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________________ करण -६] मेंडकके विपयमें शंका समाधान ३२५ सम्मुर्छन ही होते हैं। मीमा तक पहुंच गया है, और सामान्य नियम बन ३ लब्धिसार गाथा नं. २ का श्राशय यदि यह लें कि गया है। इन जीवोंका विचार करनेसे पहिले हमें प्रथमोपशम सभ्यास्त्र प्राप्तिके लिए ही गर्भज होना बीचकी स्थितिको देखना पड़ेगा, याने वह जो अलि आवश्यक है तो फिर देव-नारक गतिमें प्र० स० ङ्गिक स्थिति (एककोषीय जीव ) के बाद की और को अप्राप्ति रहेगी ?-परन्तु लगाथा २०२ में द्विलिङ्गिक स्थितिक पहिलेकी है। इसे उभयलिङ्गिका तो चारों गति में प्र० स की प्राप्तिका विधान है। नाम दिया गया है, क्योंकि इनमें नर और मादा' जो हो, मैंने तो अपना समाधान इस तरह कर दोनों के गुण मौजूद होते हैं । अब भी कुछ ऐसे लिया है-- जीव हैं, जिनमें यह स्थिति देखने में आती है। उनमें आंतरिक कोपोंकी वृद्धि तो उसी तरह होती जाती है १ मेंडकवर्ग के प्राणी गर्भज समूर्छन दोनों प्रकार के मगर कुछ कोपोके शरीरसे बिलकुल निकल जानेके, होते हैं। बदले, वे एक अंगसे दूसरे अंगमें चले जाते हैं, २ द्वितीयोपशम सम्यक्त्व प्राषिके लिए गर्भज होना और वहीं उनका पोषण तब तक होता रहता है जब आवश्यक नही है। तक वे स्वतंत्र जीवनके योग्य नहीं हो जाते।...." ३ राजगृही वाला मेंडक मम्यग्दष्टा था अतएव उसके यहां एक बात ध्यान देने लायक है। उभयजिनपूजा-भक्तिके लिए समवसरगामें जानेकी समिति लिङ्गिक मृष्टिके साथ साथ एक नई बात देखने में : कथा कल्पित नहीं किंतु ऐतिहासिक है। आती है वह गह है कि दोनों लिङ्गोंके उसके अङ्ग अब यदि इस विषय में चर्चा करनेकी कोई सिर्फ अलग ही अलग नहीं रहते बल्कि स्वतंत्ररूपसे गुरुजायश शेप रह गई है तो वह यह है- अपने अपने शुक्र कोपोंकों बनाते जाते हैं। नर१ लब्धिसार गाथा नं.२ का आशय यदि यह ले अंग तो पुराना आंतरिक जननका काम शुक्रकोषों कि प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्तिके लिय ही गर्भज को बना बनाकर करता ही जाता है (जिन्हें हर होना आवश्यक है तो फिर देव-नारक गतिमें निकालकर मादा पिंडमें प्रवेश कराने के कारण वीयप्र० स० को अप्राधि रहेगी ?-परन्नु लम्धिसार कीट कहते हैं) और मादा अङ्ग भी अपने जीवकोष गाथा नं०२ में तो चारो गतिमें प्र० स० के प्राप्ति बनाते ही जाते हैं, मगर पुरुष अङ्गके जीवकोपको का विधान है। गर्भाधान के लिये रख लेते हैं, नकि निकाल देते हैं।' २ मेंडकवर्गके प्राणी मम्मूर्छन ही होने हैं, यह बात (विलियम लोफ्टसहेयर, के लेखका अनुवादक्या घवलासे सिद्ध होती है ? "अनीतिकी राहपर" पृष्ठ १४ । १२५) ३ जंतु विज्ञान (सायंस) की खोज इस विषयमें क्या इन जीवोंको क्या कहना ?-माता पिताके शुक्रबतलाती है ?--बैज्ञानिकोंने ऐसे उभयलीङ्ग शोणित-मिश्रण-जन्य गर्भज तो ये हैं नहीं ? जीवोंकी भी खोज की है जिसमें नर मादा दोनों ऐसी बातें हैं--बस अब जिसका जी चाहे, च के गुण मौजूद हैं। देखिये चलावे। में तो विश्राम लेता हूँ। "मनुष्यों और पशुओं में लिङ्ग-भेद अपनी चरम
SR No.538005
Book TitleAnekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1943
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size28 MB
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