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________________ भगवान महावीर | लेखक श्री विजयलाल जैन B. Com.] gesग्राम के लिये कुण्डलपुर भी कहते है, राज सिद्धार्थकी पत्नी और वैशाली महाराजा पेटकी पुत्री त्रिशलाके पुत्र भगवान महावीर थे। श्रीमती त्रिशलादेवी की लघु बहन चलना मगध देशके सुप्रसिद्ध महागजा श्रेणिककी पत्नी थी। भगवानका जन्म एक ऐसे समय मे हुआ था जबकि लोग अपने अपने धर्मको प्राय. भूल चुके थे, अन्याय और पाप-मार्ग में लीन होकर धर्मके नाम पर महाहिपा करते थे । समाजका वातावरण बिगडा हुआ था और मनुष्य अपने अपने कर्तव्य विहीन हो रहे थे। ऐसी बिगड़ी हुई परिस्थितिको सुलझाने, श्रहिंसा धर्मका प्रचार कर प्राणीमात्रको कल्याणका मार्ग बताने, धूर्त, पाम्बराडी और पापियोंका को बोलबाला था उसे सबंके लिये मिटाने श्रीमहावीर भगवानका जन्म हुआ। भगवान महाबग्ने कोई नया धर्म नही फैलाया किंतु प्रायः उन्ही धर्मसिद्धान्तको फिर दुहराया जिनको इनके पूर्व भगवान पार्श्वनाथ भी इसी प्रकार संसारके सामने रख चुके थे । भगवान महावीर महात्मा बुद्धके समकालीन थे महात्मा बुने स्पष्टरूपसे कहा है कि कोई भी मनुष्य जन्ममे नीच नही होता बल्कि वे द्विजगण जो हिसा करने नही हिचकते और हृदय में दया नहीं रखते वे ही नीच हैं (सुत्तनिपान) । म० का कहना है कि "जन्ममे ब्राह्मण नहीं होता है न होता है किंतु कर्मयेाह्मा होता है और कर्म ही श्रब्राह्मण" । भगवान महावीरने आचरण पर उसका महत्व श्रव लंबित बतलाया है। गोम्मटम रमे स्पष्ट कहा है कि "मन नक्रम से चले श्रायें हुए जीवके श्राचरणकी गोत्र संज्ञा है । जिसका ऊंचा आचरण हो उसका उच्च गोत्र और जिसका नीच श्रचरण हो उसका नीच गोत्र होना है" । यह नदी कि यदि कोई व्यक्ति नीच वर्ण उत्पन्न हुआ ही और वह सन्मति पार अपने को सुधार का उन्नत बनाले तो भी वह नीच बना रहे। कोई भी पुरुष उच्च श्राचरणमे उच्च गोत्रको प्राप्त कर सकता है। यही भगवान महावीरका एक उपदेश है। भगवानने जीवमात्रके साथ मैत्रीभाव रखनेका हमें पाठ पढ़ाया है। ऊँच और नीच हमने अपने स्वार्थवश बनाये हैं उन्हीं उपदेशोंको लेकर अगर आज हम और हमारे पूज्य श्राचार्यवर्ग समाज के गिरे व्यक्तिको धर्मका बोध देकर अपना साथम बनावे तो एक तो उस आमाका कल्याण होगा जो कि स्वार्थवश नीच बनाई गई है और दूसरे समाजकी संख्या व संगठन मे वृद्धि होकर उपदेश देनेवालेका भी आत्मकल्याण होगा। पंक्षेपमें कहा जा सकता है कि आधुनिक हरिजन उद्धारकी समस्या भगवानकी दिव्य वाणीका एक अंग है। भगवान महावीरके विषय में कहा गया है कि जब वे अपनी माना गर्भमे आये थे तब माना शिला देवीने सोलह शुभ स्वप्न देखे और स्वर्गो देवगणीद्वारा महोसव मनाने यह ज्ञात होगया कि अंतिम तीर्थंकर भीमहावीरका जन्म होगा। चैत्र सुदी १२ के दिन जिस समय अनंत गुणधारी भगवान महावीर स्वामीका शुभ जन्म हुआ उस समय सब दिशायं निर्मल हो गई, समुद्र स्तब्ध हो गया, पृथ्वी किंचिन हिल गई और सब जीवोको चभर के लिये परम शान्तिका अनुभव हुआ । 1 कुण्डग्राम भगवान महावीर का जन्मस्थान था और उसमें ज्ञात्रिक क्षत्रियो की मुख्यता थी। श्वेताम्बर आम्नाय के प्रत्थामे स्पष्ट भगवानका जन्म-सम्बन्ध वैशालीके साथ प्रकट किया हुआ मिलता है जैसे सूत्रा (१-०३-२२) उत्तराध्ययन सूत्र, (६ - १७) व भगवतीसूत्र (२११०२) मे भगवानका 'वैशालीय' या 'वैज्ञानिक' रूपमे हुआ है, जिसमें उनका वैशाली के नागरिक होना कट है। अभयदेवने भगवतीसूत्रकी टीकामे 'विशाला' को महावीर
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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