् पिल्लै द्वारा प्रकाशित हो चुकी है। ६ प्रतिनारायण और बलदेव है। चूलामणिकी कथामें नेमिनाथम्—यह गुणवीरपडित-रचित तामिल व्या हमने पहले यह देग्वा है कि तिविन वासुदेव. विजय करणका ग्रन्थ है। यह नेमिनाथ भगवान के मन्दिर युक्त बलदेव और अश्वग्रीव प्रतिवासुदेव था। इसी प्रकार रामा- मलयपुर में बनाया गया था इस कारण इसके। नेमिनाथम्' यण के विख्यात व्यक्ति राम, लक्ष्मण और रावण, केशव, कहते हैं। इसके रचयिता गुणवीर पंडित कलन्देके वाचानन्द बलदेव, प्रतिवासुदेव के नामसे इस नौके समुदायमे गभित मुनिके शिष्य थे । इस ग्रन्थ निर्माणका ध्येय था छोटे और हैं। इसी प्रकार प्रख्यात महाभारत के श्रीकृष्ण नी वासुदेवा संक्षित रूपमे तामिल व्याकरणका वर्णन करना; क्योकि मेमे एक हैं, उनके भाई बलराम बलदेवोंये हैं और मगध पहले के तामिल अन्ध विशाल और बहुश्रमसाध्य थे। के जरासध नौ प्रतियासुदेवामी हैं। प्रत्येक तीर्थ फरका श्रारम्भके पद्याने यह सप्ट होता है कि जल-प्रवाहके द्वारा वर्णन करते हुए गज्यवंशांकी कथाएँ भी दी गई हैं। इस मलयपुरके जैनमन्दिरके विनाश के पूर्व यह ग्रंथ बनाया गया प्रकार यह श्रीपुराण, जिसमे ६३ महापुम्पोंकी कथाएँ वणित था। अत: यह रचना ईसवी सन के प्रारम्भिक कालकी कही हैं, पौगणिक भण्डार समझा जाता है जिसमेगे अनेक जानी चाहिये। इसमें एनुत्तधिकारम् तथा शोन अधिकारम् स्वतन्त्र लेखकाने जुदी जुदी कथा ली हैं। दुर्भाग्यमे यह नाम के दो अध्याय हैं । यह प्रसिद्ध वेणबाबन्दमे रचित है। अब तक प्रकाशित नही हुआ है। यह अभी तक ताइपत्र मदुगफे तामिल संघम्के अधिका-योंने इसको शेनतामिल की प्रतिके रूपमे ही पड़ा है और यह श्राशासी जाती है नामक तामिल पत्रमें प्रख्यात पुरातन टीका सहित छपाय! कि निकटभविष्यमें यह तामिल भाषाके विद्यार्थियोको था। उपलब्ध हो जायगा।
तामिल व्याकरण पद दूसग ग्रंथ है नन्नूल (मुन्दर ग्रंथ) अब हमे जैन विद्वानों द्वारा रचित छन्द-शास्त्र और है । यह तामिल भाषाका सबसे अधिक प्रचलित व्याकरण न्याकरण के ग्रन्थोंको देखना है।
है। 'तो 'ल्कापियम्' के बाद में मात्र इसीकी प्रतिष्ठा है। यायमङ्गलम्कारिक-तामिल छन्द-शास्त्रपर यह शिय गंग नामक सामंतके अनुरोधपर बाचनंदि मुनिने अन्य अमृत सागर द्वारा रचित है। यद्यपि यह निश्चयसे इसकी रचनाकी थी । लेखक न केवल तो ल्काप्पियम् नहीं कहा जा सकता है कि वह कब हुए, किन्तु यह अगत्तियम्, अधिनयम् नामक तामिल व्याकरण ग्रंथों के ही सष्टतया कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ एक हजार वर्ष प्रवीण थे' किन्तु संस्कृत व्याकरण जैनेन्द्रमै भी, क्योंकि जितना प्राचीन है। इसके मंगलाचरणके एक श्लोकमें वे तामिल और संस्कृत दोनों के महान् विद्वान थे । इस श्ररहंत परमेष्टीको नमस्कार किया गया है। अतः यह स्पष्ट नन्नल व्याकरणकी रचना उसने पिछले तामिल विद्वानों के