________________
४९
अनेकान्त
इसमें वह अत्यन्त क्रुद्ध हो गया और इसके बाद जब नारद के द्वारा उसने सीताके रूपकी अतिशय प्रशंसा सुनी तब यह उसको हर लानेकी सोचने लगा। कैकेयी के हरु करने, रामको बनवा इस कथा में कोई
या
देने, आदि बालोका नहीं है। पंचवटी दंडकवन, जटायु प्रसंगांका भी प्रभाव है। बनारस के पास चित्रकूट नामक वनमे रावण सीताको हर ले जाता है और फिर उसके उद्धारके लिए लंकामे राम-रावण युद्ध होता है । रावणको मारकर राम दिग्विजय करते हुए लौटते हैं और फिर दोनो भाई बनारस में राज्य करने लगते हैं । मी अपवाद और उसके कारण उसे निर्वासित करने की भी चर्चा इसमें नही है । लक्ष्मण एक असाध्य रोग मे प्रसित होकर मर जाते हैं और इससे रामको उद्वेग होता है।
लक्ष्मण के पुत्र पृथ्वीसुंदरको राजपदपर और सीताके पुत्र श्रजितजयको युवराजपदपर अभिदित करके अनेक राजाश्र और अपनी सीता आहे रानियों के साथ जिना ले लेते हैं।
इसमे सीता के आठ पुत्र बतलाए हैं पर उनमे लबकुशका नाम नहीं है । दशानन विनमि विद्याधरके वंशके पुलस्यका पुत्र था । शत्रुयोंको रुलाता था. इस कारण वह रावण कहलाया ।
1
जहाँ तक मैं जानता है यह उत्तर पुराणकी राम - कथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित नहीं है। श्राचार्य हेमचन्द्रके त्रिपष्टिशलाका पुरुषपरित जो राम कथा है उसे मैंने पढ़ा है यह बिल्कुल पचय' की कथा के अनुरूप ऐसा होता है कि पचय और पद्मचरि टी चाचार्य के सामने थे। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है दिगम्बर सम्प्रदाय मे भी इसी कथाका अधिक प्रचार है और पीछेके कवियोने तो प्रायः इसी कथाको संक्षिप्त या पल्लवित करके अपने अपने ग्रन्थ लिखे हैं। फिर भी उतरपुराणकी कथा बिल्कुल उपे नहीं हुई है। अनेक महाकवियोंने उसको भी आदर्श मानकर काव्य-रचना की है। ऊदाहरण के लिए महाकवि पुष्पदन्तको ही ले लीजिए। उन्होंने अपने उत्तरपुराणके अन्तर्गत जो रामायण लिखी है, वह गुणभद्रकी कथाकी ही अनुकृति है | चामुण्डराय - पुराणमे भी यही कथा है।
पउमचरिय और पद्मचरेिनकी कथाका अधिकांश
वर्ष ४
वाल्मीकि रामायण के ढंग का है और उत्तरपुराणको कथाला जानकी जन्म प्रद्भुत रामायणके ढंगका । उसकी यह बात कि दशरथ बनारस के राजा थे, बौद्ध जानकरी मिलती जुलती है। उत्तरपुराण के समान उसमें भी सीता नियंस ल कुश जन्म श्रादि नहीं हैं।
कथा- भेदके मूल कारण
अर्थात भारतवर्ष मे रामकथा की जो दो तीन भारती हैं, वेद भी प्राचीनकालमे पल्ली आ रही है। पउमचरियके कर्त्ता ने कहा है कि मैं उस पद्मचरितको कहता हूं जो श्राचार्योंकी परम्परामे चला था रहा था और नामावलीन था । इसका अर्थ में यह समझना है कि रामचन्द्रका चरित्र उस समय तक केवल नामावलीके रूप में था. अर्थात उसमे कथाके प्रधान प्रधान पात्रोंके उनके मातापितास्थानी वीर भवान्तरों आदि के नाम ही हो वह पद्मविन कथाके रूपमें न होगा और विमलने उसीको विस्तृत परिके रूपमें रचा होगा। वसुदेवसरे
कहा है उससे भी यही मालूम होता है कि उन देव भीगोके क्रम निर्दिष्ट था। उससे पूछ तव था और कुछ श्रथापरम्परागत ।
• सामायिनिवासिनं ।
||
अपुलिस के अनेक कमानी
भिन्नता है, उसका कारण भी गडी मालूम होता है। उनके सामने कुछ तो 'नामावली साहित्य था और कु आचार्य परम्परा चली आई हुई स्मृतियों थी । इन दोन के आधार अपनी अपनी रचिके अनुसार कथाको
करने भी जाना स्वाभा है। एक मंचित लाटको यदि आप दो लेखकोको देंगे तो उन दोनो की पति रचनाएँ निस्सन्देह भिन्न हो जाएंगी। पति की तिलोत्तमे, जो करणानुयोगका ग्रन्थ है, उक्त नामावलीनिक कथासूत्र दिये हुए है
|
रहंत चक्कि वासुदेव-गणितानुयोग-कर्मा वसुदेव रिति । तत्थय किचि सुपनिबद्धं किचि ग्रायरिय परंपरागण श्रागतं । ततो अवधारितं में ।"