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________________ ३२५ अनेकान्त [ वर्ष ५ चर्चा छोड़कर मैनी-असैनीकी चर्चा ले बैठे। और (धवला चतुर्थखंड पुस्तकाकार पृष्ठ २५०) मेंडकको असैनी मान बैठे। (जनमित्र) और यह भी लिखा कि लब्धिसार गाथा नं०२ • श्री वीरचन्द कोदरजी गाँधीने नेमीचन्दजी सिंधई में जो कथन किया गया है वह प्रथमापशम सम्यक्त्व की इस मान्यताका कि मेंडक असैनी है. खंडन की अपेक्षासे है उसका आशय यह है कि प्र० सं० किया और ले देकर वही गोमट सारकी गर्भज और संज्ञीके ही हो सकता है। वहाँ द्वितियो"गिवण्णं इगविगने अमरिणसरिणगयजलथलखगाणं । पशम सम्यक्त्वका निषेध नहीं किया है। गम्भभवे सम्भुछ दुतिग भोगथन खेचरे दो हो।" पडितजीने एक बात बड़े मजेकी यह भी कह (गो. जी. गा. ७१) डाली कि “विशेष बलवती शंका न देख उस ओर उपयोग नहीं गया किन्तु धवला चतुर्थ खडका स्वाध्याय इम गथाका हवाला देकर यही कहा कि मेडक करते समय अकस्मात उस शंकाकी तरफ दृष्टिपात गर्भज और सम्मूर्छन दोनों प्रकारके होते हैं। गया।" आश्चर्य तो इस बात का है कि इन्होंने इस बात अक्टोबर सन १९४० मे प्रकाशित शंकापर अक्टोका ध्यान ही नहीं दिया कि गाथामें मेडकका वर्णन बर सन १६४२ में विचार प्रकट करने पर भी (भला नहीं किन्तु जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च सामान्यका हो धवलाका !) यह कहना कि शंका कमजोर !विचार वर्णन है । जलचरोमें कई वर्गके प्राणी हैं, उनमें जोरदार! यह तो वही मसल हुई कि "आपनो माल किसी वर्गके गर्भज किमी वर्गके मम्मूच्र्छन, और पूंछ नो बाल, और पर नो माल पूछना बाल” खैर किसा वर्गके प्राणी दोनों प्रकारके हो सकते हैं। यों ही मही। जैसा कि मैन हर तरहसे सिद्ध किया था कि मंडक इस प्रकार तीनो मजनों के जवाब हैं । इनमें से मर्गके प्राणी सम्मृर्छन होते है, वैमा गांधी महाशय दो मज्जनोके ( सिंघईजी और गांधीजी के ) तो यह सिद्ध नहीं कर मके कि मेडक गर्भज भी होते हैं। सवाल दिगर जबाबदिगर' वाली कहावतको चरितार्थ खाला अटकल पच्चू तौर पर यह लिख दिया कि करने वाले हैं। शेष रहे तीसरे सजन पं० सुमेरचन्द्रजी, “मेंडकके युगल बड़े तालाब और कावदीमें देखने मे मो इनका जवाब कुछ समाधान कारक हे । “कुछ" आते हैं।" कहने के कारण है । वे ये हैं३५० सुमेरचन्दजीन उक्त दोनो महाशयांकी इस १ जब मैंने उक्त शंका उपस्थित की थी उस समय मेरे मान्यताका कि मटक गर्भज है, खंडन करके "धवला" त्यालमें यह बात जमी हुई थी कि मेंटक सम्मृच्छन शास्त्राधारसे यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि ही होते हैं । परन्तु बाद में विकाशवाद पुस्तकके मंडक गर्भज नही, मम्मृच्छन जीव है। और उमक देखने पर मालम हाकि मेडक गर्भज भी होते हैं। पंचम गुण स्थान तक हो सकता है । यथा- २ ऊपर उधृत धवलाके शब्दार्थपरसे यह सिद्ध नही ___ "मोहकर्मकी अठाईम कमप्रकृतियांकी सत्तावाला होना-ऐमा एकांत कथन नहीं निकलता कि मेडक. एक तिर्यञ्च अथवा मनुष्य मिथ्यादष्टि जीव, मंज्ञी १"चमिच्छी मरागी पएणो गाजविसुद्धसागाये। पंचेन्द्री और पर्याप्तक, से सम्मृच्छन निर्यच मच्छ पदमबममं म गिराइदि पंचम पग्लद्विचारमन्दि ॥ कच्छ मेंडकादिको में उत्पन्न हुआ, मबलघु अन्तमु हने (लब्धिसार २) काला द्वारा सर्व पयाप्रियासे पर्याप्त पनेका प्राप्त हुश्रा २'च दुगदि भव्य मरागी पजनी मुझगो द सागागे। (१) पुनः विश्राम लेना हा (6) विशुद्ध होकर (३) जागागे मल्हमा मद्धि गो मम्ममुवगमई ॥" संयमासंयमको प्रान हुआ।" (गो-जी ६५१)
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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