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________________ ३५४ अनेकान्त [वप५ जननी लिखा है। महावीरके नाना राजा चेटक वज्जिराज- भगवानका नाम 'बर्द्धमान' रवाया गया । उपगन्त जब मधके अधिपति थे जिनकी राजधानी वैशाली थी। कहते सौधर्मेन्द्र ने भगवानके जन्मोत्सव पर उनकी संस्तुति की तो हैं कि यह तीन भागों में विभक्त था अथात् (७) वैशाली उनका नाम महावीर दिखा। भगवानके जन्मसंबंधी शुभ (२) वणियग्राम, और (३) कुण्डग्राम। समाचार सुनकर मंजय नामक चारण ऋद्धिधारी मुनि, दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथों में यद्यपि ऐसा कोई प्रक्ट एक अन्य विजय नामक मुनिके साथ, भगवानके दशन उल्लेख नहीं है जिससे भगवानका सम्बन्ध वैशालीम सिद्ध करने श्राये और दिव्यरूपके दर्शनसे उनकी शंकाका हो किंतु उनमे कुण्डग्राम, कुलग्राम, बनषण्ड आदि नाम समाधान होगा था, इसलिये उन्होंने भगवानका नाम अाए हैं वे सब वैशालीके निकट मिलते हैं । कोई कोई 'सन्मति रकम्वा । विद्वान कोल्लागको, जो कुण्डग्राममे उत्तर-पूर्व मे स्थित था, भगवानको नाथ-कुल-नंदन भी कहते हैं। हिन्दुशास्त्री महावीरका जन्मस्थान बतलाते हैं किन्तु यह बात दिगम्बर में उनका नामोल्लेख 'अर्हत महिमन या महामान्य' रूपम और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंकी मान्यतामे विरुद्ध है। हा है। श्वेताम्बर शास्त्र 'उपासकदशामत्र' में उनको श्वेताम्बर ग्रंथोंपे पता चलता है कि कोल्लागके निकट एक 'महामाहन' अथवा 'नायमुनि लिग्वा है । चैन्यमंदिर था जिसको 'दुइपलाश', 'दुइपलाश उजान' भगवान महावीरके विषय में हमे ज्ञात है कि वे अपनी अथवा नायषण्डवन' कहते थे। इसी उद्यान में भगवान के कुमारावस्थामे गजकुमारी, मंत्रि-पुत्रो और देव-मह चरोके दीक्षा लेनेका वर्णन पाया जाता है। अत: दिगम्बर सम्प्रदायके माथ अनेक प्रकारकी क्रीडाय करने थे । उन्होने बाल्यउल्लेखोसे भगवानका जन्मस्थान कुण्डग्राम वैशाली जीवनये ही अहिंसा, न्याग और शौर्यका अादर्श लोगोंके निकट प्रमाणित होता है और कि राजा सिद्धार्थ वैशाली समन रम्बा था। पाठ वर्षकी नन्ही मी अवस्थामे उन्होंने के राजसंघमें शामिल थे तब वैशालीको उनका जन्म- जानबूझ कर किसी भी श्रान्माको पीडा न पहुचानेका स्थान कहना अत्युक्ति नहीं रग्वता । कुण्डग्राम वैशालीका संकप कर लिया था और यह दृढ निश्चय किया था कि एक भाग अथवा मन्निवेश ही था। दोनों सम्प्रदायोके मत किसी भी दशाम प्राणहिया न करूंगा और र.यका ही को मान्यता देते हुए यह कहा जा सकता है कि भगवानका अभ्यास करूंगा। इस प्रकार उन्होंने सत्य और अहियाका जन्म-स्थान वैशाली-गज्यान्तर्गत कुण्डग्राम होगा। वर्तमान उच्च श्रादर्श हमारे सामने रखा। में कुण्डग्राम अथवा कुन्डलपुरमै भगवानका जम्मोसव भगवान महावीरने गजकुल में जन्म धारण गया। मनाने प्रतिवर्ष मेला लगता है, जिसमें दोनों यम्प्रदायवाले उन्हें भोग-विलासकी सामग्रीकी कोई कमी नही थी किन्न एकत्रित होकर मानन्द उत्सव मनाते हैं। पुर्ण ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए वे विलासिता व वासभगवानका जन्मस्थान कुण्डग्राम होनेका प्रमाण बौद्ध नायोकी तृप्तिमे कोसो दर थे । आवश्यक सामग्रीको परिग्रंथ 'महावग्ग से मिलता है। इसमें लिखा है कि "एक मिन रूपमे रखते थे और सिर्फ शोकक गातिर अनावश्यक बक्क महात्मा गौतम बुद्ध कोटिग्राममे ठहरे थे जहां नाथिक वस्तयाको एकत्रित नहीं करते थे। यह उच्च न्याग धर्म लोग रहते थे। बुद्ध जिस भवनमें ठहरे थे उसका नाम हमे माद। Economme: जीवन व्यतीत करनेका पाठ 'नाथिक-इष्टिका भवन" था। कोटिग्रामसे वे वैशाली गये। पटाता है। सर रमेशचन्द्र इत्त इस कोटिग्रामको कुगडग्राम ही बतलाते एक दिन वे राज्योद्यानमे अपने अन्य सहचरी महिन हैं और लिखते हैं। "यह कोटिग्राम वही है जो कि क्रीडा कर रहे थे कि एक ओरमे विकराल रूपं उनपर श्रा जैनियोग कुराग्राम है और बौद्ध-ग्रेथोमे जिन नातियोका धमका। बेचारे अन्य मग्या भयभीत होकर इधर उधर वर्णन हैं वे ही ज्ञात्रिक क्षत्री थे।" भाग गये परन्तु भगवान महावीर जरा भी भयभीत नहीं ___ भगवान महावीर के जन्म होनेये उनके पिताके राज्यमे हुए। उन्होंने बातकी बातमे उप सर्पको वश कर लिया विशेषरूपसे हर बातमे वृद्धि होती नजर आई, इसीलिये श्री उम्पपर दया करके वैसा ही छोड दिया । वास्तवमै
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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