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________________ अनेकान्त [वष ५ - बाद माई ला० चमनलाल पिमर ला० शंकरलाल भी 'वीर-सेवा-मन्दिर ट्रस्ट'के सुपुर्द किया है और ट्रस्टियोमे समाज मौजद हैं। ये सब लाग मुझसे अलग रहते हैं, अलग के गण्यमान्य ११ मजनों के नाम दिये हैं। अगली तीन धाराश्री कारोबार (कार्यव्यवहार) करते हैं और मेरी इनकी कोई मे वीर-सवा-मन्दिर और ममन्तभद्राश्रमक रुपये तथा सामान शराकत, महकारिता अथवा माझेदारी नही है। की स्पष्ट व्यवस्था की है और जहाँ कहीं रुपया जमा है उसकी यद्या ब्रहाचर्यव्रत और मंयमक प्रतापमे मेरो तन्दुरुस्ती सूचना भी की है। १०वी धाराम 'वार-सवा-मन्दिर ट्रस्ट' के अच्छी बनी हुई है और मैं बगबर ही सेवा कार्य करता उद्देश्यों तथा ध्येयोको स्पष्ट किया गया है, जिनको पूरा करने रहता हूँ फिर भी बुढापेका अमर हो चला है और जिन्दगी कराने के लिये ही ट्रस्टीजन ट्रस्ट के फण्ड मौजूदा व आइन्दा का कोई भगेमा नहीं है । मैं नहीं चाहता कि कोई शरम को वर्च किया करेंगे। ११वी धागमे 'ट्रष्ट फण्ड मौजदा' मेरी मर्जी व इच्छाके विरुद्ध मेर तर्केका वारिम बनकर और टम्ट फण्ड पाइन्दा' की पारभाषाको स्पष्ट किया गया नाजायज फायदा (अनुचित लाभ) उठाए या मेरी मृत्युके है, शेष धागोम ट्रस्टियोंके अधिकारी श्रादिका स्पष्ट बाद मेरे वारिसोम किसी प्रकारका कोई विवाद या झगड़ा निर्देश है और उममे ट्रस्टियोको चार ओर ट्रष्टी पैदा हावे और उमकी वनमे मेरी आत्माको कप पहुँचे। नियत करनेका अधिकार भी दिया गया है । अत: मैं दरअन्देशीके खयालसे, स्वस्थदशामे, बिना किमी इन धाराश्रोमेसे पाठकोकी जानकारीक लिए पाचवीं, के दबाव या नबरदस्सीके अपनी र तन्त्र इच्छा और ग्वुशी छटी धागके श्राद्यग्रंश, १०वी, ११वी और १२वी धाराएँ से अपनी स्थावर-जंगमादिरूपमे मार्ग सम्पत्ति के सम्बन्धम, पूरी नीचे दी जाती है। साथ ही २१वी धाराके अन्तका जिमका मैं इस वक्त मानिक, काविक्ष व मुनमरिफ (व्यया- वह मार्मिक अंश भी दिया जाता है जिसके द्वारा मुख्तार धिकारी) हूँ, या जो बादको किसी तरह मेरे कब्जे व साहबने अपनी वसीयतको मारी जैन जाति के साथ सम्बद्ध दखल मे आवे, तथा उन कनौके सम्बन्धमें जो मुझे पाने किया है:हैं व उन रकमौके सम्बन्धमे जो मुझे देनी है और ग्वामकर अपने संस्थापित 'वीर-सेवा-मन्दिर' के सम्बन्धम नीचे। "(५)उक्त जायदाद सहगई व सकनाईके अतिरिक्त और जिम कदर भी जायदाद सहराई व सकनाई, स्थावर-जंगम लिखी वमीयत (इच्छाभिव्यक्ति) करता हूँ. जिसकी पाबन्दी मेरे सम्पूर्ण वाारमों और उत्तराधिकारियों पर लानिमी सम्पत्ति, कम्पनियोंके हिस्मे, निजको प्राग्य कर्ज, मामान होगी :-" लायरी, ग्वाज की सामग्री, दस्तावेजे नई व पुरानी. अस्वाच इसके बाद वमीयतनामे में २१ धाराएँ हैं, जिनमेमे शुरू घर-गृहस्थी और नकद रुपया श्रादिक रूपम मेरे पास की कुछ धाराश्रमें मुख्तार माहबने अपनी उस मब पैतृक । __मौजूद है, उसका पिताको सम्पत्ति या जायदाद जद्दीमे सम्पत्तिको जो उन्हें नजदीसे पहुंची थी, अपने भीमाके कोई खाम ताल्लुक या वास्ता (सम्बन्ध) नहीं है। वह नाम लिम्ब दिया हैं और बड़े भाईको जो कुछ देना है सब प्राय: भेरी खुदकी पैदा की हुई, खगदी हुई और उमका भी उल्लेख कर दिया है। पाँचवी धाराम शेष सब प्राप्त की हुई है। उसमसे स्थावर सम्पत्ति (जायदाद गैर सम्पत्तिका उल्लेख तथा संकेत किया गया है, जिसकी मनकला) कम्पनियोके हिस्से और प्राप्य डिगरीकी तफसील मालियतका तखमीना इक्यावन हनार ५१०००) रु० से । निम्नप्रकार है:-... ....." ऊपरका है और जिममें वीर-सेवा-मन्दिरकी मब इमारात, (६)कुल जायदाद जो ऊपरकी धारा नं. ५ में दर्ज व एक अहाता, एक बाग़, एक ग्खेत, एक दुकान, श्राधी उल्लेखित हैं, मय सम्पूर्ण सामान लायब्ररी, खोजको हबेनी, प्राय डिगरी, लायब्रेरी और नकद रुपये श्रादिके सामग्री, दस्तावेज्ञात नई व पुरानी, नोटम-बुक्स, हिसाबअतिरिक्त देहली क्लाथमिल एण्ड जनरल मिल्म कम्पनी किताबके रजिस्टर व अस्वाब घर-गृहस्थी, मय अलमारी लिमिटेड के . ४१३ हिस्से और साउथ बिहार सुगर मिल्म के अाहिनीके, जो स्वर्गीय भाई रामप्रसादकी हबेलीके ऊपर १०० हिस्से शामिल हैं । छठ। धागमें इस सब सन्यांत को के एक स्वाधिकृत मकानमे स्थित है, मय उक्त ईटोंके
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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