SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० जैनजाति की उन्नति, बेहतरी, भलाई और देश-धर्म तथा समाजकी सच्ची ठोस सेवा से है, जैसा कि टूट के उद्देश्यों व ध्येयों (धारा १०) से प्रकट है और इसके साथ मेरी जीवन-भर की सारी सद्भावनाएँ तथा शुभकामनाएँ लगी हुई हैं, इसलिए मेरी यह वसीयत मेरे वारिसों, उत्तराधिकारियों और दृष्टियोंके लिये ही नहीं बल्कि सारी जैनजातिके लिये है, और मुझे दृढ़ विश्वास है कि वह जरूर टूष्टके काम पूरा हाथ बटाकर अपने इस सतत् सेवककी इच्छा ( वसीयत) को जल्द पूरा करेगी और पब्लिककी नज़रों में पूँजीको थाड़ी नहीं रहने देगी ।" श्रनेकान्त अन्तमें मुख्तार साइबकी इस वसीयत और टूष्ट-योजना के सम्बन्धमें मैं अधिक कुछ भी न कह कर सिर्फ इतना ही निवेदन कर देना चाहता हूँ कि मुख्तार साहबने अपने सारे [ वर्ष ४ जीवनकी तपस्या में सच्ची लगन और एकनिष्ठाके साथ निःस्वार्थ भाव से दिनरात अविभ्रान्त परिश्रम करके सेवाओं की जा भव्य इमारत खड़ी की है उस पर इस वसीयत श्रीर दूष्ट-योजनाके द्वारा सब कुछ अर्पण करके सुवर्ण कलश चढ़ा दिया है। अब समाजका कर्तव्य अवशिष्ट है और वह वही है जिसका संकेत वसीयतकी अन्तिम धाराके उक्त मार्मिक शब्दोमे संनिविष्ट है और जिसपर मुख्तार महोदय ने अपनी आशा ही नही किन्तु दृढ़ विश्वास तक व्यक्त किया है । कितना अच्छा हो यदि जैनसमाज श्रभीसे इस बैभवका अति ऊँचा आसन ! निर्धनताका नंगा नर्तन !! साँबेके थोडे टुकड़ों परनर करता नरका भार वहन !! श्रम करता है दम तोड़ हाय ! पर, कब उसकी विपदा टलती ! देखो, रिक्शा गाड़ी र अपना पूरा प्रयत्न करे, जिसके फलस्वरूप मुख्तार साहब अपने जीवनकालमें ही अपनी भावनाओं को खूब फलता-फूलता तथा इच्छाको पूरा होता देख कर परमसंतोष को प्राप्त होवें । - परमानन्द जैन शास्त्री *-: रिक्शा गाड़ी देखो, रिक्शा गाड़ी चलती ! धीमी-धीमी घण्टी बजती !! निर्धनताका वरदान लिये, हाथों में हल्की यान लिये; मानव लिपटा कुछ चिथड़ों मेंछाती में आकुल प्राण लिये, घोड़े सी दौड़ लगाता हैनंगे पैरों- पृथिवी जलती ! देखो, रिक्शा गाड़ी चलती !! मानव है पर, पशु-सा जीवन ! दुर्भाग्य ! तुझे शत-शत वन्दन ! श्री बेकारी ! ओ उदर-ज्वाल !! मानवता मान तुझे अर्पण || लाचारी - कंगाली, कलंककी मस्तक पर स्याही मलती ! देखो रिक्शा गाड़ी चलती !! भारी पूँजीपति है ऊपर | मज़दूर पसीनेमे है तर !! करुणा का कितना करुण दृश्य ! नरको नर खींच रहा बेजर !! जीवनमें घोर विषमताकी - यह बात नहीं किसको खलती ! देखो, रिक्शा गाड़ी चलती !! ++ हैं मार्ग विकट अति पथरीले, कर देते हैं पौरुष ढीले ! बर्षा होती नभ से छम छमहो जाते जी वसन गीले !! स- बस करती नस-नस निशिभर उरसें रहती पीड़ा पलती ! देखो रिक्शा गाड़ी चलती !! चलती !! [ र० - श्री हरिप्रसाद शर्मा 'अविकसित' ]
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy