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________________ अनेकान्त सच्चे अर्थों में 'दानवीर'। जैनसमाजके शिरोगग्न और भारतके लब्धप्रतिष्ट व्यापारी अग्रवाल-कुल-भूपण श्रीमान माह शान्तिप्रसादजी जैन डालमियानगरका मचित्र परिचय देते हुए गत अक्तूबर मामकी अनेकान्त-किरण नं. ६ में मैंने कुछ युनियाँके साथ आपको 'सच्चे अर्थमि दानवीर' लिखा था। मेरे इस लिम्बनेको अभी तीन महीने भी पूरे होने को नहीं श्राए थे कि माह जी इन्दीरमे होनेवाले दिगम्बर जैन मालवाप्रान्तिक सभाके अधिवेशनके लिये सभापति चुने गये और अापने वह जाकर २७ जनवरीको मान लाम्बके दानकी नई घोषणा की, जिसके उपलक्षम, अापके बहुत कुछ विरोध करनेपर भी, सर मेठ हुकमचन्दजी श्रादि अनेक दानवीके हायोंमे आपको 'दानवीर' की समुचिन पदवी प्रदान की गई और आपका बहु सम्मान किया गया। दानवी इस भारी ग्क्रम श्राप चाहने नो अपने नामये एक दी संस्था खोल । 'नम्रताकी मृति' माह शान्तिप्रमादजी जैन । देते और उसे अपने ही स्थानपर रग्बकर स्थानीय महत्व । दालमियानगर यस बार उन अपमहान्यानपर रखकर पाना माप न प्रदान कर देने परन्तु आपको अपने नाम और स्थान जग भी मोह नहीं है और इसलिय श्रापको ये दोनों बतं तर तक समाजके दसरे श्रीम नांया ध्यान इस उपयोगी कार्यको इष्ट नहीं हुई, आपने इस रकममे होनेवाली २५ हजार ओर नहीं गया था और उससे समाजके कार्योम बाधा पट रुपये वार्षिक मृदकी श्रामदनीको उन कार्याम खर्च करनेका रही थी। अब समाज-संवकोको इससे अछा प्रोसाहन संकल्प किया है जो समने जैन समाजको टोस वा लिये मिलेगा धीर कितने ही मजन गंवाके क्षेत्रमे श्रवनीर्ण होकर बहुत ही श्रावश्यक हैं, और वे हैं-- जैनमातियवाशन, जी-जान से उसके करनेम प्रवृत्त हाग' जी-जान उपके करने में प्रवृत्त होंगे और साथ ही दर १२) विविध विषयों में अधिकारी योग्य विद्वानोको तथ्यार श्रीमानको भी इस सत्कार्य में योग देनेकी प्रेरणा मिलेगी। करनेके लिये तात्रवृत्ति-प्रदान, तथा (३) समाजसेवाके लिये यसब बाते श्रापके मञ्च अर्थोम 'दानवीर' होनेकी और भी अपनेको अर्पण कर देनेवाले विद्वानाको निगकुल करनेमे समर्थक हैं। इस दानम्मे वीरमेवामन्दिरको भी योग्य विद्वानी महयोग-दान । इन कामोमे क्रमशः ३०००), १२०००, की सम्प्राप्ति और साहित्यके प्रकाशनादिका कितना ही ६०००) वापिक खर्च किये जायंगे. और इस तरह सभी श्राश्वासन मिला है, जिसके लिये मैं साहू साहबका बहुत ही स्थानों तथा समाजोंके व्यकि. श्रापके इस दान म.चित श्राभारी है और आपकी इस दान-परिणतिका हृदयमै अभि. लाभ उठा सकेंगे । नृतीय कार्यमें ६००० म. वार्षिकके नन्दन करता हा श्रापको हार्दिक धन्यवाद भंट करता है। विनियोगकी जो योजना की गई है वह नि.सन्दह जैनसमाज जुगलकिशोर मुख्तार के लिये बिल्कुल नई और बडी ही प्रशंसनीय है । अभी
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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