SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १-२ पउमचरिय पार पद्मर्चारत जब विमलमूरि पूर्वोक नामावलीके अनुसार अपने बहुत पहले विमलसूरिके ही समान विसी अन्य प्राचार्यने ग्रन्थकी रचनामे प्रवृत्त हुए होंगे तब एसा मालूम होता है भी स्वतंत्र रूपम जैनधर्मके अनुकूल सोपपत्तिक और कि उनके मामने अवश्य ही कोई लोक-प्रचलित रामायण विश्वसनीय रामकथा लिखी होगी और वह गुणभद्राचार्यको एसी रही होगी जिसमें रावणादिको राक्षम, वसा-रक्त-मास गुरु-परम्पराद्वारा मिली होगी। गुणभटके गुरु जिनमनस्वामीने का खाने-पीनेवाला और कुम्भकर्णको छह छह महीने तक अपना आदिपुराण कविपरमेश्वरकी गद्यकथा आधारमे इस तरह सोनवाला कहा है कि पर्वततुल्य हाथियों के द्वारा लिखा था- कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथामातृकं पुरोचरितम् ।" अंग कुचले जाने, कानाम घडी नेल डाले जाने और नगाडे और उसके पिछले कुछ अंशकी पूति स्वयं गुणभद्रने भी बजाये जाने पर भी वह नही उठता था और जब उठता था की है। जिनमनरवामाने कविपरमेश्वर या कविपरमेष्टीको तो हाथी भने आदि जो कुछ मामने पाता था, मब निगल वागर्थमंग्रह' नामक समग्र पुराणका कर्ता बतलाया है। जाना था। उनकी यह भूमिका इस बात का संकेत करती अतएव मुनिसुव्रत तीर्थकरका चरित्र भी गुणभदने उमौके है कि उस समय बाल्मीकि रामायण या उसी जैसी कोई प्राधारमे लिखा होगा जिसके अन्तर्गत रामकथा भी है। रामकथा प्रचलित थी और उसमें अनेक अलीक, उपपत्ति चा गडरायने भी कविपरमेश्वरका स्मरण किया है। विरुद्ध और अविश्वसनीय बात थी, जिन्हें म य मोपपत्तिक तापर्य यह कि पउमचरिय और उत्तरपुराणकी और विश्वासयोग्य बनाने का विमलसरिने प्रय न किया है। रामकथाकी दो धागा अलग अलग स्वतन्त्ररूपम उद्गन जैनधर्मका नामावलिनिबद्ध ढाचा उनके समक्ष था ही और हुई और वे ही आगे प्रवाहित होती हुई हम तक पाई है। श्रनिपरम्परा या प्राचार्यपरम्परापे आया हुआ कोई कथा इन दो धागोम गुरुपरम्परा-भेद भी हो सकता है। सूत्र भी था। उसीके अाधारपर उन्होंने पउमरियकी एक परम्पगने एक धारा को अपनाया और दूसरीने रचना की होगी। दूसरी। ऐसी दशाम गुणभद्र स्वामीने पउमच यकी उत्तरपुराण के कता उनमे और रविषेणम भी बहुन धाराम परिचित होनेपर भी इस स्वयालमे उमका अनुसरण पीछे हुए है, फिर उन्होंने इस कथानकका अनुसरण क्यों न किया होगा कि वह हमारी गुरुपरम्पराकी नहीं है। यह नहीं किया, यह एक प्रश्न है। यह नो बहुन कम संभव है भी संभव हो सकता है कि उन्हें ५उमचरियके क्थानक्की कि इन दोनों ग्रन्थाका उन्हें पता न हो, और इसकी भी अपेक्षा यह कथानक ज्यादा अच्छा मानम हुआ हो। मभावना कम है कि उन्होंने स्वयं ही विमलमूरिके समान - ---- - -- र दंग्वा, उत्तरपगणका प्रशाम्नका १६ वो पय । किमी लोकप्रचलित कथाको ही स्वतंत्र रूपम् जैनधर्मके . ५ म पृज्य: कविभिनोंक कवीना परमेश्वरः। मोचेम दाल। हो। क्योंकि उनका समय जो वि० सं० १४ ___ वागर्थमग्र कृत्नपुगण य: ममग्रहीत् ॥६०||-अादिपुगण है बहुत प्राचीन नही है। हमारा अनुमान है कि गणभद्रम ६ महामात्य चामुण्डरायका बनाया हुअा त्रिपष्टिलक्षणमटा, दग्या श्रागे पशिटम. पउगरियकी नं. १०७ मे १९६ पगण (चामुगडगय-पगण) कनड़ी भाषाम है। उमक. नककी गाथाएँ। प्रारम्भमे लिखा है कि म चरित्रको पहले कृचि भट्टारक : महाकाव पापदन्नन ना अपन उनपगगमे गमकथाका नदनन्तर नन्दि मुनीश्वर, फिर कविपरमेश्वर श्रार नदार प्रारम्भ करते हुए वाल्मिकी और व्यामका पट उल्ग्य भी जिनमन-गुगणभद्र श्राचार्य, एकके बाद एक पगमे किया है करने श्राय है । इममे भी मालूम होता है कि कपिपरगार बम्मीय रामबर्याहि गडिट, अण्णाणु कुमगाकवि का चोवमा नार्थकगंका चरित्र था । चामुगद्धगया ममान डिउ । ६६ या मन्धि । गुग्णभद्रने भी उर्मक आधारमै उनपर लिग्बा होगा : अलियं निमब्वमयं उवनिविस्सपञ्चयगुरंगहि । और कविपरमेश्वरम भी पटिले नदि मनि श्रार कृचि न य मांति परिमा वंति जे पंडिया लाए । भट्टारक.के इस विषयक ग्रन्थ होंगे।
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy