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________________ ३४४ अनेकान्त बपे५ अन्तरकालमे भी विरुद्ध पड़ता है, क्योकि रामायणकी है जैसाकि उसके निम्न पथमे प्रकट है:उत्पत्ति २०वे तीर्थकर मुनिसुवतके कालमे हुई है और अहअट्टकम्मरहियम्म नम्म भाणोवोगजुत्तम्म । महाभारतकी उत्पत्ति २२वें तीर्थकर नेमिनाथके समयमें मयल जगज्जोयकर केवलणाणं समुपरणं ॥३०॥ हुई है और दोनों तीर्थगेका अन्तगलकाल अन्यकारने स्वयं यह क्थन दोनो ही मम्प्रदायसे बाधित है, क्योंकि २० उददेसम " लाग्य बनलाया है यथाः दोनों ही सम्प्रदायोंमें चार घातियामके विनाशसे केवलछच्चेव मयमहम्मा वीमइयं अन्तरं ममुटुं। ज्ञानोत्पत्ति मानी है, अष्टकर्मके विनाशमे तो मोत होता है। पंचेव हवई लावा जिणन्तरं एगवीमदमं ॥८१ आशा है विजन इन कब बातों पर विचार करके (१) दूसरे उदेमकी निम्न गाथामें भगवान महा- ग्रंथके निर्माण ममय और ग्रन्थकारके ममताय सम्बन्ध बीरको प्रष्टकमके विनाशमे केवलज्ञानकी उत्पत्ति बतलाई विशेप निर्णय करने में प्रवृत्त होंगे। समर्थन (लेग्यक-पं० परमानन्द जैन शाग्त्री) मैंने 'तत्त्वार्थमत्रक बीजीकी खोज' नामका एक विस्तृत वह नार्किक विभाग नियुक्तिकार भद्रबाहुके बाद ही कभी लेग्य लिम्बा था जो अनेकान्त के चतुर्थ वर्षकी प्रथम किरण दाखिल हुआाहे. क्योकि यावश्यक I..युक्ति जीभद्रबाहुकृत में मुद्रित हुआ है। इस लेग्यमे यह भी बतलाया था कि मानी जाती है और जिमका प्रारम्भ की जानचर्चाम होना बेताम्बरीय पागम साहित्यका मंशोधन-यग्विर्धनादि पूर्वक है उममे आगामक विभाग है पर तार्किक विभागका संकलन होकर उसे जो वर्तमानरूप दिया गया है वह कार्य सूचन तक नहीं है।" श्रीदेवर्षिगणी क्षमाश्रमग्गाके द्वाग बीगनिर्माण मं... "उमास्वानिने अपने तत्वार्थमत्र (१-१-१२) में (वि.सं०५१०) महा है। तत्वार्थमनके का श्राचार्य प्रत्यक्ष परोक्षरूपमे [म पमाणद्वय विभागका निर्देश किया उमास्वानि इममे पहले हो गए है, चुनाच श्वेतान्बय है वह वुद उमास्वातिकतना है या किमी अन्य प्राचार्य के विद्वान् प्रजाचक्षु पं. मुम्बलालजीने भी उनका ममय द्वाग निर्मित हुश्रा है दम विपयम कुछ भी निश्चिन कड़ा "प्राचीनस प्राचीन विक्रमकी पहली शताब्दी और अर्वाचीन नहीं जा सकता । जान पटना है भागमको मंगना के ममप में अर्वाचीन ममय तीमगचायी शताब्दी" माना है। प्रेमी प्रमाणचतुष्टय और प्रगग दुय वाले दोनोमाग स्थानाइ हालतम श्वनाम्बरीय श्रागम ग्रन्योपर तत्वार्थसूत्रकी छाश तथा भगवन म दाम्बिल हो गये।" । का पड़ना बहुत कुछ स्वाभाविक है और यह बहुत ही इसके सिवाय, श्वेताम्बर्गय प्रग्नर विद्वान् ५० बंचरमंभाव्य है कि तत्वार्थसत्रकी नुछ नानोको बादमे बनाए दाम ने 'जनमाहित्यमा विकायचाथी थपली हान' जाने वाले इन श्रागमग्रन्थोम शामिल कर लिया गया हो। नामक अपनी गुजराती भाप की पुस्तकम, जिमका हिन्दी मेर हम कथनका पं० मुम्बलालज.के निम्न वाक्यों ने भी अनुवाद भी प्रकाशित होचुका है, स्पष्टरूपमे मा स्वीकार ममर्थन होता है जो उन्होंने प्रमाणभीमासानटपणक पृष्ट किया है कि वर्तमानम उपलब्ध होनेवाले श्वेताम्बर अागम २०पर दिये है और जिनम मरूपमे यह स्वीकार किया है बहुत कुछ विकारग्रमित है-उनम मृल अागमाक' अपेक्षा कि आगमांकी मक ननाके ममय तथा नियुक्तिकारके बाद बादको कितनी ही मिलावट हुई है। कुछ बाने आगाम दाबिल होगई है जिनममे कुछ तत्वा- मी हालतम यह नहीं कहा जामकता कि वर्तमान श्वेतार्थसूत्रकी भी है : म्बरीय भागमोके जिन मत्रांके माथ तत्त्वार्थमूत्रीका (नवार्थ"स्थानाज और भगवती ये दोनो गणधग्कृत ममझे सूत्र जैनागम समन्वय' में) ममन्वय किया गया है वे मब जानेवाले ग्यारह अंगोममे है और प्राचीन भी अवश्य है। वस्तुतः तत्त्वार्थमूत्रके बज है-कितने ही उनमेमे नत्वार्थउनमे यद्यपि तार्किक विभागका निर्देश स्पष्ट है तथापि यह सूत्र परसे बने हुए भी हो सकते हैं। मानने कोई विरोध नही दीखता कि स्थानाङ्ग भगवतीमे
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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