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________________ मुख्तार साहबकी वसीयत और 'वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट' की योजना ५१ हजारकी सम्पत्तिका विनियोग बहुत असेंसे मुख्तार श्री पं० जुगलकिशोर जीकी इच्छा हो गई है और १२ फरवरी सन् १९१४ को मुख्तारकारी अपनी वायत लिखने और दृष्ट कर देने की हो रही थी, छोड़ देनेके वक्तसे मेरी चित्तवृत्ति एवं श्रात्मपरिणतिका परन्तु अनवकाशम लगातार घिरे रहने के कारण वे अभी झुकाव अधिक से अधिक लोकसेवा यानी पब्लिक सविम ब तक उसे नही कर पाये थे। हालमे देशकालकी विकट- कौमी खदमतकी तरफ होता चला गया है, जिसका स्थितिको देव। उन्होंने अन्य कामोको गेककर अग्ना आन्विरी नतीजा यह हुआ कि मैंने जीवन के उस ध्येय वसीयतनामा लिख दिया है और उसमे ट्रस्टकी योजना भी (मकसद)को कुछ अाला पैमानेपर पूग करनेके लिये कर दी है। यह वमीयतनामा फुलिस्केर साइजके १२ पत्रों अपनी बातखाससे खुदकी पैदा की हुई भारी रकम लगाकर पर हिन्दुस्तानी भाषा अर देवनागरी अक्षरोमे लिखा गया अपनी जन्मभूमि कस्बासरसावाम चौर-सेवा-मंदिर' नामका है। मुख्तारमाहबने इसे वैशाख शु. पंचमी ना०२० अप्रेल एक श्राश्रम निर्माण किया, जो अम्बाला-सहारनपुर-ओढ़ को स्वयं अपनी कलमसे लिखकर २४ अप्रैल १६४२ ई. पर स्थित है और जिसके उद्घाटनकी रस्म वैसाख सुदि ३ को सहारनपुरम रजिष्ट्री भी करा दिया है, यह बड़ी ही प्रसन्नता (अक्षयतृतीया) सम्बत् १६६३ मुताबिक ता. २४ अप्रैल का विषय है । वसीयतनामेका प्रारम्भिक अंश, जो मुख्तार सन् १६३६ को एक बड़े उत्सव के रूप मे अमल में आई थी, साहयकी श्रात्मपरिणति अथवा चित्तवृत्तिका अच्छा जिमम श्रीबीगभगवानकी रथयात्रा भी निकाली गई थी। प्रतिबिम्ब है और ऐतिहासिक ढंगमे लिखा गया है उद्घाटनकी रस्मके बादसे उक्त आश्रममे पब्लिक निम्नप्रकार है: लायब्ररी, कन्याविद्यालय, धर्मार्थ औषधालय अनुसंधान __ श्रीसमन्तभद्राय नमः ( Research), ग्रन्थनिर्माण, ग्रन्थप्रकाशन और "मैं कि जुगलकिशोर 'मुख्तार' पुत्र चौधरी लाला 'अनेकान्त' पत्रका प्रकाशन व संपादन जैसे लोकसेवाके नत्थूमल व पौत्र चौधरी लाला धर्मदामका, जातिमे जेन- काम होते आ रहे हैं, लोकसेवाके कामोके लिए ही वह अग्रवाल सिंहलगोत्री, निवासी कस्वा मरसावा तहसील संकल्पित है, कई विद्वान पंडित उममें काम करते हैं, मैं नकुड़ नि० सहारनपुर का हूँ। भी वही रहकर दिनगत सेवाकार्य किया करता है, वही इस ____ जो कि मैं सम्पत्तिवान (साहिबे जायदाद) हूँ और मेरे वक्त मेरी सारी नवजह एवं ध्यानका केन्द्र बना हुआ कोई सन्तान पुत्र गा पुत्रीके रूपमें नहीं हैं, धर्मपत्नी श्रीमती है, मेरी मारी आमदनी भी करीब-करीब उमीक कामोमें गजकलीदेवी भी जीवित नही है, उसकी मृत्यु सोलह खर्च होती है और इसलिए मैं उसको अपने तर्केका मार्च सन् १९१८ ई०को हो चुकी है, अपनी पचास वर्षकी (मृत्युके बाद छोड़ी जानेवाली सम्पत्तिका) सबसे बड़ा हकउन दो जानेपर इक्यावन वर्षके शुरु दिन ४ दिसम्बर दार व वारिस समझता हूँ और चाहता हूँ कि उसकी सन् १६२७ ई०को मेरे ब्रह्मचर्यव्रत ले लेनेकी वजहसे इन उन्नति व हितवृद्धिमे लोकसेवाकी मेरी दिली मुरादें (कामदोनोकी यानी पत्नी और सन्तान की प्रागेको कोई संभावना नायें) पूरी होवें। मेरे संभाव्य कानूनी बारिस में इस वक्त व आवश्यकता भो अवशिष्ट नहीं है; दत्तक पुत्र लेनेके मेरे बड़े भाई ला. हींगनलाल चौधरी, उनका पुत्र चि. खयालको मैं बहुत असेंसे छोड़ चुका हूँ। इसके सिवाय प्रदमनकुमार और छोटे भाई स्व. बाबू रामप्रसादके दो मँगासर सुदि एकादशी, सम्वत् १६३४ विक्रमका जन्म पुत्र चि. ऋषभचन्द व श्रीचन्द मय अपने दो लड़कों होने के कारण उम्र भी मेरी इस वक्त ६४ सालसे ऊपरकी चि. नेमचन्द व महेशचन्द के मौजद हैं और एक चचा
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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