SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १-२ ] व चट्टों और तरनकद वगैरहके, और साथ ही मय उस जायदाद के जो बादको किसी तरह मेरी मिल्कियत कब्जे दखल मे श्रावे, मेरी मृत्यु पर 'वीर-सवामन्दिर ट्रष्ट' के सुपुर्द होगी, जिसके टूष्टियान निम्नलिखित होंगे और वे कुल जायदादपर मेरे समान काबिज व दखल होंगे : मुस्तार सा०की वसीयत वीरसेवामन्दिर ट्रस्टकी योजना " (१०) उक्त 'वीर-सेवामन्दिर दृष्ट के उद्देश्य न ध्येय निम्न प्रकार होंगे, जिन्हें पूरा करनेके लिए हर मुमकिन का शिश (संभव प्रयत्न करना |ष्टयोका कर्तव्य होगा और जिनको पूरा करने कराने के लिए ही दृष्टीजन ट्रष्टके फण्ड मौजूदा तथा आइन्दाको खर्च किया करेंगे : (क) जैनसंस्कृति और उसके साहित्य तथा इन सम्बन्ध रखनेवाले विभिन्न मन्या शिलालेख, प्रशास्तव उल्लेखवाक्यां, सिक्कों, मूर्तियो, चित्रकला के नमूनो आदि माग्रीकालापत्रे व म्यूशियम आदिक रूपमे अच्छा संग्रह करना और दूसरे ग्रन्थो की भी ऐसी लायो प्रस्तुत करना जो खाजके काममे अच्छी मदद दे सके । (ख) उक्त सामग्री परसे अनुसंधान कार्य चलाना और उसके द्वारा लुमप्राय प्राचीन जैन साहित्य इतिहास व तत्त्वज्ञानका पता लगाना और जैनसंस्कृतिको उसके असली रूपमे खोज निकालना | प्रधान-वधान (ग) अनुसंधान व खोके आधारपर नये मौलिक साहित्यका निर्माण कराना और लोकनिकी से उसकी प्रकाशित करना जैसे जैनसंस्कृतिका इतिहास, जैनधनका इतिहास, जेनसाहित्यका इतिहास, भगवान् महावीरका इतिहास, नाचायका निद्दाम, जातिगोत्रों का इतिहास, ऐतिहासिक जैन व्यक्तिकोष, जैनलक्षणावली, जनपारिभाषिक शब्दकोष जैकी सूची, जैनमन्दिर मूर्ती सूची और किसी-किसी नई शैली से विवेचन या रहस्यादि तैयार कराकर प्रकाशित करना । (घ) उपयोगी प्राचीन जैन प्रथाका विभिन्न देशी विदेशी भाषाश्रमं नई शैली अनुवाद तथा सम्पादन बराकर प्रकाशन करना, प्रशस्तियां और शिलालेखी यादि के संग्रह भी पृथक् रूपसे सानुवाद प्रकाशित करना । जैन-संस्कृति के प्रमारके लिये योग्य व्यवस्था करना, वर्तमान प्रकाशित 'अनेकान्न' पत्रको चालू रखकर उसे तत्त्वका (ङ) २६ और ऊँचा उठाना तथा लोकप्रिय बनाना। साथ ही, उपयोगी वैम्फलेट ट्रेक्ट प्रकाशित करना और प्रचारक घुमाना । व (च) जैन साहित्य, इतिहास और संस्कृतिकी सेवा तथा तत्सम्बन्धी अनुसंधान व नई पद्धतिसे ग्रन्धानर्माण के कामो दिलचस्पी वेदा करने और यथाश्यकता शिक्षण (ट्रेनिंग ) दिलानेके लिये योग्य विद्वानोको स्कालरशिप्स (वृत्तियां वजीफे देना | (छ) योग्य विद्वानों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के पुरस्कार या उद्दार देना ।" लिये “ ( ११ ) मेरी मृत्यु वर जो जायदाद माल व स्वाब और नकद कावष्टियानके सुपुर्द होगा या उनके अधिकार arar aौर जिसकी वे बाजाब्ता एक सूचा तैयार कराएँगे, यह और उससे जो ग्रामदनी होगी, वह सब टूट पड मौजूदा समझा जायगा और मेरी मृत्यु के बाद दृष्टके उद्देश्योंको पूरा करने और उसके कामोंको चलाने के लिए टूट शशसे या बिना कोशिश है जा जायदाद या नकद रुपया वगैरा किसीकी तरफसे या खुद ट्रप्टिोकी तरफसे उक्त ट्रष्टके सुपुर्द होगा अथवा उसको किसी तरह पर प्राम होगा, वह सब 'ट्रष्ट फण्ड आइन्दा' कहलाएगा। टूट फण्ड आइन्दा भी ट्रष्ट फण्ड मौजूदाका अंश (पार्ट) होगा उसके निययोके आधीन होगा और उसपर भी टूष्टियों को उसके प्रवन्ध, व्यवस्था तथा इसके लाने और काममे करने के सम्पूर्ण अधिकार 'एड मौजूदा के समान प्राप्त होंगे और वे उसके भी मैनेजिंग प्रोप्राइटर समझे जायेंगे और उसी देखियत तथा पदाधिकारसे उसे स्वीकार करेंगे।" ' (१२) ट्रष्टियोको अधिकार (इख्तियार) होगा कि वे दृष्ट के उद्देश्यों तथा करानेके लिये अनेक उक्त ध्येयांको पूरा विभाग या डिपार्टमेंट्स कायम करें, उपसंस्थाएँ खोले और उनकी प्रबन्धकारिणी समितियाँ (कमेटियों नियत करें, जो कयों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार अपना अपना कार्य सम्पन्न करेंगी, और जिनमें ऐसे व्यक्ति भी शामिल किए जाएँगे जो ट्रष्टीन नहीं होगे । " (२१) यद्यपि मेरी भी थोड़ी और बड़ी है, फिर भी चूँ । क मेरी इस इच्छा (वसीयत) का सारा सम्बन्ध
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy