________________
गिरिनगरकी चन्द्रगुफा
( लेखक - प्रो० हीरालाल जैन, एम० ए० )
पखंडागम की टीका धवला के रचयिता वीरसेनाचार्यने
कहा है कि समस्त सिद्धान्त के एक देशज्ञाता धरसेनाचार्य थे जो सोरठ देशके गिरिनगरकी चन्द्रगुफा में ध्यान करते थे । उन्हें सिद्धान्तकं संरक्षणको चिन्ता हुई । अतः महिमा नगरीक तत्कालवर्ती मुनि सम्मेलनको पत्र लिखकर उन्होंने वहाँमे दो मुनियोको बुलाया और उन्हें सिद्धान्त सिखाया। ये ही दो मुनि पुष्पदन्त और भूतबलि नामाने प्रसिद्ध हुए आर इन्होंने वह समस्त सिद्धान्त पटूखंडागमक सूत्ररूप लिपिबद्ध किया ।
इस उल्लेख यह तो सुस्पष्ट हो जाता है कि धरसेनाचार्य माराष्ट्र (काठियावाड़ - गुजरात) के निवासी थे और गिरिनगर में रहते थे। यह गिरिनगर आधुनिक गिरनार है जो प्राचीन कालमें सांगष्ट्रकी राजधानी था । यहाँ मार्य क्षत्रप और गुप्तकाल के सुप्रसिद्ध शिलालेख पाये गये हैं । बाईसवे तीर्थंकर नेमिनाथने भी यहाँ तपस्या की थी, जिससे यह स्थान जैनियो का एक बड़ा तीर्थक्षेत्र है । आधुनिक कालमें नगरका नाम
तो झूनागढ़ हो गया है और प्राचीन नाम गिरनार उसी समीपवर्ती पहाड़ीका रख दिया गया है जो पहले ऊर्जयन्त पर्वत के नाम से प्रसिद्ध थी । अब प्रश्न यह है कि क्या इस इतिहास - प्रसिद्ध नगर में उस चन्द्रगुफाका पता लग सकता है जहाँ धरसेनाचार्य ध्यान करते थे और जहाँ उनके श्रुतज्ञानका पारायण पुष्पदन्त और भूलि आचार्यको कराया गया था ?
खोज करने से पता चलता है कि झूनागढ़ में बहुत सो प्राचीन गुफाये हैं । एक गुफासमूह नगर के पूर्वीय भाग आधुनिक 'बाबा प्यारा मठ' के समीप है। इन गुफा अध्ययन और वर्णन वर्जज साहबने किया १ पट्खंडागम भाग १, पृ० ६७
है। उन्हें इन गुफाओं में ईसवी पूर्व पहली दूसरी शताब्दि तकके चिन्ह मिले हैं। ये गुफायें तीन पंक्तियोंमें स्थित हैं । प्रथम गुफापंक्ति उत्तरकी श्रोर दक्षिणाभिमुख है। इसोक पूर्व भागने दूसरी गुफापंक्ति प्रारंभ होकर दक्षिण की ओर गई है । यहाँकी चैत्य गुफाकी छत अति प्राचीन प्रणालीकी समतल है और उसके आजू-बाजू उत्तर ओर पूर्वकोनोंमे अन्य सीधीमादी गुफाएँ हैं । इस गुफापंक्तिके पोछेमे तीसरी गुफापंक्ति प्रारम्भ होकर पश्चिमोत्तर की ओर फैली है। यहाँ की छटवी गुफा (F) के पार्श्वभाग में अर्धचन्द्राकार विविक्त स्थान (ipse) है जैसा कि ईस्वी पूर्व प्रथम द्वितीय शताव्दिकी भाजा, कार्ली, वेदसा नामिककी बौद्ध गुफाओं में पाया जाता है। अन्य गुफाएँ बहुतायत मे सम चौकोन या श्रायत चोकोन हैं और उनमें कोई मूर्तियाँ व सजावट नही पाई जाती। कुछ बड़ी बड़ी शालायें भी हैं, जिनमें बरामदे भी हैं । ये सब गुफायें अत्यन्त प्राचीन वास्तुकला के अध्ययनके लिये बहुत उपयोगी हैं । ये सब गुफाएँ उनके निर्माण कालकी अपेक्षा मुख्यतः दो भागों में विभक्त की जा सकती है-एक तो वे चैत्यगुफायें और तत्सम्बन्धी सादी कोठरियाँ जो उन्हें बौद्धों की प्रतीत होती हैं और जिनका काल ईस्वी पूर्व दूसरी शताब्दि अनुमान किया जा सकता है जब कि प्रथमवार बोद्धभिक्षु गुजरात में पहुंचे। दूसरे भागमे वे गुफाएँ व शालागृह हैं जो प्रथम भागकी गुफाओंसे कुछ उन्नत शैलोकी बनी हुई है, तथा जिनमें जैन चिन्ह पाये जाते हैं। ये ईस्त्रीकी दूसरी शताब्दि श्रर्थात क्षत्रप राजाओं के कालकी अनुमान की जाती है ।
x
Burgess: Antiquities of Kutchh and Kathiawar, 1874-75, P.139ff.